एक्स-रे जिसने चमड़ी के ढक्कन को हटा दिया*


1895 में हुई एक्स-रे की खोज ने चिकित्सा विज्ञान को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। भौतिक विज्ञान चिकित्सा विज्ञान को मानो पंख लगा दिए…. एक्स-रे मानव सहित अन्य जीव-जंतुओं के शरीर के अंदर झांकने के लिए आज भी सबसे सस्ती सुलभ तकनीक….है चिकित्सकों के लिए तो यह दिव्य चक्षु ही है…. विज्ञान के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लाभदायक खोजों में से एक खोज है एक्स-रे ।एक कुशल रेडियोलॉजिस्ट एक्स- रे से बड़ी से बड़ी अगं की सरचंनागत विकृति को भाप लेता है। टूटी अस्थि को साधारण आदमी भी इसकी मदद से देख सकता है । जिस वैज्ञानिक ने एक्स-रे की खोज की वह तो किसी अन्य शोध कार्य को अपनी प्रयोगशाला में अंजाम दे रहे थे वह तो किसी बंद कांच की ट्यूब में उच्च विद्युत धारा से गैसों में उत्पन्न होने वाली चमक प्रतिदीप्ति पर अध्ययन कर रहे थे ।एक्स-रे की खोज तो एक्सीडेंटल तौर पर हो गई…….एक्स- रे उच्च आवृत्ति की नैनोस्केल की तरंग दैर्घ्य वाली है ,उच्च ऊर्जा की अदृश्य किरणे होती हैं। यह भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन ही है भौतिक विज्ञान की दृष्टि से सूर्य के प्रकाश , एक्स-रे में कोई भेद नहीं है कह सकते हैं ऐक्स किरणे प्रकाश किरणों का ही एक हिस्सा है बस हम चक्षु इंद्रिय से इसका प्रत्यक्ष नहीं कर पाते लेकिन एक्स किरणें जिस भी वस्तु पदार्थ पर पड़ती है चाहे मानव देह हो या सोना चांदी कोयला ईट मिट्टी सभी को भेदते हुये उनकी अंदरूनी संरचना का खाका खीच देती है। अदृश्य होने के कारण इन्हें एक्स किरण नाम दिया गया। एक्स-रे के खोजकर्ता विलेहम रोन्टजन को 1901 में फिजिक्स का प्रथम नोबेल पुरस्कार मिला। रोन्टजन जब दसवीं क्लास में थे तो उनके उन्हें स्कूल से निष्कासित कर दिया गया उनकी क्लास के किसी शरारती बच्चे ने क्लास टीचर का अजीबोगरीब कार्टून बना दिया । स्कूल प्रबंधन ने बगैर जांच किए निर्दोष रोन्टजन को दोषी बना दिया। नतीजा विलन को जर्मनी नीदरलैंड सहित यूरोप के किसी भी स्कूल में हाईस्कूल मैं दाखिला नहीं मिला 3 वर्ष खाक छानने के पश्चात उन्हें यूट्रेक्ट पॉलिटेक्निक स्कूल में पढ़ने का सौभाग्य मिल गया वहीं से जिज्ञासु प्रवृत्ति के विल्हेम ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा….। विल्हेम रोन्टजन का जीवन असंख्य हाई स्कूल छात्राओं के लिए प्रेरणादायक है। भौतिक चिकित्सा विज्ञान को बदल कर रख देने वाली अपनी खोज के लिए उन्होंने कोई पेटेंट नहीं मांगा ना ही कोई रॉयल्टी ।अपनी खोज को उन्होने मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया यह सब कुछ कितना आश्चर्यजनक है 1923 में आंतों के कैंसर से दर्दनाक मौत उनकी हुई मरने से पहले वह मानव जीव कल्याण का अपना कार्य पूरा कर गये आज 27 मार्च को उनकी जन्म जयंती है। यह कितना आश्चर्यजनक है महज 128 वर्ष पहले ही इंसान अपने शरीर के अंदर झांक पाया है एक्स-रे तकनीक के माध्यम से करोड़ों वर्ष की अपनी यात्रा में वह भी प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष माध्यम से प्रकृति के गूढथम तंत्रों के अवलोकन की भी मानवीय सीमा सीमा है जहां हमारी इंद्रियों का सामर्थ्य शिथिल हो जाता है वहां अनुमान से ही काम चलाना पडता है भौतिक विज्ञान की सीमा वहा समाप्त होती है अध्यात्मिक विज्ञान वहां से शुरू होता है उन तत्वों को देखने के लिए ऋषि दृष्टि चाहिए योग के नेत्र चाहिए और उन नेत्रों का अभाव भौतिक विज्ञान को के पास आज भी बना हुआ है, बना भी रहेगा।

आर्य सागर खारी✍

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