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हिमाचल प्रदेश में BJP चुनावी इतिहास बदलने की राह पर, कांग्रेस का चुनावों से पहले ही आत्मसमर्पण

डॉ. महेंद्र ठाकुर

जैसे-जैसे सर्दियों की ठंडक बढ़ रही है, उसी गति से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में चुनावी गर्मी भी बढ़ रही है। विधानसभा चुनावों को लेकर हिमाचल प्रदेश का सन 1977 से एक अनोखा इतिहास रहा है। सन 1977 से कोई भी राजनितिक दल सत्ता में 5 साल रहने के बाद दोबारा सत्ता में चुनकर नहींं आया है। मुख्यतः हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस ही चुनावी मैदान में रही हैं। लेकिन इस बार अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का गृह राज्य होने के कारण हिमाचल का यह चुनाव उनकी साख के लिए बहुत महत्वपूर्ण भी है। वहीं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के राजनितिक कौशल की परीक्षा भी है।

चुनावी इतिहास और ट्रेंड को देखें तो हाइपोथीसिस यह है कि ‘इस बार के चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा को दोबारा सत्ता पर कब्जा नहींं करना चाहिए’। पिछले एक साल तक यह हाइपोथीसिस सटीक बैठ भी रही थी, लेकिन लगभग एक साल के भीतर ही जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा ने हिमाचल के चुनावी इतिहास की हाइपोथीसिस को बदलने का आधार निर्मित कर लिया है, ऐसा अब राजनितिक विश्लेषक कहने लग गए हैं।

लोगों को इस लेख का शीर्षक पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतीत हो सकता है, लेकिन एक साल में हिमाचल में जो राजनितिक खेल हुए हैं या हो रहे हैं वो इस शीर्षक को सार्थक बनाते हैं। वो कैसे? आइये देखते हैं। सबसे पहले हिमाचल की चुनावी विसात में सबसे छोटा खिलाड़ी मानी जा रही आम आदमी पार्टी को देखते हैं। पंजाब चुनाव में मिली आपार सफलता के बाद केजरीवाल ने भगवंत मान और मनीष सिसोदिया के साथ हिमाचल के कुछ तथाकथित तूफानी दौरे किए थे। मीडिया में बहुत कुछ छपा भी था, फिर अचानक भाजपा ने खेला कर दिया और अचानक हिमाचल प्रदेश की आम आदमी पार्टी की प्रदेश कार्यकारणी भाजपा में शामिल हो गई।

भाजपा के इस खेल के बाद से केजरीवाल एंड टीम हिमाचल से गायब है। और आजकल गुजरात में अपना हाथ आजमा रहे हैं, हिमाचल में आम आदमी पार्टी कहीं भी नजर नहींं आ रही है। इक्का-दुक्का छुटभैया नेताओं के कहीं पोस्टर दिख जाए तो अलग बात।

अब बारी आती है हिमाचल के चुनावी इतिहास की हाइपोथीसिस को एक बार फिर से सही साबित करने के लिए जोर लगाने वाली और दावे करने वाली कांग्रेस पार्टी की। ये बात सत्य है कि लगभग पिछले एक वर्ष तक कांग्रेस पार्टी जोश में दिख रही थी। इनके स्थानीय नेता एकजुट दिखते थे। हिमाचल के लोगों में ये बात धीरे-धीरे घर बनाने लगी थी कि जयराम सरकार दोबारा चुनकर नहींं आएगी। यहाँ तक कि भाजपा का कैडर भी नाराज चल रहा था। यहाँ तक कि हिन्दू जागरण मंच जैसा संगठन भी भाजपा सरकार से अपने मुद्दों को लेकर उलझ रहा था। कुल मिलाकर माहौल कांग्रेस के पक्ष में बनता दिख रहा था। लेकिन उत्तराखंड चुनाव के परिणाम के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बड़े ही संतुलित ढंग से कार्य किया ऐसा लिखने में कोई अतिश्योक्ति नहींं।

