कश्मीरी आतंकवाद : अध्याय 3 : कश्मीर के प्राचीन शहर और नगर

कोकरनाग

कश्मीर का कोकरनाग कश्मीर के ‘सुनहरे ताज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भी एक सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थल है, जहां पर देश के ही नहीं बल्कि संसार भर के पर्यटक आकर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं। कोकरनाग जिला राजधानी अनंतनाग से 25 किमी है। ‘कोकर’ कश्मीरी में मुर्गा को कहते हैं। जबकि ‘नाग’ का अर्थ प्राकृतिक वसंत है। शेख-उल-आलम ने कोकरनाग को बारंग नाम के नाम से पुकारा है। उन्होंने इसके विषय में लिखा है – ‘बरंग छू सुन सुंदर परंग’ – अर्थात कोकरनाग कश्मीर का स्वर्ण मुकुट है। ‘आईना-ए-अकबरी’ में कोकरनाग के विषय में लिखा है कि कोकरनाग का पानी प्यास और भूख दोनों को बुझाता है। ऐसा इसलिए कहा गया है कि कोकरनाग का पानी मनुष्य के पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्छा है।
कोकरनाग का एक नाम ‘बिन्दू जलांगम’ भी है, जो कि अभिलेखों में भी दर्ज पाया जाता है।

वेरीनाग

वेरीनाग जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग जिले में स्थित तहसील(शाहबाद बाला वेरिनाग) के साथ एक पर्यटन स्थल और एक अधिसूचित क्षेत्रीय समिति है। यह अनंतनाग से लगभग 26 किलोमीटर दूर है। जम्मू से श्रीनगर के लिए यदि आप सड़क मार्ग से जाते हैं तो यात्रा करते समय, वेरीनाग कश्मीर घाटी का पहला पर्यटन स्थल है, जो जवाहर सुरंग को पार करने के बाद कश्मीर घाटी के प्रवेश द्वार पर स्थित है।
कश्मीरी भाषा में “नाग” शब्द का अर्थ “पानी का चश्मा” होता है और “वेरी” शब्द भी संस्कृत का “विरह” शब्द है। जिसका अर्थ “वापस जाना” होता है।
यहां पर स्थित वेरीनाग स्प्रिंग पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने में मुगल बादशाह जहांगीर का भी विशेष योगदान बताया जाता है। जहांगीर एक विलासी बादशाह था, जो अपना अधिकांश समय विषय भोग में व्यतीत करता था। वैसे तो प्रत्येक मुगल बादशाह कामी और भोगी ही रहा है। पर इसका व्यसन कुछ अधिक ही सिर चढ़कर बोलता था। उसने अपना अधिकांश समय सुरा- सुंदरी और सुरम्य स्थलों पर गुजारा, इसलिए वह कश्मीर से विशेष रूप से जुड़ा रहा। इस झरने के बगल में स्थित एक सुंदर उद्यान को उसके पुत्र शाहजहां ने बनाया था।

नारानाग

नारानाग भी जम्मू-कश्मीर के एक प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। नारानाथ यहां के गांदरबल जिले में स्थित है जिसे एक पर्वतीय पर्यटन पर्यटक स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। नारानाग वंगथ झरने के बाएं किनारे पर स्थित है। गडसर झील, विशनसर झील और किशनसर झील के लिये भी यहां से जाया जा सकता है। इन सभी स्थानों के लिए अभी पैदल जाने की ही व्यवस्था है।’नारा नाग’ का अभिप्राय ‘नारायण नाग’ से है। 
नारानाग के मंदिर भारत के सबसे पुरातन-स्थलों में गिने जाते हैं। यहाँ लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक-दूसरे की ओर मुख किये हुए अनेकों मंदिर हैं । जिनके बारे में इतिहासकारों का कहना है कि शिव को समर्पित इन मंदिरों को 8वीं सदी में कश्मीर-नरेश ललितादित्य ने बनवाया था।

कौसरनाग

कश्मीर के अनेकों पर्यटक स्थलों में से एक पर्यटन स्थल कुलगाम ज़िले में स्थित कौसर या कोणसर नाग झील के नाम से जाना जाता है । यह झील दो मील लम्बी और लगभग आधा मील चौड़ी है । यह झील समुद्र तल से लगभग 4 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह तीर्थस्थल विष्णुपाद  के नाम से भी जाना जाता है।

