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व्यंग-लेखक लुसियन और पेरेग्रिनस… —————————–


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– राजेश आर्य

सीरिया में सैमोसाता (Samosata) नगर के एक मूर्तिपूजक परिवार में जन्मा लूसियन (लगभग ११७ – १८० ई.) एक यूनानी वक्ता तथा लेखक था। वह अपनी आलंकारिक वक्तृताओं तथा हास्य-व्यंग्ययुक्त लेखन के लिए प्राचीन साहित्य के इतिहास में सुप्रसिद्ध है। पेरिअम निवासी पेरेग्रिनस (Peregrinus) एक ईसाई था, किंतु बाद में वह अपने आप को सिनिक (Cynic) दार्शनिक मानने लगा था। सामान्य जनता भी उसे एक महान दार्शनिक और दिव्य पुरुष मानने लगी थी। सिनिसिज्म (Cynicism) एक यूनानी दर्शन है जो समाज के प्रति उपेक्षा तथा व्यक्तिगत जीवन के प्रति निषेधात्मक दृष्टि के लिए प्रसिद्ध है। ये सिनिक लोग बेफिक्र जीवन जीते थे।

कहा जाता है कि अंत में पेरेग्रिनस ने धर्मत्याग के पश्चाताप स्वरूप ओलिंपिया के समीप हार्पीन नामक स्थान पर खुले आम चिता में जलकर प्रायश्चित्त किया था। यह घटना १६५ ई. के आसपास की है। लूसियन ने अपनी आँखों से पेरेग्रिनस को चिता में जलते हुए देखा था। अपनी पुस्तक ‘The Passing of Peregrinus’ में पेरेग्रिनस के इस आत्मदाह का वर्णन करते हुए लूसियन ने ईसाई मतावलंबियों पर कुछ ऐसी फबतियाँ कसी हैं, जिनके कारण वह काफी प्रसिद्ध हो गया था।

लूसियन उन सिनिक लोगों और उनके तौर-तरीकों का बहुत मजाक उड़ाता था, और पेरेग्रिनस उसके हास्य-व्यंग्य का मुख्य पात्र था। लूसियन ने अपनी पुस्तक ‘The Passing of Peregrinus’ में पेरेग्रिनस के वास्तविक जीवन की, और विशेष रूप से उसकी मृत्यु की, रोचक कथा प्रस्तुत की है। पेरेग्रिनस अपने आपको ईजिप्ट के देवता प्रोटिअस (Proteus) का अवतार होने का भ्रम पाले हुए था, और वह अपने दैवत्व को अपनी मृत्यु से साबित करना चाहता था। एक दिन उसने मूर्खतापूर्ण सार्वजनिक धोषणा कर दी कि वह अपने आप को धधकती हुई चिता में झोंक कर मृत्यु का वरण करेगा!

अपनी इस धोषणा के अनुसार एक निश्चित दीन पर मध्यरात्री के समय पेरेग्रिनस और उसके चेलों ने एक विशाल चिता तैयार कर जलाई। चिता जलाते समय वह चाहता थी कि वहाँ एकत्र हुए लोगों में से कोई आगे आएगा और उसे चिता में कूदने से रोकेगा, पर जब तमाशबीन लोगों में से किसी ने उसे नहीं रोका तब पेरेग्रिनस को एहसास हुआ कि अब अपने आप को चिता में झोंकने के अलावा उसके पास और कोई विकल्प नहीं है। अंततः वह धधकती आग में कूद पड़ा और अपने जीवन का अंत कर दिया!

लूसियन लिखता है कि पेरेग्रिनस जैसे मूर्ख लोग कुछ लोगों की प्रशंसा की चाह में जमीनी वास्तविकता को नजरंदाज करते हुए आग में कूद जाने तक का साहस कर लेते है, यह भी तब जब वे यह अच्छी तरह से जानते होते है कि उस प्रशंसा सुनने के लिए वे खुद्द जीवित नहीं रहेंगे!

लूसियन ने यह पूरा हास्यास्पद और बेतुका घटनाक्रम अपनी आंखों से देखा था। इस घटना का वर्णन करते हुए वह लिखता है कि जब वह पेरेग्रिनस के इस आत्मदाह वाले दृश्य को देखकर अपने घर लौट रहा था तब रास्ते में पेरेग्रिनस के कुछ प्रशंसक उसे मिले जो उस “दिव्य पुरुष” का पराक्रम देखना चाहते थे, पर अब बहुत देर हो चुकी थी। लुसियन ने उन्हें बताया कि वे एक अभूतपूर्व दृश्य देखने का अवसर चूक गए थे, पर उसने उन लोगों के आग्रह पर वह सब कुछ बताया जो स्वयं उसने वहाँ देखा था। पेरेग्रिनस के उन भोलेभाले प्रशंसकों के समक्ष उस दृश्य का जानबूझकर अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन करते हुए लुसियन कहता है, “जब चिता जलाई गई और पेरेग्रिनस ने अपने आप को आग में झोंका तब एक भयंकर भूचाल आया और धरती में से चिंघाड़ने की आवाजे उठने लगी और उसके बाद अग्नि की ज्वालाओं में से एक गिद्ध प्रकट हुआ और ‘पृथ्वी पर मेरी लीला अब समाप्त हुई’ ऐसा मानव भाषा में बोलते हुए वह उपर आकाश में उड़ गया.” (‘The Passing of Peregrinus’)

और इस तरह दिव्य पेरेग्रिनस एक पक्षी के रूप में देवताओं के निवास स्थान ओलिम्पस पर्वत पर निवास करने चला गया! कहने जरूरत नहीं कि भूचाल और गिद्ध वाली यह पूरी कहानी व्यंग्यकार लूसियन के दिमाग की उपज थी; वास्तव में पेरेग्रिनस के आत्मदाह के बाद ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था, पर लूसियन के आश्चर्य की तब कोई सीमा नहीं रही जब कुछ समय बाद पेरेग्रिनस का एक और प्रशंसक उसे मिला और कहने लगा कि उसने अपनी आंखों से पेरेग्रिनस को अग्नि की लपटों में प्रवेश करते देखा था और वह एक गिद्ध का रूप धारण कर बाहर निकल आया था और वहाँ उपस्थित लोगों की आंखों के समक्ष आकाश में उड़ गया था! यह सुनकर लूसियन हैरत में पड़ गया, क्योंकि वह अपनी ही बनाई काल्पनिक कहानी को दूसरे के मुख से एक वास्तविक घटना के रूप में सुन रहा था! कहने जरूरत नहीं कि वास्तव में यह वही गिद्ध था जिसका आविष्कार लूसियन ने ही किया था!!

इस तरह बेतुके मनोरंजक मिथक अस्तित्व में आते है, जैसे जैसे समय के बीतता है लोग इन मिथकों में अपनी ओर से कुछ न कुछ जोड़कर फैलाते रहते है और अंततः ये मिथक सत्य का रूप धारण कर लेते है और इतिहास (gospel truth!) बन जाते है। “Gospel Truth” से याद आया की Gospels में वर्णित अधिकतर कहानियां भी इसी श्रेणी की है – बेतुकी, मनोरंजक और मिथकीय।
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■ प्रस्तुति : राजेश आर्य (गुजरात)

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