वेद और वैदिक संस्कृति की विशिष्टता ….. भाग – 2

वेदों की अलंकारिक भाषा का अनुचित अध्ययन, अनुशीलन, परिशीलन एवं विश्लेषण

राजाओं और नदियों आदि के वर्णन जो वेद में आए हैं वह सभी अलंकारिक हैं।
यथा वेदों में अनार्यों में वृत्र ,दनु ,सुश्न, शम्बर, बंगृद, बली, नमुचि, मृगय, अर्बुद प्रधान रूप से लिखे गए हैं। दनु के वंशीधर दानव थे जिनका कई स्थानों में वर्णन है ।यह दोनों वृत्रासुर की माता थी। व्रतृ के 99 किले इंद्र ने तोड़े थे। 99 और 100 वृत्रों का कई स्थानों पर वर्णन आया है ।शम्बर और बंगृद के सौ किले ध्वस्त किए गए। शम्बर के किले पहाड़ी थे। और दिवोदास के कारण इंद्र ने उसे मारा था। दिवोदास सुदास के पिता थे ।इससे शम्बर का युद्ध 26 वीं शताब्दी संवत पूर्व का समझ पड़ता है। सुश्न का चलने वाला किला ध्वस्त हुआ। चलने वाले किले से जहाज का प्रयोजन समझ पड़ता है। पिप्र के 50,000 सहायक मारे गए। बली के 99 पहाड़ी किले थे। यह सभी जीते गए। सिवाय शम्बर के और सब का पूर्वापर क्रम ज्ञात नहीं है।
अनार्य के बाद आर्यों के नामों पर विचार करते हैं। जो वेदों में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। आर्यों में ऋषियों के अतिरिक्त मनु ,नहुष, ययाति, इला, पुरुरवा, दिवोदास, मांधाता, दधीच, सुदाश, ययाति के यदु आदि पांचों पुत्र और पृथु की प्रधानता है।यदु जाति के यदु आदि पांचों पुत्रों के वर्णन कई स्थानों पर आए हैं। दिवोदास और सुदाश के सबसे अच्छे क्रमबद्ध वर्णन है। इस विषय में वशिष्ठ का सातवां मंडल बहुत उपयोगी है। इसके पीछे विश्वामित्र का तीसरा मंडल भी अच्छी घटनाओं से पूर्ण है ।दिवोदास तृत्सु लोगों के स्वामी थे। वैदिक समय में सूर्यवंशियों की संज्ञा तृत्सु थी ।ऐसा समझ पड़ता है। सुदास और उनके पुत्र कलमाषदास सूर्यवंशी थे। और पुराणों के अनुसार भगवान रामचंद्र का अवतार इन्हीं के पवित्र वंश में हुआ था। यही लोग वेद में तत्सु कहे गए हैं ।इन्हीं बातों से जान पड़ता है कि सूर्यवंशी उस काल में तत्सु कहलाए थे।

एक कहानी के अनुसार वेदों में निम्न प्रकार भी आया, जिसको भ्रमवश, अज्ञानतावश इतिहास समझा गया है। उदाहरण के लिए देखें।

