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महाकाल का इतिहास: हजार साल पहले इल्तुतमिश ने तोड़ा, अब फिर 190 मूर्तियों की स्थापना से हुआ आलोकित

उगता भारत ब्यूरो

कहा जाता है कि महाकाल मंदिर का निर्माण द्वापर युग से भी पहले हुआ था । कई पौराणिक और काव्य कथाओं में महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। इतिहास बताता है कि महाकाल मंदिर पर कई बार आक्रमण हुआ। 11वीं सदी में इल्तुतमिश ने मंदिर को नष्ट कर दिया था. बाद में हिंदू राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर ‘महाकाल लोक’ का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने पिछले साल काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया था, महाकाल कॉरिडोर उससे भी लंबा है। महाकाल कॉरिडोर 900 मीटर लंबा है I अभी पीएम मोदी ने महाकाल कॉरिडोर के पहले फेज का उद्घाटन किया है, जिसकी लागत 350 करोड़ रुपये है. दूसरे फेज की लागत 450 करोड़ रुपये होगी ।

पुराणों में बताए गए 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। बाकी सभी ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है। महाकाल के अलावा गुजरात में सोमनाथ और नागेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन, मध्य प्रदेश में ओमकारेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, महाराष्ट्र में भीमाशंकर, त्रयम्बकेश्वर और गृश्नेश्वर, वाराणसी में विश्वनाथ, झारखंड में बैद्यनाथ और तमिलनाडु में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

कहा जाता है कि महाकाल मंदिर को मुस्लिम शासकों ने तोड़ दिया था। इसे बाद में हिंदू राजाओं ने बनवाया था। माना जाता है कि महाकाल मंदिर द्वापर युग से पहले बनाया गया था। जब योगीराज श्रीकृष्ण शिक्षा लेने के लिए उज्जैन आए थे, तब उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है ।

कई काव्य कथाओं में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। चौथी शताब्दी में लिखे गए मेघदूतम के पहले भाग में भी महाकाल का उल्लेख है । कालिदास ने भी महाकाल मंदिर के बारे में बताया है।उज्जैन भी शिक्षा का बड़ा केंद्र रहा है। प्राचीन समय में इसे अवंतिका कहा जाता था।

इल्तुतमिश ने तोड़ दिया था मंदिर

इतिहास पलटकर देखें तो पता चलता है कि महाकाल मंदिर पर कई बार आक्रमण हुआ। 1234 में दिल्ली के शासक शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया था। कहा जाता है कि तब धार के राजा देपालदेव हमला रोकने के लिए निकले थे, लेकिन जब तक वो पहुंच पाते तब तक इल्तुतमिश ने मंदिर को तोड़ दिया था । इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था ।

इल्तुतमिश ने जब महाकाल मंदिर पर हमला कर उसे नष्ट किया, तब वहां के पुजारियों ने ज्योतर्लिंग को कुंए में छिपा दिया था । करीब 550 साल तक ज्योतिर्लिंग इस कुंए में ही था।

उज्जैन पर सैकड़ों सालों तक मुस्लिम शासकों का ही शासन रहा । बाद में मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर अपना आधिपत्य स्थापित किया। मराठा शूरवीर और सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। राणोजी सिंधिया ने ही ज्योतिर्लिंग को कुंए से निकाला और महाकाल मंदिर में स्थापित किया।

कहा जाता है कि राणोजी सिंधिया जब बंगाल विजय के लिए निकले थे, तब रास्ते में उज्जैन में महाकाल मंदिर की दुर्दशा देख उनका खून खौल गया था। उन्होंने आदेश दिया कि जब तक वो बंगाल से लौटें, तब तक महाकाल मंदिर बन जाना चाहिए ।

18वीं सदी में राजस्थान के राजा महाराजा जय सिंह द्वितीय ने यहां एक वेधशाला का निर्माण कराया था, जिसे वेद शाला या जंतर मंतर भी कहा जाता है । इस वेद शाला में खगोलीय घटनाओं को मापने के लिए 13 वास्तुशिल्प उपकरण रखे हैं ।

अब कितना भव्य बना है ‘महाकाल लोक’

ये पूरा कॉरिडोर 900 मीटर लंबा है। इस कॉरिडोर में 190 मूर्तियां हैं, जो भगवान शिव के अलग-अलग रूपों को दिखाती है।

यहां दो भव्य प्रवेश द्वार- नंदी द्वार और पिनाकी द्वार बने हैं। इसमें त्रिशूल के डिजाइन के 108 स्तंभ हैं।साथ ही शिव पुराण की कहानियों को दर्शाने वाले 50 भित्ति चित्र बनाए गए हैं ।

राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से मंगाए गए खास बलुआ पत्थर यहां लगाए गए हैं। राजस्थान, गुजरात और ओडिशा के कलाकारों ने इस कॉरिडोर को तैयार किया है।

यहां पर कालिदास के ‘अभिज्ञान शकुंतलम’ में उल्लेखित बागवानी प्रजातियों को भी गलियारे में लगाया गया है। इसमें रुद्राक्ष, बकुल, कदम, बेलपत्र और सप्तपर्णि जैसी धार्मिक महत्व वाली 40-45 प्रजातियां हैं ।
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