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विदेश नीति और विदेश यात्राएं

modi jiप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नौ दिन की विदेश-यात्रा पर निकल पड़े हैं। वे फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जाएँगे । इसके पहले वे अमेरिका और जापान का भी चक्कर लगा आए हैं। पड़ोसी देशों में भी जहाँ-जहाँ उनका बस चला, वे हो आए हैं। भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मोरिशस, सेशेल्स, सिंगापुर आदि। उनसे ज्यादा देशों में उनकी विदेशमंत्री सुषमा स्वराज भी हो आई हैं। इसमें शक नहीं कि विदेश-यात्राओं के बिना विदेशनीति को प्रभावशाली ढंग से चलाना कठिन होता है। शीर्ष नेताओं का सीधा आपसी परिचय दोनों देशों के संबंधों में कई नए द्वार खोल देता है। इस दृष्टि से मोदी और सुषमा में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। देखें,कौन कितना स्कोर करता है? मोदी ने पिछले 11 माह में जितनी विदेश-यात्राएँ की हैं,शायद किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं की है। और सुषमा ने अटल जी को भी मात कर दिया है । जब अटल जी विदेशमंत्री थे तो विरोधी नेता कहा करते थे कि ये अटल बिहारी नहीं, गगनबिहारी वाजपेयी हैं। विदेश यात्राओं में से कुछ ठोस हासिल चाहे हो या न हो, एक बात तो सच है कि नेतागण को घरेलू दंगल से  राहत मिल जाती है। वहाँ उनकी टांग-खिचाई करने वाला कोई नहीं होता। सारे भाषण और बातचीत विदेश मंत्रालय पहले से रटा देता है।

उनका काम बस राज-भोज जीमना,हाथ मिलाना,मुस्कराहट फेंकते रहना और एक-दूसरे को ‘महामहिम’, ‘महामहिम’ कहते रहना है। बाकी सब समझौते, बयानबाजियां, छवि-निर्माण वगैरह अफसर लोग करते रहते हैं। तो अपने प्रधानमंत्री जी अभी फ्रांस में हैं । आशा है, वे राफेल हवाई जहाज के 20 बिलियन डॉलर के सौदे को पक्का कर आएंगे। जैतपुर के परमाणु –यन्त्र के सौदे में भी ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए। सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता दिलाने पर भी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद कुछ न कुछ ठकुरसुहाती जरूर बोल देंगे । जर्मनी के साथ १६ बिलियन डॉलर के व्यापार में कुछ वृद्धि अवश्य होगी । यूरोपीय संघ से व्यापार में भारत का पलड़ा डेढ़ बिलियन यूरो से भारी है । यदि यूरोपीय संघ के देश भारत में अपना विनियोग दुगुना कर दें तो यह यात्रा सफल मानी जायेगी । मुक्त व्यापार शुरू हो जाएँ तो क्या कहने? यदि यह यात्रा मोदी को यह प्रेरणा दे सके कि वे यूरोपीय संघ की तरह कोई ढांचा दक्षिण एशिया में खड़ा कर सकें तो उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा । कनाडा में यूरेनियम तथा अन्य खनिजों का भण्डार है । अभी तक भारत ने उसका अपेक्षित लाभ नहीं उठाया है । हो सकता है कि प्रधानमंत्री की यह विदेश यात्रा हमारी विदेश नीति के कई अनछुए पहलुओं की सुध ले ले ।

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