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इतिहास के पन्नों से

आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) ,की अंतर्देशीय गुप्तचर व्यवस्था*|


आचार्य कौटिल्य ने राष्ट्र की अंदरूनी व्यवस्था के लिए आंतरिक गुप्तचर व्यवस्था को बहुत जरूरी बताया है|
आचार्य कौटिल्य की मान्यता यह है कि किसी राष्ट्र को शत्रु देश के साथ-साथ उस देश की आंतरिक नागरिक वर्ग से भी खतरा होता है…| ऐसे नागरिकों को उन्होंने राष्ट्र कंटक से उच्चारित किया है.. जो राष्ट्र के नागरिकों को पीड़ा पहुंचाते हैं प्रजा जिनसे उत्पीड़ित होती है इसमें राज कर्मचारी ,व्यापारी , शिक्षक वर्ग शिल्पी कर्मचारी वर्ग, राष्ट्र के उद्यमी भी हो सकते हैं जो अपने काम में ईमानदारी नहीं बरतते | आज के परिपेक्ष में डॉक्टर वकील व्यापारी भ्रष्ट राजनेता नौकरशाह के भ्रष्ट निरंकुश आचरण से आप इसे समझ सकते हैं|

प्रजा से इस वर्ग की सुरक्षा के लिए आचार्य कौटिल्य ने 9 प्रकार के गुप्त चरो की व्यवस्था की… यह राज कर्मचारी व्यापारी शिल्पी वर्ग की पल-पल की सूचना राजा अर्थात प्रधानमंत्री को देते थे..| जंगल की आग से लेकर राष्ट्रद्रोह तक की सूचना पलक झपकते ही राजा को मिल जाती थी| कम से कम तीन गुप्त चरो की रिपोर्ट का मिलान किया जाता था यदि रिपोर्ट अलग-अलग होती थी तो गुप्त चरो को भी दंड की व्यवस्था थी अकेले में उन्हें पीटा जाता था जिसे उपांशु दंड बोला जाता था |

आचार्य कौटिल्य अर्थात चाणक्य की इस व्यवस्था के तहत मजाल हो किसी की कोई व्यापारी मिलावट खोरी जमाखोरी कर पाए कोई राज्य कर्मचारी भ्रष्टाचार या प्रजा का उत्पीड़न कर सके या कोई कारीगर या पेशेवर सेवा से अधिक वस्तु का मूल्य मांग सकें | गुप्त चरो के परिवारों का लालन-पालन राजा के द्वारा ही किया जाता था मुंह मांगा वेतन आवास भोजन की उत्तम व्यवस्था उनके लिए होती थी| 9 में से 8 गुप्तचर स्थाई संस्था के रूप में रहते थे संत्री नामक गुप्त चर घूम घूम कर जानकारी एकत्रित करते थे… उदास्थित नामक गुप्तचर राष्ट्र के विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जा रहा है उसका निरीक्षण रिपोर्ट राजा को देते थे… आजकल जामिया मिलिया या जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थानों में देशद्रोह को पनपने रोकने के लिए हमारे पास कोई कार्ययोजना नहीं है| राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त आचार्यों( professor) को तुरंत मृत्यु दंड मिलता था गुप्तचरो की रिपोर्ट के आधार पर… जब आचार्यों को दंड मिलता था तो छात्र राष्ट्र विरोधी भावना सपनों में भी उनके अंदर प्रवेश नहीं कर पाती थी | आचार्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र के प्रथम अधिकरण में इसका विस्तृत उल्लेख है|

शेष अगले अंक में…

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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