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बच्चे होते हैं राष्ट्र की अनमोल निधि

ऋषिराज नागर (वरिष्ठ अधिवक्ता)

घर में अमन चैन स्थापित किए रखने के लिए आवश्यक है कि परिवार के सभी सदस्य परस्पर निर्बल व्यवहार रखने वाले हों। इससे घर में सुख समृद्धि और शांति का स्थाई वास होता है। बच्चे काफी कम जानकार या कम समझदार होते हैं, उनमें मैं – मेरा की भावना सबसे ज्यादा होती है। इसलिए बच्चों में मैं – मेरा के क्षुद्रभाव को समाप्त कराया जाना माता पिता एवं घर का दायित्व होता है। बच्चों के भीतर अच्छे संस्कार डालने के लिए बीच – बीच में आस – पास के बच्चों से मेल-मिलाप कराते रहना तथा बच्चों को एक साथ कुछ खाने पीने की चीजें देकर बच्चों में दोस्ती तथा प्रेम भावना का विकास कराते रहना चाहिए ।
अपने बच्चों में आत्मबल उनकी प्रशंसा करके बढ़ाया जा सकता है। बच्चों को कभी कभी स्वयं भी बैठकर प्रेम पूर्वक पढ़ाना अच्छा रहता है, लेकिन बच्चों को पढ़ाते लिखाते समय मारपीट नहीं करनी चाहिए अन्यथा आपका बच्चा आपसे डरने लगेगा और अपने मन की कोई बात साझा नहीं करेगा और अपनी परेशानी को भी हमें नहीं बता पाएगा, इससे बच्चों का मानसिक विकास और शारीरिक विकास कम होगा I
उचित सीमा तक और हर संभव स्थिति में उससे तालमेल बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि समय के अनुसार कभी लताड़ तो कभी प्यार देते रहना चाहिए।
बच्चों की अनावश्यक एवं तथ्यहीन माँगों को समझा – बुझाकर शांत करना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि कभी- बच्चो पडोसियों के बच्चों से गलत सीख लेकर, अथवा समाज में गलत धारणाओं वाले बच्चों के असर में आकर अपना तथा अपने परिवार को नुकसान आर्थिक/ मानसिक पहुँचा सकते हैं, और बच्चे भी संकट मोल ले लेते हैं। इसलिए हमें बच्चों को अपने सम्पर्क में रखना अच्छा रहता है। आवश्यकता पड़ने पर हम बच्चे को डाँट फटकार भी सोच समझकर लगा सकते है।
यह सब ‘हम अपने बच्चों के हित में ही करते हैं। इसके पीछे हमारी सद्‌भावना निहित होती है। बच्चे को हमे उसके अच्छा-बुरा का ज्ञान कराते रहना चाहिये कि गलत काम करने से ‘गलत’ होगा, और समाज को बुरा लगेगा तथा भला या अच्छा काम करने से अच्छा होता है और हमारी तरक्की होती है । समाज को यह अच्छा लगता है और लोग भी हमारी तारीफ करते हैं । इसलिए हमें सोच समझकर अच्छा एवं नेक कार्य तथा विकास का कार्य करना चाहिए।
बच्चे राष्ट्र की अनमोल निधि होते हैं। इस निधि को संवारकर और संभाल कर चलना हम बड़ों का दायित्व होता है। जितनी ही अनमोल निधि हम राष्ट्र को देने का काम करेंगे उतना ही हमारा राष्ट्र महान होगा। कहने का अभिप्राय है कि हमें अपने बच्चों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए उसी से राष्ट्र निर्माण संभव है।

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