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भारतीय संस्कृति

हमारी शक्ति – हमारा परिवार एवं उसके  संस्कार”

सनातन हिंदू जाति का यह परम सौभाग्य है कि उसके पास ऐसी वैज्ञानिक जीवन पद्धति है! जिसका अनुसरण करके कोई भी व्यक्ति ऊर्जावान , प्रतिभावान तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी बन सकता है! अपना जीवन सफल कर सकता है !समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है!
जिस प्रकार सेना में एक सैनिक ,अनुशासित प्रशिक्षण पाकर खरे सोने  सा तप कर महान योद्धा बनकर निकलता है! उसी प्रकार वैदिक जीवन पद्धति का अनुसरण करके व्यक्ति निम्नलिखित विशेष गुणों का धनी बनकर परिवार समाज तथा देश के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकता है —

ओजस्वी –शक्तिशाली ,प्रभावशाली
वर्चस्व– प्रबल दावेदार
तेजस्वी– प्रतापी, तेजस्विता रखने वाला
यशस्वी — कीर्ति बढ़ाने वाला ,यश बढ़ाने वाला
इस व्यवस्था में अनादि काल से  प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक विकास हेतु वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित एक अनुशासित एवं निश्चित व्यवस्था है !जिन्हें प्राचीन काल से हम सोलह (16 ) संस्कारों के नाम से जानते हैं !इन 16 संस्कारों में  गर्भधारण (गर्भाधान) से लेकर अंतिम संस्कार (मृत्यु )तक की पूर्ण सुनिश्चित एवं वैज्ञानिक व्यवस्था है!
इन संस्कारों के अनुसरण द्वारा मनुष्य की स्वस्थ तथा निरोगी क्रियाशील 100 वर्ष की आयु  निश्चित की गई है ! हमारे वेदों के अनुसार सौ (100 ) वर्ष की आयु योग तथा प्राणायाम से शत प्रतिशत संभव है ! इस सौ (100) वर्ष की आयु

को 25- 25 वर्ष के चार भागों में विभाजित किया  गया है!  क्रम से ब्रह्मचर्य आश्रम 0- 25 वर्ष , गृहस्थाश्रम 25 से 50 वर्ष , वानप्रस्थाश्रम 50 से 75 वर्ष तथा अंत में सन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष!
उपरोक्त आश्रम व्यवस्था में ब्रह्मचर्य आश्रम अत्यधिक महत्वपूर्ण है !क्योंकि इसमें ही व्यक्ति के चरित्र निर्माण शारीरिक स्वास्थ्य, तथा शिक्षा और संस्कारों का बीजारोपण किया जाता है! जिससे प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित अनुशासित व संस्कारित होकर  अपने परिवार तथा समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके!
संस्कार मनुष्य को चरित्रवान बनाते हैं और मनुष्य के  व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करते हैं !
विद्यार्थियों के लिए जितना अक्षर ज्ञान एवं  शिक्षित होना आवश्यक है उससे अधिक उनका

संस्कारवान तथा अनुशासित होना आवश्यक है !यदि वे संस्कारित तथा अनुशासित होंगे तब ही समाज के लिए तथा स्वयं के लिए उपयोगी नागरिक बन सकेंगे!  संस्कारों का बीजारोपण तो बाल्यकाल से  क्या बल्कि गर्भ से ही शुरू हो जाता है !
विद्यार्थियों में इन संस्कारों का बीजारोपण करने के लिए एक निश्चित पद्धति  की रूपरेखा (प्रोटोकॉल ) आवश्यक है! इस हेतु 5 वर्ष से 11 वर्ष के बच्चों के लिए माता-पिता के सहयोग से प्रस्तावित दिनचर्या निम्नांकित है ‐-
(1)प्रात:काल जागने पर सर्वप्रथम माता -पिता ,दादा – दादी व अन्य बड़ों के चरण स्पर्श व नमस्ते करना!
(2 )कमरे में या खुले स्थान पर कम से कम 5 बार “ओम” का उच्चारण करना!
(3) प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर  हल्का

व्यायाम कमरे में या खुले में अवश्य करना जैसे–
#पी.टी. -5 मिनट
#उठक बैठक लगाना -5 मिनट

डंड लगाना -5 मिनट

यह प्राचीनतम व्यायाम शरीर के प्रत्येक अंग को शक्तिशाली तथा स्फूर्ति दायक प्रदान बनाता है!
(4) स्नान के बाद तथा नाश्ते से पहले 5 बार  “गायत्री मंत्र” का उच्चारण अवश्य करना!
(5) रामायण ,महाभारत, गीता आदि किसी भी ग्रंथ का 10-15 मिनट अवश्य अध्ययन करना!
(6) प्रतिदिन स्कूल जाते समय ईश्वर से प्रार्थना करना कि हे प्रभु मुझे सद्बुद्धि ,ज्ञान व सफलता प्रदान करें या
सरस्वती वंदना का मंत्र “या कुंदेंदुतुषारहारधवला ——–” का उच्चारण करें!

