चित्त-बुद्घि दोनों ही अंग, ज्ञान से हैं भरपूर

बिखरे मोती-भाग 217

गतांक से आगे….
इससे स्पष्ट हो गया है कि इन सबका आधार ‘मन’ है। अत: वाणी और व्यवहार को सुधारना है तो पहले मन को सुधारिये। इसीलिए यजुर्वेद का ऋषि कहता है-‘तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु’ अर्थात हे प्रभु! मेरा मन आपकी कृपा से सदैव शुभ संकल्प वाला हो, अर्थात अपने तथा दूसरे प्राणियों के लिए हमेशा कल्याणकारी संकल्प वाला हो, किसी का अहित करने की इच्छा वाला यह मेरा मन कभी न हो।
ध्यान रखो, किसी के कानों-कान कही हुई अच्छी अथवा बुरी बात भी लौटकर एक दिन आपके पास आ जाती है। यहां तक कि मन में उठने वाली भाव तरंगों को आंखें और चेहरे की भाव भंगिमा जाहिर कर देती है, जो परावर्तित होकर तथा पहले से कई गुणा अधिक होकर आपके पास ही आती है। इसलिए मन को सर्वदा सहज, सरल सरस रखिये, ऋजुता (कुटिलता रहित होना) से परिपूर्ण रखिये। भक्ति और भलाई के विचारों से ओत-प्रेत रखिये।
चित्त-बुद्घि दोनों ही अंग,
ज्ञान से हैं भरपूर।
जो शोधन इनका करै,
प्रभु ना उससे दूर ।। 1151 ।।
व्याख्या:-उपरोक्त दोहे की व्याख्या करने से पूर्व इस बात पर विचार करना प्रासंगिक रहेगा कि चित्त किसे कहते हैं? बुद्घि किसे कहते हैं? दोनों के उपादान कारण क्या-क्या हैं? तथा इनकी उत्पत्ति कैसे होती है? दोनों का निवास स्थान कहां है? दोनों का व्यापार (कार्य) क्या है? इत्यादि। चित्त किसे कहते हैं :-‘चिति संज्ञाने’ धातु से ‘चित्त’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ है,-ज्ञान का साधन। यह ज्ञान स्वरूप ‘जीवात्मा’ के संयोग से चेतनवत् बनकर ‘जीवात्मा’ के लिए ज्ञान तथा कर्म द्वारा समस्त भोगों का सम्पादन करता है। जीवात्मा सहित सब संस्कारों, वासनाओं तथा स्मृतियों को बीज-रूप में संजोकर रखता है। बुद्घि किसे कहते हैं-‘बोधनात् बुद्घि’ अर्थात समस्त ज्ञान तथा विज्ञान मात्र को ग्रहण करके, विभेदों के निश्चयात्मक रूप से निर्णायक तत्व की संज्ञा बुद्घि है। बुद्घि और चित्त की उत्पत्ति तथा इनके उपादान कारण-सृष्टि के उत्पत्ति काल में ब्रह्म के ईक्षण रूप संकल्प से, साम्यावस्था प्रकृति से, एक प्रकाशात्मक तत्व महत् सत्व उत्पन्न होता है।
1. सर्वोत्कृष्ट महत् तत्व से समष्टि चित्त उत्पन्न होता है, फिर समष्टि चित्त से व्यष्टि चित्त उत्पन्न होता है। अत: स्पष्ट है कि चित्त का उपादान कारण ‘महत्तत्व’ है।
2. महत् रजोगुण से समष्टि बुद्घि तत्व बनता है, फिर समष्टि बुद्घि तत्व से व्यष्टि बुद्घि तत्व की उत्पत्ति होती है। अत: स्पष्ट है कि बुद्घि का उपादान कारण महत् रजोगुण है।
चित्त का निवास स्थान-हमारे वक्षस्थल के अंदर दोनों फुफ्फुसों के बीच बांयी स्तन की घुंडी के ठीक नीचे जो रक्ताशय नामक हृदय स्थान है, और जहां पर धक-धक शब्द होता रहता है, इसी के बीच में, शिशु के अंगूठे के अगले पोरे के समान एक पोल है, जिसमें चित्त का निवास स्थान है, इसी चित्त में जीवात्मा भी रहता है। यह एक बहुत छोटा सा उभरा हुआ स्थान है। इसमें निरन्तर ही स्वाभाविक गति होती रहती है। चित्त और आत्मा का अथवा कारण शरीर का प्रभाव यहां ही सबसे पहले पड़ता है। इसी के प्रभाव से हृदय में गति आरम्भ होकर सारे शरीर में नाडिय़ों द्वारा फैल जाती है और चेतना का संचार हो जाता है।
क्रमश:

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