“राजा दिवोदास बहुत बड़े विजयी थे। इन्होंने तुर्वश,द्रहृयु और शम्बर को मारा और गंग लोगों को भी पराजित किया। नहुषवन्शी इनको कर देने लगे थे। इनके पुत्र सुदाष ने इनकी विजयों को और भी बढ़ाया। सुदास का युद्ध वैदिक युद्दों में सबसे बड़ा है। नहुषवन्शी यदु ,तुर्वश, अनु,दृहृयु के संतानों ने भारतों से मिलकर तथा बहुत से अनार्य राजाओं की सहायता लेकर सुदास को हराना चाहा। नहुषवन्शियों की सहायतार्थ भार्गव लोग परोदास, पकथ, भलान, अलिन ,शिव, विशात,कवम, युद्धामधि, अज, शिगरु और चक्षु आए और 21 जाति के वैकरण लोग भी पहुंचे। राजा वर्चिन एक बहुत बड़ी सेना लेकर इन का नेता हुआ। कितने ही सिम्यु लोग भी नहुषों की सहायतार्थ आए ।फिर भी नहुष वंश का मुख्य राजा पूरुवंशी इस युद्ध में सम्मिलित न हुआ ।नहुषों ने रावी नदी के दो टुकड़े करके एक नहर निकालकर नदी को पार करना चाहा ।किंतु सुदास ने तत्काल धावा बोल दिया ।जिससे गड़बड़ में नहुषों की बहुत सी सेना नदी में डूब मरी। कवष और बहुत से दृहृयुवंशी डूब गए ।वहां विकराल युद्ध हुआ। जिसमें सुदास ने अपने सारे शत्रुओं को पूर्ण पराजय दी ।अनु और दृहृयु वन्शियों के 66 वीर पुरुष और 6000 सैनिक मारे गए ।और आनवों का सारा सामान लूट लिया गया। जो सुदास ने तृत्सु को दे दिया ।सात किले भी सुदास के हाथ लगे और उन्होंने युद्धामधि को अपने हाथ से मारा। राजा वर्चिन के 100000 सैनिक युद्ध में मारे गए ।अज, शिगरु और चक्षु ने सुदास को कर दिया। इस प्रकार रावी नदी पर यह विकराल युद्ध समाप्त हुआ। सुदास ने तत्पश्चात यमुना नदी के किनारे भेद को पराजित करके उसका देश छीन लिया ।इस प्रकार भेद सुदास की प्रजा हो गया ।आर्यों का नागों से वेद में कोई युद्ध नहीं लिखा गया। केवल एक बार इतना लिखा हुआ है कि पेदु नामक वीर पुरुष के घोड़े ने बहुत से नागों को मारा ।इससे जान पड़ता है कि आर्यों का नागौं से कोई छोटा सा युद्ध हुआ था। विश्वामित्र ने अपने मंडल में भारतीयों का वर्णन बहुत सा किया है। इन लोगों की नहुसों से एकता सी समझ पड़ती है।
वेदों के आधार पर यह संक्षिप्त राजनीतिक इतिहास इसी स्थान पर समाप्त होता है।
यह पुराणकार वेदों से इतना ही इतिहास निकाल पाए। परंतु यह इतिहास किसी और ने नहीं देखा न लिखा। इस युद्ध का वर्णन तथा उपर्युक्त सब वीरों राजाओं और जातियों के नाम पुराणों में नहीं मिलते। किंतु ऋग्वेद के सातवें मंडल में महर्षि ने इसका बड़ा हृदयहारी वर्णन किया है ।
प्रश्न 197
वेदों के ऐतिहासिक पुरुषों का अर्थात नहुष ययाति के स्वर्ग का वर्णन तो पुराणों ने किया। परंतु इस युद्ध का वर्णन क्यों नहीं किया ।वास्तविक बात तो यह है कि पुराण तो मिश्रित इतिहास कहते हैं इसमें तो मिश्रण भी नहीं है ।यह तो कोरे वैदिक अलंकार है। इंद्र, व्रतृ के वर्णन है। एवं तारा तथा ग्रहों के योग हैं ।इन योगों को गृह युद्ध भी कहते हैं।
इन सब वर्णनों से नहीं ज्ञात होता कि यह सब मनुष्य थे। इंद्र ,वृत्र, त्रिशंकु,विश्वामित्र ,पुरुरवा ,उर्वशी, नहुष ययाति, शुक्र और देवयानी आदि सब आकाशीय पदार्थ हैं। जिस दिवोदास को आप शम्बर का मारने वाला कहते हैं वह पृथ्वी का मनुष्य कैसे हो सकता है। शम्बर तो मेघ का नाम है। इसी प्रकार चलने वाला किला भी मेघ है । व्रतृ भी मेघ ही है। इंद्र वृत्र का अलंकार तमाम वेदों में भरा है।

इंद्र और वृत्र से संबंध रखने वाला समस्त वर्णन मेघ और विद्युत का है। जो आकाश में चरितार्थ हो सकता है। शेष आयु, नहुष, ययाति आदि का वर्णन वेदों में अन्य पदार्थों से संबंधित है।
इससे सिद्ध हुआ कि वेदों में राजाओं का इतिहास नहीं है। पुरुरवा सूर्य का पर्याय है। उर्वशी उसकी एक किरण है। दोनों अग्नि के रूप में कहे जाते हैं। अग्नि से अग्नि की उत्पत्ति होती है इसलिए आयु भी अग्नि ही है ।अप्सरा भी सूर्य की किरण को कहते हैं। मेनका और अप्सरा सूर्य की किरणें है। नहुष सूर्य के लिए कहते हैं। इन नामों से संबंधित ऋग्वेद में अनेक मंत्र आए हैं्।
क्रमश:

देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र

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