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बेटियाँ

सारे जहाँ के रिश्तों से भी प्यारी है बेटी,
दो दो घरों की होती जिम्मेदारी है बेटी,
सौभाग्य से खिलते हैं ऐसे पुष्प बाग़ में,
आँगने से बगिया की फुलवारी है बेटी,

वो जिन्दगी में खुशियाँ कभी पाते नहीं हैं,
आरामो-चैन उनके पास आते नहीं हैं,
जो बेटियों को रखते नहीं प्यार से यहाँ,
भगवान भोग उनके हाँथ खाते नहीं हैं,

घर आँगने की होती हैं मुस्कान बेटियाँ,
उस राखी के त्यौहार की हैं शान बेटियाँ,
फिर द्वार की रंगोली हो या चौंक पूरना,
इन सब मे लगा देती हैं जी जान बेटियाँ,

भैया से करतीं झगड़ा जो हैं आज बेटियाँ,
सब उसके पूरे करतीं हैं कल काज बेटियाँ,
बिखरा हुआ हो कमरा या फैला हो सामान,
समेट रोज उसे करतीं सज्जो-साज बेटियाँ,

मिलती नहीं सौगात सबको प्यारी बेटी की,
तुलसी के पौध सी कोई दुलारी बेटी की
उनसे लक्ष्मी की कद्र घर की होती न कभी,
गूँजी न जिनके आँगने किलकारी बेटी की,

वो लगे हैं आज खोजने घर-द्वार बेटियाँ,
जिनकी नजर में होती थीं बस भार बेटियाँ,
घर उनके रूप लक्ष्मी का कैसे आये अब,
जिन्होंने पहले जन्म से दी मार बेटियाँ,

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