अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये-झरना भी पृथ्वी से निकलता है और ज्वालामुखी भी पृथ्वी से निकलता है, किंतु दोनों के स्वरूप और स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर है। झरना पृथ्वी पर हरियाली लाता है, खुशहाली लाता है, सौंदर्य बढ़ाता है, विकास की नई राहें खोलता है, जबकि ज्वालामुखी लाल-लाल गर्म लावा उगलता
है, राख, गैस और धुंए से पृथ्वी को ही नहीं आकाश को भी विषाक्त बना देता है, न जाने कितने प्राणियों के प्राण हरण कर लेता है, हरे-भरे जंगल और फसल को वीरान कर देता है, पृथ्वी का सौंदर्य छीन लेता है, विकास को विनाश में बदल देता है। ठीक इसी प्रकार तमोगुणी व्यक्ति अर्थात अति क्रोधी व्यक्ति, राक्षसी प्रकृति का
व्यक्ति कुल, खानदान, परिवार, समाज और राष्ट्र की सुख समृद्घि-शान्ति और विकास को निगल जाता है अर्थात समूल नष्ट कर देता है, पतन के गह्वर में गिरा देता है, यश को अपयश में बदल देता है, यहां तक कि अपनी दानवता के कारण वह मानवता को कलंकित कर देता है। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि झरना और
ज्वालामुखी देानों की उत्पत्ति पृथ्वी से हुई है किंतु दोनों के स्वभाव और स्वरूप में दिन रात का अंतर है, ठीक इसी प्रकार सतोगुणी और तमोगुणी दोनों व्यक्ति हैं तो मनुष्य की ही औलाद किंतु दोनों के स्वभाव और स्वरूप में आकाश और पाताल का अंतर है। एक विकास का वरदान बनता है, तो दूसरा विनाश की विभीषिका का
पर्याय बनता है। सारांश यह है कि मनुष्य को दंश मारने वाला जहरी नाग अथवा धधकता ज्वालामुखी नहीं बनना चाहिए अपितु सौम्य स्वभाव वाला हंस बनना चाहिए। झरने की तरह सुख-समृद्घि और खुशहाली का स्रोत बनना चाहिए।
धूर्तों से बचकर रहो :-
प्रेमी समझै प्रेम से,
तर्क से बुद्घिमान।
जहां प्रेम-बुद्घि नहीं,
बचकै रहो सुजान ।। 1165 ।।
व्याख्या :-विधाता ने इस विश्व की बड़ी ही विविधतापूर्ण रचना की है। मानव नाम के प्राणी को ही देखिये-शक्ल-सूरत तो सबकी अलग हैं ही किंतु मानसिक धरातल पर भी काफी भिन्नता है। एक ही मां बाप की संतान की चिंतन शैली अथवा मानसिक दृष्टिकोण (सोच) एक जैसी नहीं होती है। इसलिए नीतिकारों ने कहा है कि
दान-मान (सम्मान) और ज्ञान पात्र देखकर देने चाहिएं। जीवन उत्कर्षता को कैसे प्राप्त हो? यदि आपको इस संदर्भ में मार्गदर्शन करना पड़े तो ध्यान रखो, बुद्घिमान व्यक्ति को तर्क से समझाओ, सुहृदय व्यक्ति को अर्थात जिसका हृदय श्रद्घा और प्रेम से ओत-प्रोत है, उसे प्रेम से समझाओ, किंतु जिन लोगों में न तो बुद्घि है और
न ही सहृदय है, ऐसे अनाड़ी लोगों से बुद्घिमान व्यक्ति को हमेशा बचकर ही रहना चाहिए।
विलक्षणता आकर्षण का केन्द्र होती है-
बेशक अकेला हो कमल,
सुन्दर लगती झील।
हीरा से शोभै मुकुट,
मानव शोभै शील ।। 1166 ।।
व्याख्या :-कमल विधाता की विभूति है, वह विलक्षण है, वह सौंदर्य का खजाना है। वह खिलने के लिए दूसरे कमलों की बाट नहीं देखता है। बेशक वह अकेला खिले किंतु झील की शोभा बन जाता है, झील के दृश्य को मनोरम बना देता है, रमणीक और सुरम्य बना देता है, झील पर आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र
बन जाता है, बरबस उनका मन मोह लेता है। ठीक इसी प्रकार कोई विलक्षण प्रतिभा किसी परिवार, समाज अथवा राष्ट्र में उत्पन्न हुई हो बेशक उसे गरीबी के जल और विषमता के कीचड़ ने घेरा हो, किंतु वह कमल की तरह कीचड़ में ही खिलकर रहती है। अपनी दिव्यता और विलक्षणता का आभास कराती है। इसके लिए वह
किसी की प्रतीक्षा नहीं करती है। उसके दो कदमों के साथ अनेकों कदम मंजिल की ओर बढ़ते हैं। वह अपनी कार्यक्षमता, कार्यदक्षता, बुद्घिकौशल, वाकपटुता के साथ वाकसंयम, व्यवहार कुशलता, उदारता, परोपकारिता, और अपने अद्भुत आत्मबल से सबके दिलों पर राज करती है।
क्रमश:

Comment: