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भारतीय संस्कृति

कल्कि अवतार : भाग 2 ( अंतिम )

Dr D K Garg

कल्कि वाला बाबा : दरअसल प्रमोद कृष्णन का वर्तमान में भगवान कल्की के नाम पर उत्तरप्रदेश में संभल ग्राम में एक मठ है। यहाँ सक्रिय कल्की वाटिका नामक संगठन का दावा है कि कल्की अवतार के प्रकट होने का समय नजदीक आ गया है। जल्दी ही वे एक सफेद घोड़े पर बैठ कर आएंगे और राक्षसों का नाश कर देंगे।
अब ये बताओ की राक्षस कौन है ?ये भी समस्या है क्योंकि रामायण और महाभारत में जो राक्षसों के चेहरे दिखाए गये जो गाँव के गाँव उजाड़ दिया करते थे, जो ऋषि मुनियों की साधना से लेकर यजशाला भंग किया करते थे, उन चेहरों के राक्षस तो अब नहीं दीखते! हाँ कर्म के अनुसार कुछ और राक्षस अब खड़े हो गये है जो इस काम को कर रहे है। क्या कल्की उनका संहार करेंगे?
प्रमोद कृष्णन स्वयं लोक सभा का चुनाव हार चूका है उसकी कल्की भगवान ने कोई मदद नहीं की। आज भी साम दाम दंड भेद और धर्म परिवर्तन के द्वारा भी सांसद बनाये जाने के लिए परेशान है। बताया जाता है की कुछ साल पहले पुलिस छापे में पकड़ी गई दो कॉलगर्ल्स ने भी इस बाबा का नाम लिया था। बताते हैं कि उनके पास सबसे महंगी लग्जरी गाड़ियों का जखीरा है।
प्रमोद कृष्णन भले ही खुद को हिंदू धर्म का गुरु बताता हो लेकिन अपने भाषणों में वो हिंदू धर्म को काफी कुछ बुरा-भला कहता हैं ।ये बाबा कल्कि अवतार के नाम पर बड़ा धंधा जमाये बैठा है और कायर और डरपोक लोग भी सोच रहे है कि उनकी रक्षा करने को आज से 4 लाख 26 हजार 881 साल बाद कोई कल्की आएगा।
अगर कोई इनसे पूछे कि इसका तार्किक आधार क्या है तो ये लोग नाराज होकर जवाब देते है कि आस्था में तर्क का कोई स्थान नहीं है मुर्ख? कल्की अवतार भी किसी समय सीमा में बंधा नहीं है उसके प्राकट्य के अपने मापदंड हैं। अंध विश्वासियों के अनेक अवतार तो आजकल जेलों में बंद हैं ।

प्रश्न है

*परमेश्वर कब देहधारण करेंगे?
*ईश्वर तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?
*यदि आपको मालूम है तो विज्ञान की भी मदद करो क्योंकि वैज्ञानिक दिन रात परिश्रम से खोज करने में लगे हुए है,और सौरमंडल में अन्य पृथ्वी को तलाश रहे है।
* पापी को दंड देने के लिए यदि ईश्वर शरीर धारण करता है तो वह सर्वशक्तिमान नही हो सकता है। सच ये है की होगा ईश्वर ने प्राण दिया है वह प्राण भी ले सकता हे।
देखा जाये तो हिन्दू धर्म के पतन का एक मुख्य कारण यही है कि यहाँ आस्था के नाम पर हर एक वह कार्य किया जा रहा है जिसका वेदों में कोई उल्लेख नहीं मिलता है । मजार पर जाते है, पीर पर चादर चढ़ा रहे है, मौला मौला के गीत गाए जा रहें हैं। वेदों में कहाँ वर्णित है? इसके अलावा हर रोज नये नये बाबा बन रहे है, जब इनसे काम नहीं चलता तो दुसरें मतों के चर्च से लेकर बंगाली बाबाओं तक सब में कूद जाते है । जबकि चार वेद ही हिन्दुओं के एकमात्र धर्मग्रंथ है । वेदों का सार है उपनिषद और इन सबमें किसी कल्की अवतार पीर मजार का कोई जिक्र नहीं है।

