Categories
इतिहास के पन्नों से कविता

बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल के अंतिम हृदय उद्गार*_______

हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम |
वश नहीं चलता है रह-रह कर पछताते हैं हम ||

स्वर्ग के सुख से भी ज्यादा सुख मिला हमको यहां|
इसलिए तजते इसे हर बार शरमाते हैं हम ||

ऐ नदी, नालों, दरख्तो , ये मेरा कसूर ,
माफ करना जोड़ ,कर ,तुमसे फरमाते हैं हम|

मातृभूमि! प्राणप्यारी! बहुत दुख तुमको दिया ,
कर क्षमा अपराध बारंबार सिर नवाते हैं हम |

कुछ भलाई भी ना हम तुम सब की खातिर कर सके
हो गए बलिदान बस संतोष यू पाते हैं हम |

मां! तुझे इस जन्म में कुछ सुख ना दे पाए कभी ,
फिर जन्म लेंगे यही कौल कर जाते हैं हम |

शीघ्र करके यत्न मेरे देश! फिर आकर तुझे ,
दुश्मनों से छीन लेंगे यह कसम खाते हैं हम|

शहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने गोरखपुर जेल सन 1927 में फांसी चढ़ने से कुछ घंटे पूर्व इस रचना को जेल में लिखा था.. जिसे मातृभूमि विनय उन्होंने नाम दिया| भारत माता को समर्पित करते हुए अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किए थे ..बहुत विशाल हृदय था शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का |

आर्य सागर खारी✒✒✒

Comment:Cancel reply

Exit mobile version