मनुष्य देह में चक्रों के संबंध में अथर्ववेद की वाणी

गतांक से आगे….

ऋषि राज नागर (एडवोकेट)

अष्टाचक्रा नव द्वारा देवानां पुरयोध्या ।
तस्या हिरण्यमयः कोश : स्वर्गो ज्योतिषावृता । अथर्ववेद 10-2-31
इस देह में अष्ट चक्र – मूलाधार चक्र , स्वाधिष्ठान , मणिपूर चक्र , ह्दय चक्र ,अनाहत चक्र , विशुद्ध चक्र , आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र हैं । ( कहा गया है कि इन चक्रों के बाद संत मार्ग शुरू होता है ) और नेत्र द्वार है,इसी देह (नगरी) में देदीप्यमान हिरण्यम कोष है । जो अनंत अपरिमित असीम सुख शांति , आनंद एवं दिव्य ज्योति से परिपूर्ण है। योगी पुरुष भी इसको कठिन अभ्यास द्वारा जागृत करते हैं I गृहस्थ एवं वृद्ध व्यक्ति के लिए यह अभ्यास काफी कठिन है दूभर है।
योगी जन अपने निरंतर अभ्यास के माध्यम से इन आठों चक्रों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और संसार के बंधनों को ढीला कर मुक्ति के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इसके लिए महर्षि पतंजलि के द्वारा अष्टांग योग का निर्धारण किया गया है। जब मनुष्य अष्टांग योग के इस मार्ग पर आगे बढ़ता है तो वह मोक्ष की ओर चल पड़ता है। इससे नीचे संसार के रगड़े झगड़े में फंसा हुआ व्यक्ति कभी सपने में भी मोक्ष के बारे में नहीं सोच पाता। ऐसे लोगों के लिए मोक्ष के मार्ग पर चलना सर्वथा असंभव होता है।

संतो द्वारा बताया गया आसान तरीका –

लेकिन सन्त एवं महात्माओं और द्वारा परमात्मा को पाने की युक्ति या तरीका अलग है-
शाह इनायत जी जो कि परम संत बुल्लेशाह जी के मुर्शीद थे , इन्होंने अपने मुरीद (शिष्य ) को रब के विषय में बताया कि:-

रे बुल्ला रब दा की पावणा ,
इथे फूटना इथे लावणा I

अर्थात हमें अपने ध्यान में चेतनता को दुनिया से हटाकर आध्यात्मिक मार्ग में लाना है इसके लिए भजन सुमिरन , सत्संग सेवा बहुत जरूरी है ।ध्यान को आंखों के बीच वाले केंद्र पर स्थिर करना और शब्द/धुन से जोड़ना है I
मनुष्य की अथवा मनुष्य के परिवार की तरक्की का मुख्य राज सुबह प्रातः काल ( अमृत बेला ) में उठना या जागना है । ग्रन्थों – शास्त्रों में सुबह प्रात : काल को , जब पहर रात बाकी रहती है , अमृत बेला ब्रह्म मुहूर्त , ब्रह्म घडी आदि कहा गया है । ऐसे समय मनुष्य को सर्व प्रथम परमात्मा का ध्यान अथवा गुरु का ध्यान ‘ रखकर स्तुति- प्रार्थना करके दिन की शुरु करनी चाहिए और परमात्मा या गुरु का शुक्रिया अदा करना चाहिए ।
परमपिता परमेश्वर गुरुओं का भी गुरु है। इसलिए प्रातः काल में उठकर उस परम गुरु को ही नमन करना चाहिए। उसने यह सृष्टि क्यों बनाई है ? और मुझे यहां क्यों भेजा है ? मैं किस लिए आया था और क्या कर रहा हूं? ऐसे प्रश्नों पर भी गंभीरता के साथ चिंतन करना चाहिए। इन सारे प्रश्नों पर प्रातः काल में उठकर चिंतन करने का असीम लाभ होता है।

चिड़ी चुहकी पहु फटी बगानि बहुत तरंग ॥
अचरज रूप संतन रचे नानक नामाहि रंग॥
उठ फरीदा उजू साजि सुबह नवाज गुजारि॥
जो सिर सांई ना नर्वे , सो सिर कपि उतारि॥

वह कुल – मालिक संसार का कर्त्ता ही नहीं है इसका प्रतिपालक तथा आजीविका देने वाला भी वह स्वयं ही है । ऐसे परमपिता परमेश्वर को निजी ध्यान में लाना अपना ही कल्याण करना होता है।

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