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इतिहास के पन्नों से

महाराणा प्रताप के पराक्रम और शौर्य की चर्चा पर जब क्रोधित हो गए थे डॉक्टर संपूर्णानंद

  डॉ॰ राकेश कुमार आर्य

1947 में भारत के पहले शिक्षामंत्री बने मौलाना अबुल कलाम आजाद। उन्होंने कांग्रेस के द्वारा अपनी वर्धा योजना के अंतर्गत भारत के लिए प्रस्तावित की गई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत के शिक्षा संस्कारों को बिगाड़ने का काम आरंभ किया।उन्होंने ही इतिहास का विकृतिकरण करते हुए मुस्लिम मुगल शासकों को हिंदू शासकों की अपेक्षा कहीं अधिक बेहतर दिखाने का कुत्सित प्रयास करना आरंभ किया ।
यद्यपि 85 प्रतिशत हिन्दू देश में उस समय था। लेकिन पंद्रह प्रतिशत अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए 85 प्रतिशत की बलि दे दी गयी। क्योंकि इंसाफ का तराजू इस समय मौलाना कलाम के हाथ में था। भानुमति के कुनबे की तरह का संविधान और उसी तरह की शिक्षानीति लागू की गयी। इसका परिणाम आया कि तेजोमहालय मंदिर (ताजमहल) दिल्ली में प्राचीन काल के सुप्रसिद्घ गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली (महरौली) स्थित वेधशाला (कुतुबमीनार) आज कल भारत में स्थायी रूप से मुस्लिम कला के बेजोड़ नमूने माने जाने लगे हैं। जब गलत पढ़ोगे और अपने बारे में ही गलत धारण बनाओगे तो परिणाम तो ऐसे आने ही हैं। एक और परिणाम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है। यूपी प्रांत के पहले शिक्षामंत्री बाबू संपूर्णानंद मथुरा के एक कालेज में गये थे। उनके स्वागत में कुछ मारवाडिय़ों ने राणा प्रताप का नाटक दिखाया। नाटक में महाराणा प्रताप के शौर्य को देखकर संपूर्णानंद जी प्रसन्न होने के स्थान पर क्रोधित हो उठे। उनकी भौहें तन गयीं, और तुनक कर आयोजकों से बोले-तुम्हें जमाने की रफ्तार के साथ चलना नहीं आता। (उनका आशय था कि हमने वर्धा स्कीम के अनुसार जो तुम्हें बताना समझाना चाहा है उसे मानते क्यों नहीं हो ?) अब भी वही मूर्खता दिखा रहे हो ? वही दकियानूसी की बातें ! यह नहीं सोचते कि कौन बैठा है ?
।।अपने ही पैरों पर अपने आप ही कुल्हाड़ी मारने वाले यह लोग पता नहीं किस दुर्भाग्य के परिणाम स्वरूप भारत के नेता बन गए थे ? इनका खड़ा किया गया तामझाम हमें आज तक कष्ट पहुंचा रहा है ।जिनके कारण हम अपने महाराणा को अकबर के सामने आज तक श्रेष्ठ सिद्ध नहीं कर पाए हैं। उगता भारत के एक विशेष अभियान के अंतर्गत इस विषय में ठोस पहल की गई थी, जब समाचार पत्र के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी से विशेष अनुरोध कर उन्हें महाराणा प्रताप को महान दिखाने के लिए राजस्थान शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन करने की बात कही थी और जिसे राज्यपाल महोदय ने स्वीकार भी कर लिया था। राज्यपाल महोदय ने तुरंत पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन भी करा दिया था परंतु
छद्म धर्मनिरपेक्षता की मानसिकता से ग्रसित अशोक गहलोत ने राजस्थान में आते ही महाराणा प्रताप से संबंधित उन पाठों को शैक्षणिक पाठ्यक्रम से अलग करा दिया है, जिनमें महाराणा प्रताप को महान दिखाया गया था।
ध्यान रखो कि भारत में ‘जयचंदी परंपरा ‘ आज भी जीवित है और बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है कि कांग्रेस का वरदहस्त इसी ‘ जयचंदी परंपरा ‘ पर पूर्णत: बना हुआ है ।आपका क्या विचार है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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