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कविता

इतिहास गवाह है हमेशा किले के दरवाज़े अंदर से ही खोले गए है।


शिवाजी की शमशीरें,
जयसिंह ने ही रोकी थीं,

पृथ्वीराज की पीठ में बरछी,
जयचंदों नें घोपी थी ।

हल्दीघाटी में बहा लहू,
शर्मिंदा करता पानी को,

राणा प्रताप सिर काट काट,
करता था भेंट भवानी को।

राणा रण में उन्मत्त हुआ,
अकबर की ओर चला चढ़ के,

अकबर के प्राण बचाने को,
तब मानसिंह आया बढ़ के।

इक राजपूत के कारण ही,
तब वंश मुगलिया जिंदा था,

इक हिन्दू की गद्दारी से,
चित्तौड़ हुआ शर्मिंदा था।

जब रणभेरी थी दक्षिण में,
और मृत्यु फिरे मतवाली सी,

और वीर शिवा की तलवारें,
भरती थीं खप्पर काली सी।

किस म्लेच्छ में रहा जोर,
जो छत्रपती को झुका पाया,

ये जयसिंह का ही रहा द्रोह,
जो वीर शिवा को पकड़ लाया।

गैरों को हम क्यों कर कोसें,
अपने ही विष बोते हैं,

कुत्तों की गद्दारी से,
मृगराज पराजित होते हैं।

गांधी जी के मौन से हमने
भगत सिंह को खोया है,

धीरे हॉर्न बजा रे पगले,
देश का हिन्दू सोया है

मोदी के पीठ में छुरा भोक रहा है

🙏जय श्री राम 🚩🚩

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