“वेदों का काव्यार्थ कर रहे ऋषिभक्त विद्वान श्री वीरेन्द्र राजपूत जी को पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार कृत ऋग्वेद भाष्य भेंट”

ओ३म्


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श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी आर्यसमाज के एक ऐसे प्रथम विद्वान हैं जिन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र पर काव्यार्थ लिखने का कार्य आरम्भ किया है। वह यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के लगभग दस सहस्र मन्त्रों का काव्यार्थ कर चुके हैं जो उनके प्रयत्नों एवं सहयोगी प्रकाशकों से समय समय पर अनेक खण्डों में प्रकाशित भी हो चुका है। वर्तमान समय में वह ऋग्वेद के मन्त्रों पर काव्यार्थ कर रहे हैं। उनका ऋग्वेद के प्रथम दशांश का काव्यार्थ प्रकाशित हो चुका है। इस प्रथम भाग में उन्होंने ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 1149 मन्त्रों का काव्यार्थ दोहो एवं कवित्व में प्रस्तुत किया है। उनकी इस पुस्तक का लोकार्पण वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के आगामी ग्रीष्मोत्सव में दिनांक 15 मई को किया जा रहा है। कल हम उनसे मिलने उनके देहरादून स्थित निवास पर गये और वहां उनकी धर्मपत्नी माता सुशीला देवी जी, पुत्री एवं जामाता जी से मिले। उन्होंने हमें अपने इस ऋग्वेद दशांश काव्यार्थ की एक प्रकाशित प्रति भी दिखाई जिसे देखकर व उसके कुछ अंशों को पढ़कर हमें प्रसन्नता हुई। इस पुस्तक का परिचय हम पृथक से प्रस्तुत करेंगे।

हमने माह जनवरी, 2022 में श्री वीरेन्द्र राजपूत जी पर एक लेख लिखा था जिसे अपने अनेक मित्रों को व्हटशप एवं फेसबुक के माध्यम से प्रसारित किया था। उस लेख में हमने जानकारी दी थी कि श्री वीरेन्द्र राजपूत जी मुख्यतः पं0 हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी के वेदभाष्य के आधार पर ऋग्वेद का काव्यार्थ कर रहे हैं और उन्होंने प्रथम दशांश पर कार्य पूरा कर लिया है। इस प्रथम दशांश काव्यार्थ की प्रेसकापी भी उन्होंने प्रकाशनार्थ अमरोहा के ऋषिभक्त डा. अशोक आर्य जी को प्रकाशनार्थ भेज दी है। हमारी इन पंक्तियों को पढ़कर प्रसिद्ध ऋषिभक्त आर्य प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने हमें श्री वीरेन्द्र राजपूत जी को सहर्ष भेंट करने के लिये पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार के ऋग्वेदभाष्य का सात खण्डों का पूरा सैट भिजवाया था। कल हमने श्री वीरेन्द्र राजपूत जी के निवास पर जाकर यह पूरा सैट उन्हें भेंट किया। इस ऋग्वेदभाष्य की भेंट को प्राप्त कर श्री वीरेन्द्र राजपूत ही अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने हमें इसके लिए श्री प्रभाकरदेव आर्य जी का धन्यवाद करने का निवेदन किया। इस अवसर पर हमने उनका एक चित्र भी लिया जिसे हम प्रस्तुत कर रहे हैं। श्री राजपूत जी का जन्म 20 नवम्बर, सन् 1939 ई. को जनपद बिजनौर के एक गांव झुझेला में हुआ था। वर्तमान में वह आयु के 83 वे वर्ष में चल रहे हैं। उनका शरीर भी आयु के अनुसार कुछ कमजोर हो गया है। वह इस कार्य को करने में अपनी धर्मपत्नी माता सुशीला देवी जी के सहयोग का धन्यवाद करते हैं और इसका श्रेय भी उन्हें देते हैं। अभी ऋग्वेद के लगभग 9000 मन्त्रों का काव्यार्थ शेष है। वह चाहते हैं कि कोई एक या कुछ ऋषिभक्त उनके इस कार्य में सहयोग करें। ईश्वर से प्रार्थना है कि किसी प्रकार से श्री वीरेन्द्र आर्य जी के जीवन में यह कार्य सम्पन्न हो जाये।

हम भाग्यशाली हैं कि देहरादून में रहने और श्री वीरेन्द्र राजपूत जी द्वारा हमसे स्नेह करने के कारण हमें उनका सान्निध्य प्राप्त होता रहता है। फोन पर भी हम एक दूसरे से समाचार लेते देते रहते हैं। हम ईश्वर से श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की कामना करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनके द्वारा किया जा रहा ऋग्वेद के काव्यार्थ का कार्य पूरा हो जाये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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