परमात्मा की अपार महिमा व उसकी अदभुत सृष्टि-*

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येन द्योरुग्रा पृथ्वी च दृढा येन स्व स्तभितं येन नाकः।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
यजुर्वेद 32.6 के इस मंत्र में परमात्मा ने उपदेश किया है कि वह ही सब लोकलोकान्तरों का रचने वाला है, वह ही सब ग्रह नक्षत्रों का भ्रमण कराता है। वह ही सबसे महान है। वह ही मोक्षादि सब सुखों का देने वाला है । आओ उस परमपिता परमेश्वर की महिमा का थोडा दिग्दर्शन करें-

जिस ज़मीन पर हम रहते हैं वह एक आम आदमी के मुक़ाबले बीस खरब गुना बड़ी है जबकि हमारा सूरज हमारी ज़मीन से भी दस लाख गुना बड़ा है । इसके मुक़ाबले में ईटाकैरीनाई (Etacarinae) नाम का मशहूर सितारा हमारे सूरज से भी पचास लाख गुना बड़ा हैै। इसके बाद बीटल जूस(Betel Geuse) नाम के सितारे का नंबर आता है जो हमारे सूरज से तीस करोड़ गुना बड़ा है। और फिर वी.वाई. कैनिसमैजोरिस (V.Y. Canismajoris) नाम के सितारे का नंबर आता है जो कि हमारे सूरज से एक अरब गुना बड़ा है और इन जैसे अरबों सितारे हमारी कहकशां (Galaxy) में मौजूद हैं।

जिस आकाश गंगा /कहकशां (Galaxy) में हम रहते हैं उसका नाम मिल्की वे (Milky Way) है और इसमें हमारे सूरज जैसे तीन सौ अरब से ज़्यादा सूरज मौजूद हैं और यह कहकशां इतनी बड़ी है कि अगर हम किसी ऐसी चीज़ पर सवार हों जो एक सेकण्ड में तीन लाख किलोमीटर का फ़ासला तय करती हो तो इसको भी हमारी कहकशां को पार करते करते एक लाख साल लग जायेंगे। अब हम अपनी पड़ोसी कहकशां में चलते हैं जिसका नाम एंड्रोमेडा (Andromeda) है, और यह कहकशां हमारी कहकशां से दोगुनी है लेकिन यह भी छोटी ही समझिये क्योंकि एम 81 (M81) नामी कहकशां हमारी कहकशां से साठ गुना बड़ी है। और आई.सी. -1011 (IC-1011) नाम की कहकशां हमारी कहकशां से 600 गुना बड़ी है।

लेकिन अभी यह सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ…क्या आपको मालूम है कि जिस तरह सितारों से कहकशाएं बनती हैं उसी तरह कहकशाओं से कलस्टर (Cluster) बनते हैं और जिस कलस्टर में हमारी कहकशां है उसका नाम विरगो( Virgo) है और सिर्फ इस एक कलस्टर में 47000 कहकशाएं हैं। और मामला अभी यही ख़त्म नहीं हुआ, कलस्टर भी आपस में मिलके सुपर कलस्टर (Super Cluster) बनाते हैं और जिस सुपर कलस्टर में हम रहते हैं उसका नाम लोकल सुपर कलस्टर (Local Super Cluster) है। और इस सुपर क्लस्टर में लगभग 100 क्लस्टर हैं और इस सुपर क्लस्टर जैसे लगभग एक करोड़ सुपर क्लस्टर हमारी क़ायनात में मौजूद हैं जो मात्र बिन्दुओं की तरह की नज़र आते हैं।

इस सबको सिर्फ़ एक सर्वव्यापी निराकार परमात्मा ने बनाया है,धारण किया है और यही इन सबकी प्रलय करता है। इस अदभुत सृष्टि का बनना बिगडना प्रवाह से अनादि है, सृष्टि उत्पत्ति काल 432 करोड वर्ष है और प्रलय काल भी 432 करोड वर्ष है। समस्त जीवों को उनके कर्मानुसार फल देना वा भिन्न भिन्न योनियों में भेजना भी इसी महान परमेश्वर का काम है।

देखो! सर्वव्यापी निराकार परमेश्वर ने शरीर में किस प्रकार की ज्ञानपूर्वक सृष्टि रची है कि जिसको विद्वान लोग देखकर आश्चर्य मानते हैं। भीतर हाड़ों का जोड़, नाड़ियों का बंधन,मांस का लेपन,चमड़ी का ढक्कन, प्लीहा, यकृत,फेफड़ा, पंखा-कला का स्थापन, आ‌ंख की अतीव सूक्ष्म शिरा का तारवत् ग्रन्थन, इन्द्रियों के भागों का प्रकाशन,जीव के जाग्रत,स्वप्न, सुषुप्ति अवस्था के भोगने के लिए स्थान विशेषों का निर्माण, सब धातु का विभाग करण, कला-कौशल से स्थापनादि अद्भुत सृष्टि को बिना परमेश्वर के कौन कर सकता है ? नाना प्रकार के रत्न धातु से जड़ित भूमि, विविध प्रकार के वटवृक्षादि के बीजों में अतिसूक्ष्म रचना, असंख्य हरित, श्वेत, पीत, कृष्ण, चित्ररूपों से युक्त पत्र, पुष्प, फल मूल निर्माण, मिष्ट, क्षार, कटुक, कषाय, तिक्त, अम्लादि विविध पत्र , पुष्प, फल,अन्न,कन्द -मूलादि की रचना, अनेकानेक करोड़ों भूगोल, सूर्य,चन्द्रादि लोकनिर्माण, धारण, भ्रमण, नियमों में रखना आदि कार्यों को परमेश्वर के बिना कोई भी नहीं कर सकता।अतः ईश्वर की परम सत्ता को मानना और उसकी उपासना करना समस्त बुद्धिजीवी मनुष्यों को उचित है|
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– डा मुमुक्षु आर्य

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