सायंकाल :
(1) घर के बाहर फील्ड में या पार्क में कोई भी खेल (आउटडोर स्पोर्ट्स )अवश्य खेलें जैसे—  साइकिलिंग ,क्रिकेट ,बैडमिंटन ,रेसिंग ,कबड्डी आदि!
(2) रात्रि के भोजन से पहले माता पिता बच्चों के साथ पूजा स्थल पर शुद्ध घी का दीपक व साथ में कपूर भी जलाएं तथा “गायत्री मंत्र” और “ओम जय जगदीश हरे “की आरती गाएं व  उनका अर्थ भी बच्चों को अवश्य समझाएं!  “त्वमेव माता च पिता त्वमेव ——-” प्रार्थना का पाठ कर पूजा समाप्त करें !
(3)रात्रि के भोजन के पश्चात नित्य पठन-पाठन का कार्य पूरा करें ! समय के सदुपयोग हेतु समय को घंटों के साथ मिनटों में विभाजित कर पढ़ाई करें ! यदि कोई पाठ 1 घंटे में पूरा करना है तो उसको चार भागों में बांट कर 15-15 मिनट में

एक चौथाई भाग को पूरा करें !, इससे कार्य जल्दी होगा और ध्यान नहीं भटकेगा तथा पूरी एकाग्रता पढ़ाई पर बनी रहेगी!
(4)सोने से पहले कुछ प्रेरणादाई महापुरुषों की जीवनी , क्रांतिकारियों की जीवनी तथा देश पर अपना सर्वस्व निछावर करने वाले वीर सिपाहियों की जीवनी अवश्य पढ़ें!
(5) सोते समय पलंग पर लेट कर आंख बंद कर 5 बार फिर “गायत्री मंत्र” का उच्चारण करें ! अंत में “ओम” के उच्चारण के साथ सो जाएं !इस विधि से गहरी तथा आनंददायक निद्रा का लाभ मिलेगा तथा प्रातः काल आप बिल्कुल प्रसन्न उठेंगे !
विशेष नोट:
उपरोक्त दिनचर्या में “गायत्री मंत्र” के ऊपर विशेष महत्व दिया गया है उसका कारण  जानना अति आवश्यक है !

पूरे विश्व में गायत्री मंत्र पर वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं! विशेष रूप से हमारे यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स ) द्वारा “गायत्री मंत्र” पर  शोध कार्यों ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस मंत्र के उच्चारण द्वारा मस्तिष्क में सबसे अधिक तरंगे 1,10,000 उत्पन्न होती हैं ! इन तरंगों से मस्तिष्क में होने वाला रक्त प्रवाह स्नायु मंडल  की प्रत्येक कोशिका को शक्तिशाली बनाता है! इन तरंगों का विशेष प्रभाव मस्तिष्क के अग्रभाग पर होता है! जिसका MRI द्वारा सत्यापन किया गया है ! इसी भाग में हमारे मस्तिष्क की स्मरण शक्ति निहित है! केवल 2 सप्ताह तक “गायत्री मंत्र” का उच्चारण करने से मस्तिष्क में सकारात्मक विचार तथा शांति का आविर्भाव होता है  व प्रत्येक कोशिका ऊर्जावान होकर अधिक सक्षम बनती है! जिसके कारण मनुष्य अधिक बुद्धिमान तथा शांत  चित् हो जाता है!

विदेशों में संस्कृत  मन्त्रों के उच्चारण से प्राप्त लाभ को “संस्कृत इफेक्ट” के नाम से जाना जा रहा है!  वहां  “गायत्री मंत्र” तथा संस्कृत के अन्य मंत्रों के मस्तिष्क पर होने वाले प्रभाव का सतत अध्ययन चल रहा है!

सर्वेश मित्तल
राष्ट्रीय सलाहकार,
राष्ट्रीय सैनिक संस्था रजिस्टर्ड ,
S. E.-216 शास्त्री नगर,
गाजियाबाद (UP)- भारत
मोबाइल नंबर 9818074320

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