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राजनीति संपादकीय

उद्धव ठाकरे का अहंकार और भाजपा की चुनौतियां

आचार्य चाणक्य राजनीति के महान पंडित हुए हैं। उन्हें भारत के इतिहास के साथ – साथ संसार के इतिहास में भी एक महान कूटनीतिज्ञ ,राष्ट्रनिष्ठ और महाबुद्धिमान राजनेता के रूप में देखा जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है कि किसी भी कार्य को करने से पहले अपने अंतर्मन में तीन प्रश्नों के उत्तर अवश्य खोज लें। पहला है कि मैं यह कार्य क्यों कर रहा हूं ? दूसरा है कि मेरे इस कार्य के करने का परिणाम क्या होगा और तीसरा है कि क्या मुझे अपने कार्य में सफलता मिलेगी? भारतीय विद्वानों ने इसी को सम्यक दृष्टि कहा है । विचारपूर्वक कार्य करने वाले मनीषी को ही मनुष्य कहा जाता है ।
किसी भी राजा को अपनी नीतियों के निर्धारण करने से पहले भी इसी प्रकार के 3 प्रश्न अपने आप से अवश्य पूछने चाहिए कि जिन नीतियों को मैं लागू करने जा रहा हूं उन्हें क्यों लागू कर रहा हूं ,उनका परिणाम क्या होगा और क्या मैं इन नीतियों के आधार पर सफल हो पाऊंगा? चाणक्य का मत है कि यदि कोई राजा इस प्रकार सोच विचार कर कार्य करता और अपनी नीतियों का निर्धारण करता है तो उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है।
अब समकालीन राजनीति पर आते हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 29 जून रात पौने दस बजे त्याग पत्र दे दिया। जब से उनके मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री रहे एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी के अधिकांश विधायकों ने उनके विरुद्ध बगावत की थी तब से ही यह स्पष्ट हो गया था कि उद्धव ठाकरे को अब जाना ही है।
इस जाने का एकमात्र कारण यह है कि उद्धव ठाकरे ने अपनी नीतियों को लागू करने से पहले उपरोक्त तीनों प्रश्नों का उत्तर नहीं खोजा था। उन्हें सत्ता का स्वार्थ बहुत अधिक सीमा तक प्रभावित कर रहा था और सत्ता की प्राप्ति की शीघ्रता दिखाते हुए उन्होंने अनैतिक आधार पर राजनीतिक गठबंधन किया। जिन एनसीपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के विरुद्ध उन्होंने लोगों से चुनावों के समय वोट मांगे थे उन्हीं के साथ राजनीतिक ठगबंधन करके उन्होंने महाराष्ट्र के मतदाताओं के साथ ठगी का काम किया । आज उसी ठगी का परिणाम है कि वह स्वयं भी चौड़े में ठगे से रह गए हैं। जो जैसा करता है वैसा भरता है – राजनीति पर भी यह बात पूर्णतया लागू होती है।
भारत के राजनीतिक क्षेत्र के लिए यह बात पूर्णतया सच है कि शिवसेना और भाजपा जैसे राजनीतिक दलों को लोग उनकी हिंदुत्व के प्रति समर्पण की भावना के लिए ही वोट देते हैं। यद्यपि भारत का हिंदू मतदाता किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता को अपने लिए भी अच्छा नहीं मानता परंतु अब राजनीतिक चेतना के चलते दूसरे मजहब की असहिष्णुता के प्रति सहिष्णु बने रहने को भी हिंदू ने अपने आत्म सम्मान को चोट पहुंचाने वाली नीति के रूप में स्वीकार कर लिया है, अर्थात अब उसे पता चल गया है कि यदि असहिष्णुता को सहिष्णुता के नाम पर सहन किया गया तो यह आत्मघाती हो सकता है। इसी का परिणाम है कि पिछले लगभग 10 वर्ष से हिंदू मतदाता तेजी से उन राजनीतिक दलों को अपना आसरा समझ कर ढूंढ रहा है जो उसे किसी भी प्रकार की असहिष्णुता और सांप्रदायिकता से बचा सकते हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना हिंदू मतदाताओं के लिए इसी प्रकार एक आसरा बन चुकी थी। इसके उपरांत भी उद्धव ठाकरे ने हिंदू मतदाता के इस भरोसे और आसरे के भाव को तोड़कर अपना हिंदुत्ववादी स्वरूप कांग्रेस और एनसीपी के हिंदू विरोधी चरित्र के सामने नीलाम कर दिया। समय ने आज उद्धव ठाकरे से हिंदुत्व की की गई उसी नीलामी की कीमत उन्हीं से वसूल कर ली है।
जाते-जाते उद्धव ठाकरे ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर किया है परंतु शासन करते समय वे शिवाजी, संभाजी, सावरकर और उन जैसे अन्य हिंदुत्ववादी महानायकों का नाम लेने तक से बचते रहे। जनता ने उनका वास्तविक स्वरूप देख लिया और लोगों को पता चल गया कि वह शेर नहीं शेर के रूप में कुछ और ही हैं।
सचमुच त्यागपत्र देने के बाद उद्धव ठाकरे के दिल में बड़ी कसक होगी। उनके शरीर का रोम-रोम जल रहा होगा और पके हुए घाव की भांति दु:ख भी रहा होगा। अब उन्हें यह कौन समझाए कि उनकी यह स्थिति उनके किए का परिणाम है।
 आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कभी भी खतरा लेने से नहीं डरना चाहिए। कई बार भविष्य में कुछ अच्छा करने के लिए वर्तमान में कुछ कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। यदि कोई व्यक्ति खतरा लेने से डरेगा तो वह व्यापार हो या फिर राजनीति हो किसी में भी सफल नहीं हो सकेगा। चाणक्य नीति के इस सिद्धांत का पालन करते हुए अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए उद्धव ठाकरे को समय रहते कड़े निर्णय लेने चाहिए थे। उसके लिए यदि उनकी सरकार की बलि दी जाती तो उनकी आत्मा आज रोती नहीं। सिद्धांतों को लुटवाने के बाद लुटे पिटे उद्धव ठाकरे के पास अब बचा ही क्या है? यद्यपि राजनीति में सूखी दहाड़ मारने के लिए वह अभी भी बने रहने का प्रयास करेंगे, परंतु सच यह है कि उन्होंने अपनी आत्मा का सौदा करके अपने आप को बहुत अधिक सीमा तक मिटा दिया है। उनकी पार्टी के बड़े नेता संजय राउत अपने 40 बागी विधायकों के बारे में कह रहे थे कि वह जब मुंबई लौटेंगे तो उनकी जिंदा लाशें ही लौटेंगी, क्योंकि उनकी आत्मा तो पहले ही मर चुकी है। अब संजय राउत को यह कौन बताए कि जिस समय उन्होंने भाजपा-.शिवसेना के नाम पर वोट मांगकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन किया था उनकी अपनी आत्मा भी तो उस समय मर चुकी थी, और वे स्वयं जिंदा लाश के रूप में लगभग ढाई वर्ष तक महाराष्ट्र पर शासन करते रहे।
सत्ता के शीर्ष पर पहुंच कर उन्होंने ठाकरे और संजय राऊत ने आपको बहुत बड़ा समझा था पर सिद्धांतों को नीलाम करने के बाद ठाकरे आज हीरो से जीरो बन कर लोगों की नजरों में ही गिर गए हैं। सत्ता प्राप्ति के पश्चात उन्होंने जिस प्रकार के दुराग्रह पूर्ण आचरण का प्रदर्शन अर्णब गोस्वामी को उठवाकर या हिंदुत्व के प्रति अपने अवसरवादी उपेक्षापूर्ण व्यवहार को करके किया था उससे आज उनका अहंकार डूब गया है।
जहां तक भाजपा की बात है तो वह अब परीक्षा की नई कसौटी पर कसी जा चुकी है। कहने का अभिप्राय है की नई परिस्थितियों में भाजपा के लिए नई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं । देवेंद्र फडणवीस अभी तक बाहर से खेल दिखा रहे थे, अब उन्हें वास्तविक रुप से अपना खेल दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह भाजपा समर्थित नए मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर हिंदुत्व के गौरवशाली इतिहास को महाराष्ट्र के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करा कर अपने इतिहासनायकों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करें। हमारे जिन इतिहासनायकों ने मुसलमानों सहित किसी भी विदेशी आक्रमणकारी से लोहा लिया, उन्हें कांग्रेस ने जिस प्रकार तुष्टीकरण के नाम पर इतिहास से या तो मिटा दिया या उन घटनाओं को बहुत हल्का करके इतिहास में प्रदर्शित किया, उस राष्ट्रीय अपराध से महाराष्ट्र के स्कूल कॉलेजों के पाठ्यक्रम को मुक्त कराना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के जितने भी शहर ,कस्बे, यहां तक कि ऐसे गांव रहे हैं जिनके नाम मुसलमानों ने अपने शासनकाल में परिवर्तित किए थे उन सबको उनका वास्तविक स्वरूप प्रदान किया जाए। वैदिक हिंदू इतिहास के गौरव को प्रकट करने वाले ऐतिहासिक तीर्थों, स्मारक, स्थलों, किलों आदि को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाए।इसके अतिरिक्त वास्तविक पंथनिरपेक्ष शासन स्थापित करके सबके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते हुए उन्हें प्रदेश को भाषा के स्तर पर भी सांप्रदायिक बनने से रोकना होगा। वह अपने शौर्य व पराक्रम का परिचय देते हुए किसी भी प्रकार की धार्मिक सांप्रदायिक असहिष्णुता के विरुद्ध सहिष्णु होने के कांग्रेस के पापपूर्ण आचरण से अपने आपको बचाकर ऐसी सोच और मानसिकता का सामना करेंगे तो निश्चय ही वे राष्ट्र नायक के रूप में जाने जाएंगे।
फिलहाल नए मुख्यमंत्री श्री एकनाथ शिंदे और भाजपा के श्री फडणवीस को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि यदि पतन के बाद उत्थान होता है तो उत्थान के बाद पतन भी हो जाता है। अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए और हिंदुत्व के प्रति समर्पण का भाव प्रकट करने के लिए उद्धव के उदाहरण को सामने रखकर देवेंद्र फडणवीस को कार्य करना होगा।हमारी शुभकामना है कि श्री शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में जनता की उन अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे जो महाराष्ट्र की जनता ने उद्धव ठाकरे से चुनावों के समय की थी , पर उन पर वह खरा नहीं उतर पाए थे।
30 जून 2022

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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