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भारतीय संस्कृति

*पुरुषार्थी ही परमात्मा को पाता है*

यजुर्वेद हमें आलस्य प्रमाद त्यागकर पुरुषार्थी बनने की शिक्षा देता है।उत्क्राम महते सौभगाय’ यजुर्वेद १२-२१।
हे! जीव बहुत बड़े सौभाग्य की प्राप्ति के लिए तु पुरुषार्थ कर अर्थात आलस्य का त्याग कर। जो मानव बैठा रहता है उसका भाग्य भी बैठ जाता है उसके उठने पर भाग्य जाग जाता है। उसके सोने पर सो जाता है उसके चलने पर साथ-साथ चलता है। इसलिए कार्यों में संलग्न होना चाहिए ।ऐसा ऐतरय आरण्यक कहता है।
पथ में बाधाएं आए जो, चाहे सागर हिमवान हिले।
तू विचलित ना हो निज पथ से चाहे धरती आकाश मिले।।
घनघोर आपत्तियों के आने पर भी जो पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ते हैं उनको बहुत बड़ी सफलता मिलती है। उद्योग, साहस, धैर्य बुद्धि, शक्ति और पराक्रम छः गुण जिसके पास होते हैं वहा देवता भी सहायता करने के लिए आ जाते हैं। इसलिए सौभाग्य की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ की अत्यंत आवश्यकता है। दूरदर्शी पुरुष शब्द विघ्नों को हटाकर कार्य सिद्ध कर आनंद भोगते हैं।
उद्योगिनिम् पुरुष सिंह मुपैति लक्ष्मी दैवं देयमि का पुरुषा: वदन्ति। अर्थात परिश्रमी पुरुष को शेर की भांति धन प्राप्त हो जाता है। इसलिए सौभाग्य की वृद्धि के लिए पुरुषार्थ करना अत्यंत श्रेयस्कर है। वेद हमें कर्मशील होने की शिक्षा देते हैं। कर्म योगी एक ना एक दिन परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। कर्मशील व्यक्ति ही धर्म अर्थ काम मोक्ष की सिद्धि करता है। अतः हम सभी को पुरुषार्थ करना चाहिए।

*आचार्य विद्यादेव पूर्व आचार्य गुरुकुल टंकारा व गुरुकुल एटा*।

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