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भारतीय संस्कृति

पंच एवं पंचायत की भारतीय परंपरा

ऋषिराज नागर (एडवोकेट)

हमारे देश में पंच को परमेश्वर मानते हैं। पंच भी वही कहलाता है जो न्याय पूर्वक फैसला करता है,आज के आधुनिक युग में पंच – पंचायत का वैज्ञानिक प्रभाव काफी कम होता जा रहा है। जैसे परमपिता परमेश्वर अपनी व्यवस्था में प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करते हुए उसे उसके कर्मों का फल देता है, वैसे ही बहुत ही सटीक, संतुलित और नफरत तुला न्याय करने वाला व्यक्ति भी पंच परमेश्वर कहलाता है। उसके भीतर भी परमेश्वर का अंश उस समय होता है जिस समय वह न्याय कर रहा होता है। ग्रामीण आंचल में भोले – भाले अनपढ़ लोग आज भी पंच – पंचायतों का सम्मान करते हैं, और अपने वाद – विवादों का निपटारा पंचायतों के द्वारा अच्छी प्रकार, निपटा लेते हैं। पढ़े – लिखे व सभ्य व्यक्ति भी काफी हद तक पंचायत व पंच लोगों के द्वारा मामलों को सुलझाने में विश्वास करते हैं, क्योंकि कोर्ट कचहरी के चक्कर और खर्चों से लोग बचना चाहते हैं। लेकिन पंच पंचायतो में आज के समय में पक्षपात का दृष्टिकोण बढ़ रहा है।जिसकी लाठी उसकी भैंस है। लोग सोचते है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस ।

जब कुमति का वास हो, वहां स्वप्न में भी हल हो नहीं सकता। कुमति लोक परलोक दोनों का नाश कर देती है।

जहां कुमति कै वासा है, सुख सपनेहु नाही।
फोरि देत घर मोर तोर – करि, देखे आपु तमाशा है।
कलह काल दिन रात लगावै, करै जगत उपहासा है।
‘संत पलटू साहिब’

अर्थात् संत पलटू साहिब जी कहते हैं कि जहां पर कुमति का निवास है, वहां पर स्वप्न में हल या निपटारा नहीं हो सकता है, बुरी मति इन्सान की लोक परलोक दोनों का नाश कर सकती है, इन्सान ता उम्र तंग व परेशान रहता है, और दूसरों को परेशान करता है। जल्दबाजी में अपना पराया सोचता है और गलत निर्णय कर रात-दिन क्लेश करके समाज और दुनिया उपहास या हंसी का कारण बन जाता है। इन्सान या मनुष्य को परमात्मा को हाज़र नाज़िर मानकर खोटे या बुरे कर्मों से बचना चाहिए I अपनी गलती को मानकर दूसरों की गलती को क्षमा करने का प्रयास करना चाहिए। इससे हम अपना लोक – परलोक सुधार सकते हैं। यदि हम घर में अथवा घर से बाहर, माहौल या वातावरण सही रखते हैं प्रेम प्यार रखते हैं तो परमात्मा भी हम पर प्रेम रखता है। हम अनेक विपत्तियाँ से बच जाते है। यह आदत हमें अपने बाल-बच्चों को सिखानी चाहिए और बच्चो को समय देकर बीच – बीच में चेताना या बताना चाहिए।

जो तो को काटे बोय ता हि बोय तू फूल।
तेरे फूल को फल है वहि, का त्रिसूल ॥

जब हम सन्त महात्माओं के उक्त कथन के अनुसार सोचते है और उसका अनुसरण करते हैं तो हम अनेक समस्याओं से बच निकलते हैं। पंच – पंचायत के ‘दायरे में यदि हम जाते है तो कहां पर हमें अच्छी या मृदु भाषा का, यदा योग्य प्रयोग करना चाहिए। वैसे भी समाज में जो मनुष्य अच्छी और मृदु भाषा का प्रयोग करता है वह सम्मान योग्य होता है।
पंच – पंचायत में कुमति वाले मनुष्य की कभी भी जिम्मेवारी नहीं लेनी चाहिए क्योंकि कुमति पर चलने वाले व्यक्ति लालच में आकर अपनी बात या वचन को टालता रहता है और वचन का पक्का नहीं होता है। कुमति वाले लोगों की संगति भी बुरी होती है उनका साथ देना तो और भी घातक होता है। इससे समाज में अराजकता का वास हो जाता है।जिस कारण उसकी जिम्मेवारी लेकर दूसरा व्यक्ति भी वचन का कमजोर होकर अपमान को कारण बन जाता है।
पंच – पंचायत में निर्णय कानून के दायरे में रहकर करना चाहिए। कानून या समाज को, सम्मान देकर ही पंचायती निर्णय स्वीकार हो जाते हैं। अन्यथा पंचायती निर्णय परेशानी का सबब बन सकते हैं। आजकल खाप पंचायतों, में निर्णय देश के कानून के विरुद्ध होने के कारण पंचायत के अन्दर निर्णय देने वाले पंचो को भी कानून के कटघरे में लाकर खड़ा कर देते हैं।आज आवश्यकता इस बात की है कि न्याय सील पंच फिर से समाज की न्याय व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह करें।

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