भगवान और कल्कि का भावार्थ

ईश्वर क्या है?
ईश्वर का ही निज नाम ओ३म् है।ईश्वर के गुणों की व्यख्या वेदो में की गई है जिसमे मुख्य गुण हैं , ईश्वर परम शक्तिशाली है। इसका प्रमाण वैसे तो सभी के सामने है ,ईश्वर किस तरह गर्भ में पल रहे शिशु को भोजन आदि से परिपक्य बनाता है ,शरीर के सभी अंग विकसित होते है ,फिर भी शाश्त्रो में क्या लिखा है ,ध्यान से पढ़े :
1) अजन्मा:-ईश्वर को वेद में अजन्मा कहा गया है।यथा ऋग्वेद में कहा है कि-
*अजो न क्षां दाधारं पृथिवीं तस्तम्भ द्यां मन्त्रेभिः सत्यैः ।

अर्थात् ‘वह अजन्मा परमेश्वर अपने अबाधित विचारों से समस्त पृथिवी आदि को धारण करता है।’
इसी प्रकार यजुर्वेद में कहा है कि ईश्वर कभी भी नस-नाड़ियों के बन्धन में नहीं आता अर्थात् अजन्मा है।
(2) ईश्वर अनन्त है:-*
अजन्मा होने से ईश्वर अनन्त है क्योंकि जन्म मृत्यु की अपेक्षा रखता है,मृत्यु अर्थात् अन्त और जन्म एक दूसरे की पूर्वापर स्थितियाँ हैं अतः ईश्वर अनन्त अर्थात् अन्त से रहित है।वेद में ईश्वर को अनन्त बताते हुए कहा है-
अनन्त विततं पुरुत्रानन्तम् अनन्तवच्चा समन्ते।
अर्थात् ‘अनन्त ईश्वर सर्वत्र फैला हुआ है।’
(3) ईश्वर निर्विकार है:-*
अजन्मादि गुणों की पुष्टि के लिए वेद में ईश्वर को निर्विकार कहा है क्योंकि विकारादि जन्म की अपेक्षा रखते हैं और ईश्वर को ‘अज’ अर्थात् अजन्मा कहा है।अतः वह निर्विकार अर्थात् शुद्धस्वरुप है।वेद की इसी मान्यता के आधार पर महर्षि पातञ्जलि ने योग दर्शन में लिखा है-
‘क्लेशकर्म विपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविषेश ईश्वरः’
अर्थात् जो अविद्यादि क्लेश,कुशल-अकुशल,इष्ट-अनिष्ट और मिश्रफल दायक कर्मों की वासना से रहित है वह सब जीवों से विषेश ईश्वर कहाता है।
*(4) ईश्वर अनादि है:-

