Categories
भारतीय संस्कृति

गुरू गोविंद सिंह की 346वीं जयंती (5 जनवरी 2013)

कालीचरन आर्य
आपका जन्म 1667 ई. में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था।
चआपने खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल 1699 ई. के की थी।
चआप सिखों के दसवें गुरू माने जाते हैं।
चअकालियों की मान्यता है कि अब और कोई गुरू नही होगा। ये अंतिम गुरू हैं।
चनिरंकारियों की सोच है कि भविष्य में और कोई गुरू हो सकता है।
चइनका जन्मदिवस प्रकाशोत्सव के नाम से धूमधाम से मनाया जाता है। नगर में विराट जुलूस भी प्रतिवर्ष निकाला जाता है।
चइन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने दो बेटों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था।
चइन्होंने देश और समाज की रक्षा के लिए लोगों को संगठित किया।
चइन्होंने अमृत छकाने के लिए मसंद प्रथा को समाप्त किया और पहुल संस्कार पद्घति आरंभ की जिसमें सभी को बराबर का दर्जा दिया गया। इस प्रकार एक नये समाज का निर्माण हुआ जिसे खालसा कहकर पुकारा गया।
चखालसा पंथ की स्थापना पंजाब में आनंदपुर साहिब के श्रीकेसगढ़ साहब में की गयी। खालसा का अर्थ है खालिस (शुद्घ)।
चइस पंथ के माध्यम से गुरू जी ने जाति पाति से ऊपर उठकर समानता एकता राष्टï्रीयता एवं त्याग का उपदेश दिया।
चगुरूजी के पंच प्यारे थे-दयाराम (लाहौर) धरमदास (दिल्ली) मोहकम चंद (द्वारिका), हिम्मतराय (जगन्नाथपुरी) साहिब चंद (बिदर)। इन्हें सुंदर पोशाक पहनाकर अमृत छका (चखा) कर सिख के रूप में सजा दिया।उसी समय गुरूजी ने सिहों के लिए पंच ककार (केश-कंधा-कड़ा, कच्छ, कृपाण) धारणा करने का विधान बनाया।
चइसके बाद पंच प्यारों से अमृत छककर गोविंद राय गुरू गोविंद सिंह बन गये।
चगुरूजी ने खालसा का सृजन कर शक्तिशाली सेना तैयार की और जनता को राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने लायक भी बनाया।
चदेश की सेना और पुलिस में सिखों की संख्या काफी है और इनकी वीरता तथा देश भक्ति पर हम सभी को गर्व है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version