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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 46 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सब कुछ ईश्वर को सौंप दो

सर्वस्व समर्पित कर दो उसको जिसने सर्वस्व दिया तुमको।
सबका स्वामी वहीं एक विधाता जिसने सर्वस्व दिया तुमको।।

उसे हृदय से हृदय में पाओ सहर्ष समर्पित करके सब कुछ।
गोदी में उसकी बैठो जाकर छोड़ झमेला जग का सब कुछ।।

भगवान के ज्ञान – ध्यान का साधन, यह मानव देह बताई है।
जन्म – जन्म के शुभ कर्मों से ,जाकर हम सबने यह पाई है।।

प्रयोजन इस संसार का केवल निज जीवन की उन्नति करना।
जिस हेतु से है संसार रचा उस हेतु को निज ध्यान में रखना।।

अर्जुन ! खोल गांठ हृदय की अपने , मिटा डाल सारे संशय।
जब तक संशय हैं हृदय में , तब तक जीत नहीं निश्चय ।।

उस परावर के दर्शन कर ले , जो साथ तेरे हर – पल रहता।
मत भूल कभी उस प्रियतम को ,जो आर्यपुत्र तुझको कहता।।

भगवान को इंद्र, मित्र, वरुण कहते वह सबका रक्षक होता है।
उसका सच्चा भक्त सदा दमन और दलन का भक्षक होता है।।

क्षत्रिय होकर जो दमन – दलन को, मौन होकर सहता रहता।
वह कुछ भी हो चाहे जग में पर क्षत्रिय कभी नहीं हो सकता।।

जो भी आवाज लगाता है – ‘मैं पाप कभी नहीं होने दूंगा।’
संपूर्ण जगत के मानव दल को ना कभी दमन से रोने दूंगा।।

जो भी ऐसा जीवन धारें , वह सफल – सार्थक जीवन होता ।
वह कभी नहीं, जिसके रहते – मानव दल आंसू से रोता ।।

अर्जुन ! जो भी कुछ तू काम करे, कुछ खाए, या होम करे।
चाहे जग में रहकर करे साधना, चाहे कुछ तू दान करे।।

अहम का मत भाव जगा , यदि जागे तो उसे दूर भगा।
जीवन को निश्छल निष्पाप बना, मत आने दे ह्रदय में दगा।।

दगा भाव से जिन लोगों ने ,है संसार चक्र में व्यवधान किया।
तुझसे पहले भी वीरों ने निश्चय उनका शर – संधान किया।।

लज्जित मानवता को किया जिसने वह जीने के ना योग्य रहा।
जो समाज – धर्म को छोड़ चले, वह मरने के हो योग्य चला।।

अर्जुन !जितने भर भी यहां लोग खड़े, हैं मरने को तैयार खड़े।
शोभित नहीं तुझे हथियार फेंकना, जब शत्रु दल मैदान खड़े।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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