ईश्वर का कोई आदि नहीं है इसलिए वह अनादि है क्योंकि आदि के साथ अन्त भी लगा होता है अर्थात् जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी अवश्य होती है और जिसकी उत्पत्ति होती है उसका विनाश भी अवश्य होता है।इस विषय में यह विचार करना भी आवश्यक है कि आदि और अन्त क्या है?वास्तव में किसी तत्व के प्रकट होने को उत्पन्न होना कहा जाता है अर्थात् उसका अप्रकट हो जाना अन्त कहलाता है अर्थात् जब परमाणुओं के विशेष संयोग से कोई विशिष्ट वस्तु प्रकट होती है तब उस वस्तु की उत्पत्ति मानी जाती है और परमाणुओं के विखण्डित हो जाने को ही उस वस्तु का नष्ट होना कहा जाता है।
सामवेद में ईश्वर के अनादि स्वरुप को निरुपित करते हुए कहा है-
“जजुषा सनादसि” अर्थात् ईश्वर सनातन(अनादि) है।
(5) ईश्वर अनुपम है:-*
वेद के अनेक मन्त्रों में ईश्वर को अनुपम कहा है अर्थात् उसके समान शक्ति सम्पन्न अन्य कोई नहीं इसलिए वह अनुपम है। जैसा कि सामवेद में कहा है कि-
न कि इन्द्र त्वदुत्तरं न ज्यायो अस्ति वृत्रहन् ।न क्येवं यथा त्वम् ।।
अर्थात् ईश्वर के समान न ही तो कोई श्रेष्ठ है और न ही उससे ज्येष्ठ है।अथर्ववेद में कहा है ‘तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे’ अर्थात् संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे ईश्वर की उपमा दी जा सके इसलिए वह अनुपम है।
(6) सर्वाधार:-
वेद की चारों मन्त्र संहिताओं में ईश्वर को समस्त चराचर जगत एवं जीवों का आधार कहा गया है अर्थात् समस्त पृथ्वी आदि लोक-लोकान्तर उसी के आधार पर टिके हैं इसलिए वह सर्वाधार है।परमात्मा की शक्ति का वर्णन करता हुआ उपनिषद कहता है-“सूर्य,चन्द्रमा,तारे,बिजली और अग्नि ये सब ईश्वर में प्रकाश नहीं कर सकते किन्तु इन सबको प्रकाशित करने वाला एक वही ईश्वर है।”
ऋग्वेद में कहा है-
स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।अर्थात् ईश्वर पृथ्वी और द्युलोक दोनों का आधार है,वही सबका आधार है।
प्रश्न:-जब ईश्वर सबका आधार है तब ईश्वर का आधार क्या है?
उत्तर:-ईश्वर सबका आधार होने के साथ-साथ स्वयं अपना भी आधार है क्योंकि आधार उसको कहा जाता है जो सर्वशक्तिमान है इसलिए वह सबका आधार है और उसका अन्य कोई आधार नहीं हो सकता क्योंकि किसी का आधार उससे अधिक शक्तिशाली ही होता है,लोक में भी हम देखते हैं कि प्रत्येक निर्बल अपने से सबल के आश्रय में ही रहता है और कोई भी अपने से निर्बल के आश्रय में नहीं रहता इसी प्रकार क्योंकि ईश्वर से अधिक शक्ति सम्पन्न अन्य जीवादि कोई नहीं इसलिए उसका कोई आधार नहीं।
उदाहरणार्थ-एक राज्य में सब राजा के आश्रित होते हैं किन्तु राजा किसी के आश्रित नहीं होता इसी प्रकार ईश्वर भी सर्वाधार है।
देखिये सीधी सरल बात है ईश्वर वह है जो नित्य है अर्थात् आज है कल भी था और कल भी होगा। वह अजन्मा है अर्थात् वह जन्म मरण से मुक्त है। फिर क्षणभंगुर अवतार लेना ईश्वर का नही रह जायेगा। आपकों यह समझने की आवश्यकता है कि ईश्वर इस चराचर जगत मे हस्तक्षेप नही करता।

