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राहुल की जासूसीःमजाक का मुद्दा

राहुल गांधी के बारे में अब संसद में तूफान मचने वाला है। अखबारों और टी वी चैनलों में पहले से ही मच रहा है। क्यों मच रहा है? इसलिए कि कोई पुलिसवाला राहुल के घर पर उसके बारे में जानकारी लेने क्यों चला गया? पुलिसवाला राहुल के सहायकों और नौकर-चाकरों से वह सब जानकरियां मांग रहा था, जो पुलिस विभाग सभी तथाकथित वी आई पी के बारे में हर साल इकट्ठी करता है। इसका उद्देश्य यही होता है कि इन अत्यंत महत्वपूर्ण हस्तियों को उचित सुरक्षा दी जा सके।  इस घटना को, जो तिल के बराबर भी नहीं है, हमारे कांग्रेसी दरबारी उसे ताड़ बना रहे हैं।

आजकल कांग्रेस के नेता और उसकी नीति, दोनों का दीवाला पिटा हुआ है। उसके दरबारी हर क्षण किसी न किसी मुद्दे की तलाश में रहते हैं। अब उन्होंने पुलिसवाले के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना निशाना बनाया है। वे कह रहे हैं कि यह मामला राहुल गांधी की जासूसी का है। यह जासूसी बिल्कुल उसी तरह हो रही है, जैसी कि मोदी-राज में गुजरात में हुआ करती थी। दिल्ली को अहमदाबाद बनाया जा रहा है। सिर्फ राहुल ही नहीं, विपक्ष के सभी तेज-तर्रार नेताओं को केंद्र सरकार इस जासूसी के जाल में फंसा रही है। यह राष्ट्रीय मुद्दा है। अब इस मुद्दे पर कांग्रेस अगले सप्ताह संसद को ठप्प करेगी।  राहुल के चाटुकार यह भूल गए कि राहुल तो नेता ही नहीं हैं, तेज-तरार्र होना तो बहुत दूर की बात है। देश की राजनीति के हर महत्वपूर्ण मुकाम पर राहुल गायब पाया जाता है, जैसा कि वह आजकल भी है। उस पर कोई क्या जासूसी करेगा? और जिसे जासूसी करना है, वह उसके घर क्यों जाएगा, उसके सहयोगियों से सीधे बात करेगा, अपनी पहचान क्यों बताएगा और एक सरकारी फार्म क्यों भरवाएगा? इस तरह की जानकारी जासूसी के लिए नहीं, सुरक्षा के लिए इकट्ठी की जाती है।

वरना बिल्कुल इसी प्रकार की जानकारी के लिए पुलिसवाले आडवाणी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और अन्य भाजपाई सांसदों के यहां क्यों जाते? यह कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस सरकार के पिछले दस वर्ष में भी इस परंपरा का पालन होता रहा है। यह वैसी जासूसी तो नहीं है, जैसी वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में पकड़ी गई थी। यदि कांग्रेस इसे मुद्दा बनाएगी तो वह अपना और राहुल का मजाक उड़ाएगी। यह राष्ट्रीय मुद्दा नहीं, मज़ाक का मुद्दा बन गया है।

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