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कभी खगोल विद्या का केंद्र भी रहा है इंग्लैंड का स्टोनहैंज मंदिर

प्रदीप गुप्ता

आज हम आपको इंग्लैंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो यहाँ की राजधानी लन्दन से केवल १०० मीलकी दूरी पर है और जिसका निर्माण आज से कोई ५,००० वर्ष पूर्व खगोल विद्या के जानकारों ने किया था। इसे स्टोनहेंजके नाम से जाना जाता है . स्टोन यानि पत्थर और हेंज़ मंदिर।
आज जब हम इस स्थान को देखने के लिए पहुँचे तो पाया कि कई कई टन के सात मीटर से भी अधिक ऊँचाई के पत्थरगोल परिधि में रखे हुए हैं और उनके ऊपर आयताकार पत्थर चुने हुए हैं उनका भी वजन टनों में ही होगा। यही नहीं कमसे कम ये ज़मीन में नीचे भी दो मीटर की दूरी तक गड़े हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि स्टोनहेंज इलाक़े के सैकड़ोंकिलोमीटर के घेरे में इतने विशालकाय पत्थरों की खदानें नहीं हैं। इसलिए यह बहुत ही रहस्यमयी बात भी लगती है किआख़िर इतने वज़नी और इतने विशालकाय आकार के पत्थरों को कौन और किस तरह उठा कर लाया होगा।
स्टोनहेंजकी साइट ग्रीष्म अयनांत में सूर्य उदय की दिशा और जाड़ों के अयनांत के सूर्यास्त की दिशा के साथ पूरी तरह से मेलखाती है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि इसके निर्मातों को सूरज की गति की गणना की सटीक जानकारी रही होगी। इससंरचना के केंद्र में लगे सरसेन पत्थर इस तरह से स्थापित किए गए हैं की यदि आप ग्रीष्म के दिन पत्थरों के घेरे के मध्यखड़े हो जाएँ तो पाएँगे कि सूर्य हील-स्टोन के ठीक बाएँ से ऊपर उठता है। इसी प्रकार के बहुत सारे स्टोन वृत केवलइंग्लैंड ही नहीं पूरे यूरोप के अन्य हिस्सों में भी मौजूद हैं , हाँ, वे आकार में इतने बड़े नहीं हैं , हक़ीक़त में , ये प्राग-ऐतिहासिक काल में खगोलीय गणनाओं के लिए इस्तेमाल लिए जाते रहे थे।
इस पूरे इलाक़े के महत्व को समझ कर संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व हेरिटेज साइट भी घोषित किया हुआ है।
खोजबीन से पता चला है कि ये अवेबेरी के पत्थर के वृत का आकार दुनिया भर में पाए जाने वाले वृतों में सबसे बड़ा हैं। देखा जाए तो इंग्लैंड और यूरोप में इस प्रकार के सभी निर्माण और उसके इर्द गिर्द फैले मैदान नव पाषाण काल औरकांस्य युग की पूजा , उत्सवधर्मिता , मृत्यु से जुड़े कर्मकांडों पर भी रौशनी डालते हैं ।
अब कहीं जा कर पता लग पाया है कि स्टोनहेंज में स्थापित विशालकाय आकार के ब्लूस्टोन २५० किमी दूर परसेलीपहाड़ियों से लाए गए थे और सारसेन स्टोनहेंज के उत्तरी इलाक़े में २५ किमी दूर मार्लबरो के हैं। इन पत्थरों को बहुतजटिल क़िस्म की प्रक्रिया से तराशा गया था क्योंकि इस आकार के भारी पत्थरों को कोणीय तरीक़े से तराशना आज भीआसान नहीं है।
यही नहीं इन पत्थर के बहुत बड़े बड़े टुकड़ों को इंटरलॉक भी बहुत ही कारीगरी और सफ़ाई के साथ किया गया है।ऑर्थूरीयन लोक कथाओं के अनुसार स्टोनहेंज को मर्लिन नाम के एक मायावी व्यक्ति ने आयरलैंड से यहाँ अपनी शक्तियोंसे यहाँ लाया था जहां विशाल मानवों ने उन्हें विधि विधान से स्थापित किया था। और एक अन्य मान्यता के अनुसार येएक मंदिर के अवशेष हैं।
पुरातत्वविदों ने यह भी पाया है कि स्टोनहेंज और उसके पास में मानव निर्मित बहुत सारी भूगर्भीय संरचनाएँ भी हैं जिनकाअभी पूरा भेद खुलना बाक़ी है , १७ तो पूजा उपासना स्थल मिले हैं , बहुत सारे स्थानों पर दफ़नाए हुए शव भी मिले हैं और साथ ही सम्भावित धार्मिक जुलूसों के मार्ग भी हैं।
स्टोनहेंज की पत्थर संरचनाओं में से कुछ हिस्से गिर चुके हैं कुछ ग़ायब भी किए जा चुके हैं।
चलते चलते यह भी बता दूँ कि स्टोनहेंज की संरचना हर कोण से लाजवाब लगती है जो मानव की लम्बी विकास यात्रा केकिसी पुराने पड़ाव की याद भी दिलाती हैं ।

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