कल्कि का शब्दार्थ ?
जिस क्षेत्र में कल्कि भगवान् से मदद की उम्मीद की जा रही है ,वहा कुछ वाक्य बहुत प्रसिद्द है -`कल को भगवान ‘ मदद करेंगे, आज नहीं कल की बात करो ”। जो की संक्षिप्त में -बोलचाल में -कालको भगवान् मदद करेंगे , कल्कि बात करो , बोला जाता है। ऐसी अलोक में कल्कि शब्द एक लोकभाषा से आया है कही भी संस्कृत और हिंदी भाषा में नहीं है।
प्रश्न:- अवतारवाद के मानने से क्या हानी है?
उत्तर:- अवतारवाद के मानने से:-
(१) पुरूषार्थ छोड़ मनुष्य भाग्यवादी हो जाता है। वो सोचता है कि मेरी रक्षा आकर कोई अवतार ही करेगा।
(२) समाज अनेकों ईश्वरों में बंट जाता है जिससे की राष्ट्र कमज़ोर हो जाता है।
(३) अनेकों पाखंड चलने लगते हैं कई मनुष्य भगवान के अवतार बनकर जनता को ठगते हैं और उनका शोषण करते हैं। और लोगों को अवतार के भरोसे बैठ कर नपुंसक बनाते रहते हैं।
(४) निर्बल हुए धर्म समाज पर अनेकों विदेशी ईसाई और मुसलमान मत परिवर्तन का गंदा खेल खेलते हैं।
(५) अनेकों मत होने से देश टूटने लगता है।
प्रश्न:- ईश्वर अवतार लेकर धरती पर दुष्टों का विनाश करने आते हैं।
उत्तर:- ईश्वर सर्वव्यापक है वा एकदेशी? -उत्तर होगा सर्वव्यापक। अब आया-जाया तो तब जाता है जब कोई एकदेशी हो। उदाहरण के लिए मैं एकदेशी हूं। और मुझे ब्राज़ील देखना है तो मुझे वहाँ जाकर ही देखना होगा। लेकिन यदि मैं सर्वव्यापक होता तो मुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि आया-जाया तो वहां जाता है जहां हम हों न। ईश्वर सब जगह है तो उसे आने-जाने की क्या ज़रूरत? रही बात दुष्टों के संहार की। ईश्वर सबके अंदर है। अब ईश्वर को यदि दुष्टों को मारना है तो वो उन दुष्टों की दिल की धड़कने, सांस आदि रोक कर भी मार सकता है। अवतार की क्या ज़रूरत?

ये जो कल्कि वाली कल्पना करने वाला विचार है, पूर्णतया भ्रमित करने वाला है,ईश्वर की महिमा को ना समझने वाली मूर्खता है।एक छोटा सा उदाहरण समझे।
विष कृमि बनाम सूर्य किरणें


1.ऋगवेद-1/191/13 के अनुसार विष कृमि सूर्य के प्रकाश में घातक प्रभाव नहीं कर पाते।
2.ऋगवेद-1/191/9 के अनुसार सूर्य किरणें विषैले प्रभावों को नष्ट करने वाली है। ये विष को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
3.ऋगवेद-1/191/10 के अनुसार सूर्य किरणें प्राणी शरीर से जो विष को खेंच कर अपने में मिला लेती है, सूर्य पर उसका कोई घातक प्रभाव नहीं पडता।

ईश्वर कमाल का रचनाकार है।
इस कल्कि अवतार के चक्कर में पड़े है उनके लिए यह लोकोक्ति एक प्रचलित कहावत
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम .
भाई लोगो,इसलिए अभी भी किसी अवतार के चक्कर में कब तक सतुर्मुर्ग कि तरह रेत में मुह घुसा कर कब तक जिओगे?मुह बाहर निकालो और चारो तरफ देखो शत्रु नजर आ जायेगा। कृपया करके हमें खुद ही कल्की भगवान वाले कार्य करने होंगे और धर्म रक्षा के लिए कार्य करना होगा यदि धर्म सुरक्षित रहेगा तभी हमारा राष्ट्र सुरक्षित होगा और राष्ट्रीय सुरक्षित होगा तो हम सुरक्षित होंगे।
कबीर ने कहा है:
काल करे सो आज कर
आज करे सो अब,
अत: कल्कि अवतार कभी नही होगा। हाँ उसके इंतजार मे बैठे सनातनधर्मियो की उल्टी गिनती जरूर चल रही है।जाग गये तो बच जाओगे नही तो अन्तिम संस्कार भी करने वाला कोई नही मिलेगा।

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