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इतिहास के पन्नों से

सोने के जेवरों का भी प्रयोग करते थे हड़प्पा वासी


विनोद कुमार यादव

350 हेक्टेयर में फैले मशहूर राखीगढ़ी पुरास्थल की खुदाई से यह सिद्ध हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक सुनियोजित, सुव्यवस्थित, खूबसूरत और बड़ा नगर मोहनजोदड़ो नहीं, बल्कि यही है। फिलहाल जो खुदाई चल रही है, उसमें कब्रें, कंकाल, नगरीय व्यवस्था के साथ-साथ सोने के जेवरों की फैक्ट्री भी मिली है। यह खुदाई इसी महीने बंद होने जा रही है।
हरियाणा के हिसार स्थित राखीगढ़ी में इन दिनों तीसरे दौर की खुदाई चल रही है। यहां के सात टीलों को उत्खनन के लिए चिह्नित किया गया है। इन टीलों को RGR-1 से लेकर RGR-7 नाम देकर वर्गीकृत किया गया है। टीला नं 1, 3 और 7 पर व्यापक पैमाने पर चल रहे उत्खनन से कई अनछुए ऐतिहासिक पहलू उजागर हुए हैं। RGR-1 टीले में ढाई मीटर चौड़ी स्ट्रीट के साक्ष्य मिले हैं, जिसके दोनों तरफ कच्ची ईंटों की दीवार है। यह गली 18 मीटर चलकर दाहिनी ओर मुड़ जाती है। गली के नुक्कड़ पर एक बड़ा सा मटका रखा मिला, जिसे मोहल्ले का कूड़ेदान बताया जा रहा है।
दीवार के दोनों तरफ मल्टीलेवल रिहायशी मकानों की बस्तियां, समकोण पर बनी गलियां, चौराहे, प्रमुख मार्गों और गलियों के किनारे बनी पक्की नालियां मिली हैं। यह सिस्टम उस समय के लोगों की बेहतरीन टाउनशिप प्लानिंग और इनोवेटिव जीवन-शैली दिखाता है। RGR-3 टीले के उत्खनन से एक विराट पक्की दीवार मिली है, जिसकी नींव में आधारभूत ढांचे के रूप में कच्ची ईंटों की दीवार मौजूद है। दीवार के साथ में सुनियोजित तरीके से निर्मित हाउस-कॉम्पलेक्स भी पाए गए हैं। कुछ मकानों के स्ट्रक्चर और उनके किचन कॉम्प्लेक्स बेहद शानदार हैं, जो प्रारंभिक हड़प्पा से लेकर हड़प्पा और उत्तर हड़प्पा काल (5000 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसा पूर्व तक) की खूबसूरत वास्तुकला और इंजीनियरिंग का नमूना हैं।

राखीगढ़ी में बाकायदा इंडस्ट्रियल सेक्टर मिला है

दो महीने की खुदाई की आर्कियॉलजिकल सर्वे-स्टडी के बाद एएसआई अधिकारियों का कहना है कि राखीगढ़ी का नगर-विन्यास इस ढंग से नियोजित किया गया है, जिस तरह से अभी के नोएडा-चंडीगढ़ जैसे शहरों में सेक्टरों को डिवेलप किया गया है। उत्खनन में मिले सभी मकानों के साथ सुचारू जल-प्रबंधन और पानी की समुचित निकासी के लिए बेहतरीन नालियां बनी हुई हैं। इन नालियों को आग में पकी हुई ईंटों का सपोर्ट दिया गया है। खुदाई में मिली तमाम सड़कें बिल्कुल सीधी हैं, जिनके दोनों किनारों पर बड़े-बड़े गड्ढे मिले हैं। इनके भीतर कचरे के अवशेष मिलने से साबित होता है कि शहर में सफाई व्यवस्था चाक-चौबंद थी। RGR-2 के आसपास की खुदाई से पता चलता है कि यहां पर इन लोगों का इंडस्ट्रियल सेक्टर था। यहां से बड़ी मात्रा में तांबे की वस्तुएं, कार्नीलियन पत्थर और मनके, माला, गोमेद और हाथी दांत की वस्तुएं, टेराकोटा की चूड़ियां मिली हैं। सेलखड़ी की मुहरें भी हैं, जिन पर हड़प्पन लिपि में कुछ लिखा है। यहां की एक रसोई में कारीगरों का सामूहिक भोजन पकाने के लिए चार चूल्हे भी मिले हैं।
RGR-3 की खुदाई में मिले महत्वपूर्ण पुरावशेषों में सबसे खास है- सोने के आभूषण तराशने की फैक्ट्री। एएसआई के डेप्युटी डायरेक्टर डॉ. संजय मंजुल के मुताबिक गोल्ड जूलरी की इस फैक्ट्री के साक्ष्यों का कालखंड 5000 साल पुराना है। हालांकि सोने के जेवर प्रचुर मात्रा में नहीं मिले हैं, किंतु हड़प्पा कालीन सोने की एक अनूठी पट्टिका प्राप्त हुई है। इस पट्टिका पर हड़प्पन स्क्रिप्ट में कुछ लिखा हुआ है। लिपि का अर्थ स्पष्ट होने पर हड़प्पा सभ्यता के कुछ और अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठेगा।
RGR-7 क्रीमेशन ग्राउंड था। अलग-अलग समय पर यहां हुए उत्खनन में कुल 56 मानव कंकाल प्राप्त हुए हैं। इस बार वाली खुदाई में यहां दो महिलाओं के कंकाल मिले हैं। दोनों कंकालों के हाथों में शंख से बनी चूड़ियां, बाजूबंद, कॉपर का दर्पण, अर्द्ध कीमती स्टोन के मनके और मालाएं मिली हैं। अधिकारियों का कहना है कि कंकालों की कुछ खास हड्डियों के नमूनों को डीएनए टेस्ट के लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंसेज, लखनऊ भेजा गया है।
राखीगढ़ी से मिले पुरावशेषों से साबित होता है कि हड़प्पा सभ्यता की तमाम आर्कियॉलजिकल साइट्स में राखीगढ़ी शहर सर्वाधिक सुनियोजित और विकसित था। वैसे भी इस ऐतिहासिक साइट के सीने में कई अनछुए रहस्य दफन हैं। इन्हें जानने के लिए अब सितंबर में फिर उत्खनन होगा।

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