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कविता

कुंडलियां … 8 मौत का चिन्तन……

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मौत का चिंतन गर चले, मौत निकट ही जान।
अपनों सेबी लेकर विदा, पहुंचेगा उस धाम ।।
पहुंचेगा उस धाम , लौटना वहां से भी तय।
गेंद बनी युग – युग से तेरी, कैसे होगी तेरी जय?
भाई के संग खेला, हाथ पकड़कर चलना सीखा।
उससे हाथ झटकने का, अब खोजे नया तरीका।।

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चार दिनों की चांदनी, अमावस का संकेत।
ज्योति बुझना चाहती, सूना लगता खेत।।
सूना लगता खेत, पिता का हल भी सूना।
सूखे मां के आंसू सारे, खोना चाहता गहना।।
ना पानी की कोई इच्छा, सूख रही है खेती।
मौन होती जाती चिड़िया, गतिशून्य जो बैठी।।

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मौत धकेला दे रही, तोड़ रही स्तम्भ ।
जिन कांधों बचपन चढ़े ,बने मेरे अवलम्ब।।
बने मेरे अवलम्ब, शक्ति सब खोते जाते।
अनंत के दूर क्षितिज में, सभी सिमटते जाते ।।
मैं चाहूं तुम सिमटे रहना, सपने बिखर रहे हैं।
कैसी ऊहापोह है? सब अपने बिछड़ रहे हैं।।

दिनांक: 26 जून 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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