पथरी में अमृत है कुलथी की दाल

kulthiसंतोष कुमार

पथरी एक कष्‍टदायक रोग है। यह आमतौर से 30 से 60 वर्ष के आयु के व्यक्तियों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। आज भारत के प्रत्येक 2000 परिवारों में से एक परिवार इस पीड़ादायक स्थिति से पीड़ित है, लेकिन सबसे दु:खद बात यह है कि इनमें से कुछ प्रतिशत रोगी ही इसका सही से इलाज करवाते हैं। एलोपैथी में ऑपरेशन ही एक उपचार है। लेकिन कुलथी, इस रोग के लिए खास दवा है। कुलथी उड़द के समान होती है। यह देखने में लाल रंग की होती है, इसकी दाल बना कर रोगी को दी जाती है। इसे पथरीनाशक बताया गया है। गुर्दे की पथरी और गॉल पित्‍ताशय की पथरी के लिए यह फायदेमंद औषधि है। आयुर्वेद में गुणधर्म के अनुसार कुलथी में विटामिन ए पाया जाता। यह शरीर में विटामिन ए की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मददगार है। बाजार में यह किसी भी किराने की दुकान में आसानी से मिल जाती है।

प्रभाव

कुलथी के सेवन से पथरी टूट कर या धुल कर छोटी होती है, जिससे पथरी सरलता से मूत्राशय में जाकर पेशाब के रास्‍ते से बाहर आ जाती है। मत्रल गुण होने के कारण इसके सेवन से पेशाब की मात्रा और गति बढ़ जाती है, जिससे रुके हुए पथरी कण पर दबाव ज्‍यादा पड़ने के कारण वह नीचे की ओर खिसक कर बाहर हो जाती है।

प्रयोग

1 सेंटीमीटर से छोटी पथरी में यह सफल औषधि है। 25 ग्राम कुलथी को 400 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर 50-50 मिलीलीटर सुबह शाम एक माह रोगी को पिलाने से पेशाब के साथ निकल जाती है। लेने के पहले और बाद में अपनी जांच जरुर करवा लें, नतीजा सामने आ जाएगा। इसे अन्‍य दाल की तरह भी खाया जाता है। कुलथी 25 ग्राम लेकर मोटी-मोटी दरदरी कूटकर 16 गुने पानी में पकाएं, चौथा भाग पानी शेष रहने पर उतारकर छान लें,

इसमें से 50 मिलीलीटर सुबह शाम लेते रहें। इसमें थोड़ा सेंधा नमक भी मिला दें।

पथरी दुबारा न हो:

जिस व्‍यकित को पथरी एक बार हो जाती है, उसे फिर से होने का भय बना रहता है। इसलिए पथरी निकालने के बाद भी रोगी कभी-कभी इसका सेवन करते रहें। कुलथी पथरी में अमृत के समान है।

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