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इतिहास के पन्नों से

संयोग से प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिम्हाराव ने बदलती थी देश की तस्वीर

अनन्या मिश्रा

पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को देश में आर्थिक सुधारों का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे निर्णय लिए जिससे देश गरीबी से बाहर आ सकें। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 28 जून को पीवी नरसिम्हा राव का जन्म हुआ था। एक समय ऐसा भी आया था, जब देश का सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था। इसी के बाद तत्कालीन पीएम ने देसी बाजार खोल दिया था। हालांकि उस फैसले के कारण राव को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। लेकिन आज पीवी नरसिम्हा के उसी फैसले के कारण हम टॉप देशों में शामिल हैं।

जन्म

तेलंगाना के करीमनगर जिले के वंगारा गांव में 28 जून 2921 को पीवी नरसिम्हा राव का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम पामुलापति वेंकट नरसिम्हाराव था और वह तेलुगु नियोगी ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। साल 1930 में उन्होंने हैदराबाद में वंदे मातरम आंदोलन में हिस्सा लिया और सक्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनकर उभरे। देश की आजादी के बाद वह कांग्रेस से जुड़कर राजनीति में सक्रिय हो गए थे। बता दें कि राव 17 भषाओं के ज्ञाता, विदेश नीति में दक्ष और कुशल रानेता के तौर पर जाने जाते थे।

जब खत्म हो गया था विदेशी मुद्रा भंडार

उस दौरान देश में सिर्फ 2500 करोड़ रुपए का भंडार था, जो मुश्किल से 3 महीने ही चलता। लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर आम आदमी पर पड़ रहा था। देश में कंपनियों की संख्या कम होने के साथ ही रोजगार के अवसर भी कम थे। बिजनेस के लिए न तो आसानी से लाइसेंस मिल पाता और न ही बैंक लोन देने के लिए तैयार होते। इसी मुश्किल दौर में पीवी नरसिम्हा राव अचानक से देश के अगले प्रधानमंत्री बनें।

ऐसे बनें देश के प्रधानमंत्री

दरअसल, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में पीवी नरसिम्हा राव पहले रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और फिर गृहमंत्री बनें। वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के काफी विश्वस्त माने जाते थे। वहीं साल 1991 में राव को देश के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। साल 1991 में जब एक बम विस्फोट में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई। तब कांग्रेस की आलाकमान और पीवी नरसिम्हा के रिश्ते सहज न होने की बात सामने आई थी।

क्योंकि राजीव गांधी के बाद देश का अगला पीएम कौन होगा। इस पर काफी झमेला पैदा हुआ था। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के एक पक्ष में आने के बाद पीवी नरसिम्हा राव को देश की सत्ता को संभालने का मौका मिला। लेकिन इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वहीं ऐसा भी माना जाता था कि सोनिया गांधी को लगता था कि राजीव गांधी की हत्या की जांच धीमे चल रही है। जिसकी नाराजगी वह अक्सर राव पर उतारती थीं।

राव और सिंह की जोड़ी ने किया कमाल

बता दें कि नरसिम्हा राव ने तत्कालीन वित्तमंत्री और बेहद शानदार अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का काम शुरू किया। इस दौरान उन्होंने भारत का बाजार ग्लोबल कंपनियों के लिए खोल दिया। जिसकी वजह से विदेशी कंपनियां भारत आने लगीं। इस फैसले से न सिर्फ औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिला। बल्कि लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त हुए। वहीं देश में संपन्नता वापस लौटने लगी।

ऐसे बढ़ा विदेशी भंडार

राव और मनमोहन की जोड़ी का सबसे बड़ा लक्ष्य राजकोषीय घाटे को कम करना था। इस दौरान नरसिम्हा राव ने कई सख्त फैसले लिए। जिनका असर वित्तीय फैसलों पर अच्छा देखने को मिला और विदेशी भंडार भी बढ़ने लगा। वैश्विक इकनॉमी में भारत को बड़ा हिस्सा बनाने वाले पीएम नरसिम्हा राव को कई आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं। स्टॉक मार्केट स्कैम में घिरे हर्षद मेहता ने तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव पर आरोप लगाया कि उन्होंने पीएम को 1 करोड़ की रिश्वत दी है। वहीं सूटकेस घोटाले से नाम जुड़ने के बाद नरसिम्हा राव पर कई उंगलियां उठीं। हालांकि सीबीआई ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए राव को क्लीन चिट दे दी।

कांग्रेस ने राव को नहीं दिया महत्व

देश को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने वाले पीवी नरसिम्हा राव को अपनी ही कांग्रेस पार्टी से कोई खास तवज्जो नहीं मिली। जिसके बाद राव ने खुद पार्टी से किनारा करना शुरू कर दिया था। राव ने 10 जनपथ जाना करीब-करीब बंद कर दिया था। वहीं 23 दिसंबर 2004 में पीवी नरसिम्हा राव का निधन हो गया। जिसके बाद उनके शव को कांग्रेस कमेटी के अंदर रखने की इजाजत नहीं मिली और उनके शव को बाहर ही रखा गया।

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