बारामूला

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के महान वैज्ञानिक वराहमिहिर का मूल निवास स्थान बारामूला है। इसी महान वैज्ञानिक ने अपने ज्योतिषीय ज्ञान के आधार पर अपनी वेधशाला दिल्ली में मिहिरावली नामक स्थान पर बनाई थी। उसके नाम से बसी मिहिरावली ही आज महरौली कहलाती है। जबकि उसकी वेधशाला को आजकल कुतुबमीनार कहा जाने लगा है। वराह मिहिर के यहां उत्पन्न होने से ही इसको बारामूला का जाता है। विद्वानों की यह भी मान्यता है कि बारामूला” नाम संस्कृत के “वराहमूल” से उत्पन्न हुआ है और आज भी कश्मीरी भाषा में “वरमूल” कहलाता है। “वराह” का अर्थ (जंगली) सूअर होता है और “मूल” का अर्थ उसका पैना दांत है। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता भी है कि कश्मीर घाटी आदिकाल में एक सतिसर (या सतिसरस) नामक झील के नीचे डूबी हुई थी, जिसमें जलोद्भव नामक जल-राक्षस रहकर भय फैलाता था। भगवान विष्णु ने एक भीमकाय वराह का रूप धारण कर के आधुनिक बारामूला के पास झील को घेरने वाले पहाड़ों पर अपने लम्बे दाँत से प्रहार किया। इससे बनने वाली दरार से झील का पानी बह गया और कश्मीर वादी उभर आई और वास-योग्य बन गई।
इस प्रकार की अतार्किक और गप्प भरी बातों में हमारा कोई विश्वास नहीं है। फिर भी पौराणिक मान्यता को यहां पर हमने लिख दिया है। कई बार पुराणकारों की बातों को वास्तविक अर्थों में समझने में हम चूक कर जाते हैं। इसलिए पुराणकार की इस बात का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ हो सकता है, इसमें दो मत नहीं।
उपरोक्त नगरों की ही भांति कश्मीर के बड़गाम, पुलवामा, कुपवाड़ा, शोपियां, गंदरबल, बांडीपुरा, श्रीनगर और कुलगाम जैसे शहरों, कस्बों या जिलों कभी अपना गौरवशाली इतिहास रहा है जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यहां के हिंदुओं को पंडित के नाम से पुकारा जाता है। वास्तव में जब हम कश्मीरी पंडित कहते हैं तो इसका अभिप्राय प्राचीन काल के हमारे ऋषि पूर्वजों की संतानों से होता है। यहां के पंडित का अभिप्राय किसी जाति विशेष से नहीं है, अपितु ज्ञान – परंपरा में श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए प्राचीन काल से ही पंडित कहने की परंपरा पूरे भारतवर्ष में रही है, जिसे कश्मीर में विशेष रुप से देर तक यथावत अपनाया जाता रहा। कुछ लोगों की मान्यता है कि कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 6000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। जबकि हमारा मानना है कि कश्मीरी पंडितों की नहीं अपितु भारतवर्ष की संस्कृति करोड़ों अरबों वर्ष पुरानी है। करोड़ों अरबों वर्ष पुरानी इस संस्कृति के निर्माण में कश्मीर का विशेष योगदान रहा है। जिस पर हम पूर्व में ही प्रकाश डाल चुके हैं।
आज हम भारतवर्ष और पाकिस्तान दोनों देशों के जिस कश्मीर को देखते हैं यह टूटा – फूटा कश्मीर है। कभी इस कश्मीर के अंतर्गत गांधार ,कंबोज और कुरु महाजनपद भी आया करते थे। गान्धार की स्थिति उस समय आज के पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र और अफगानिस्तान के पूर्वी क्षेत्र को मिलाकर बनती थी।आधुनिक गंधार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार की राजधानी पुरुषपुर ( जिसे आजकल पेशावर कहा जाता है ) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। महाभारत के सभा पर्व में अभिसारी नामक नगर का उल्लेख मिलता है।

कंबोज

  प्राचीन काल में भारत वर्ष में शासन को बहुत ही सुव्यवस्थित ढंग से चलाया जाता था। यदि यह कहा जाए कि आधुनिक विश्व समाज ने भारत के प्राचीन शासन संचालन की प्रक्रिया से बहुत कुछ सीखा है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। जनपद बनाने की प्रक्रिया सबसे पहले भारत में ही देखी जाती है। प्राचीन ग्रंथों में हमको भारत के 16 महाजनपदों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। उन्हीं में से एक महाजनपद कंबोज था। इस महाजनपद के विषय में हमें पाणिनी के अष्टाध्यायी में भी मिलता है। अंगुत्तर निकाय नामक बौद्ध ग्रंथ मैं भी इस महाजनपद का उल्लेख आया है। यह महाजनपद आज के उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में स्थित रहा है। कंबोज देश का विस्तार उत्तर में कश्मीर से हिंदूकुश पर्वत तक रहा था।
वाल्मीकि-रामायण में कंबोज को अच्छे घोड़ों के देश के रूप में उल्लिखित किया गया है।
महाभारत  के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के समय दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था। आजकल के राजपुर , नंदीपुर, आजकल का तजाकिस्तान, पामीर का पठार, बदख्शां और पाकिस्तान का हजारा जिला कभी कंबोज के अंतर्गत ही आया करता था।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य

 

 

 

Comment: