aatma-soul

शान्ति की करे कामना,
मन में भरे विकार।
निर्विकार ग़र मन रहे,
शान्ति का आधार॥2778॥

तत्त्वार्थ:-संसार में प्रत्येक व्यक्ति ‘ मन की शान्ति ‘ चाहता है अक्सर बड़े-बड़े धनपति यह कहते सुने जाते हैं – परमपिता परमात्मा का दिया सब कुछ है , कार ,कोठी, नौकर चाकर,बैंक बैलेंस है किंतु मन को सुकून नहीं अर्थात् ‘ मन की शान्ति ‘ नहीं है । अरे भोले भाइयों!मन की शान्ति के लिए संसार की किसी भी टकसाल में ऐसे सिक्का नही बना,जो इसे खरीद सके। इतना ही नहीं

गेरूए वस्त्र पहनकर निर्जन वनों में समाधि लगाने से भी नहीं प्राप्त होती है। अब प्रश्न पैदा होता है कि ऐसा क्यों ? इसका सीधा सा उत्तर है – जब तक मन में विकार :- काम, क्रोध लोभ, मोह, मद, मत्सर राग-द्वेष भरे हैं, तब तक ‘मन की शान्ति ‘ मनुष्य को प्राप्त नहीं होगी। अतः ध्यान कीजिए। मन को सबसे पहले निर्विकार कीजिए। फलस्वरूप मन की शान्ति लीजिए।

क्रमशः

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