एक समय तक हिमाचल कांग्रेस के नेताओं ने हिमाचल कांग्रेस को राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग दिखाने का असफल प्रयास भी किया। उस प्रयास के चक्कर में कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने कहा था ‘पीएम मोदी से बैर नहींं, जयराम तेरी खैर नहींं’, लेकिन फिर हुआ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में उठापटक। जिससे हिमाचल कांग्रेस भी प्रभावित हुई। कांग्रेस के कई नेता भाजपा में चले गए। तब से हिमाचल कांग्रेस के नेता नेतृत्वविहीन सेना की तरह चल रहे हैं। चुनाव एकदम सर पर हैं और कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भारत जोड़ों यात्रा पर हैं। प्रियंका वाड्रा का कोई अता पता न है, वे भी उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद से गायब हैं। कम से कम अगर वो भी हिमाचल में कुछ सक्रिय होती तो कुछ बात बनती, उनका तो शिमला में घर भी है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर की कांग्रेस जिस अंतर्कलह से जूझ रही है, उसी तरह हिमाचल कांग्रेस भी बुरी तरह से गुटबाजी से जूझ रही है। जहाँ शायद हर किसी का दम घुट रहा है। इसका उदाहरण हाल ही में बिलासपुर जिला में देखने को मिला है, जब 5 अक्तूबर को बिलासपुर में AIIMS और हाइड्रो इंजीनिरिंग कॉलेज का उदघाटन करने प्रधानमंत्री मोदी आने वाले थे और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अपने गृह नगर बिलासपुर में थे। अचानक भाजपा से कांग्रेस में गए सुरेश चंदेल (पूर्व सांसद) ने चुपचाप जेपी नड्डा के घर के बंद कमरे में भाजपा का पटका गले डलवाकर और फोटो खिंचवाकर फिर से भाजपा में घर वापसी कर ली, जबकि सुरेश चंदेल खुद को कांग्रेस से सदर विधानसभा का टिकट दावेदार मानते थे।

महाभारत में यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न पूछता है, राष्ट्र कैसे मरता है अर्थात राष्ट्र का पतन कैसे होता है? युधिष्ठिर उत्तर देते हैं.”राजाविहीन अथवा अराजक राष्ट्र का पतन हो जाता है या राष्ट्र मर जाता है। यही सिद्धांत संगठनों और परिवारों पर भी लगता है। आज कांग्रेस राजाहीन अर्थात नेतृत्वविहीन और अराजकता की स्थिति में हैं। इसलिए भाजपा के पास सन 1977 के बाद से स्थापित परिपाटी को बदलने का और एक नया राजनितिक इतिहास बनाने का सुनहरा अवसर है। वैसे यह इतना सरल नहींं है क्योंकि इसके लिए भाजपा का टिकट आवंटन सही तरीके से होना मायने रखता है। सोशल मीडिया का जमाना है आजकल हर घटना बाहर आ जाती है। टिकिट को लेकर हिमाचल भाजपा में भी खींचतान हो रही है ऐसा लोग कहते हैं।

लेकिन कांग्रेस जिस तरह का व्यवहार करती दिख रही है वह उसके भाजपा के सामने आत्मसमर्पण करने जैसा प्रतीत होता है। वहीं केजरीवाल और उनकी टीम गुजरात में माहौल बनाने पर केन्द्रित दिखती है। हिमाचल के लोगों में आम आदमी पार्टी को लेकर किसी प्रकार का उत्साह नहींं दिख रहा। वहीं हवा भाजपा के पक्ष में बहती हुई दिख रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बिलासपुर और कुल्लू की जनसभाएं पूरी तरह सफल हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से अपने भाषण में हिमाचल की स्थानीय भाषाओं में लोगों को जिस तरह से सम्बोधित करके एक सीधा सम्वाद स्थापित करने का जो प्रयास किया था उसके चर्चे अभी तक हिमाचल की जनता में हैं। बता दें कि अभी मोदी चुनाव प्रचार के लिए नहींं आए थे। कुछ ही दिन पहले एबीपी न्यूज़ के एक सर्वे में भाजपा को प्रत्यक्ष बहुमत दिखाया गया है।

खैर! भविष्य के गर्भ में क्या है ये तो चुनाव परिणाम बताएंगे, लेकिन अभी तक जिस तरह का चुनावी समीकरण बन रहा है और हवा चल रही है उसके अनुसार कांग्रेस आत्मसमर्पण मोड़ में है और आम आदमी पार्टी किसी भी गिनती में नहींं है। यही कारण है भाजपा इतिहास पलटकर नया इतिहास लिख सकती है।

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