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संपादकीय

वेद का राष्ट्रगान और यजुर्वेद

अखिल विश्व के नियंता, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर सर्वाधार, सर्वांतर्यामी, जगतपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा से विगत 15,16,17,18 अप्रैल 2022 को उगता भारत समाचार पत्र परिवार की ओर से यजुर्वेद पारायण यज्ञ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अनेकों दिव्यजनों ने अपनी भव्य और गरिमामय उपस्थिति से हम सबको कृतार्थ किया। हमारे अनेकों प्रियजनों और परिजनों ने आकर इस अवसर पर अपनी उपस्थिति प्रकट की और यज्ञ में आहुतियां डालीं। उन सबके प्रति हम हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
यह यज्ञ हमने उगता भारत समाचार पत्र परिवार के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य जी के विधि व्यवसाय के 45 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में आयोजित किया। यज्ञ के ब्रह्मा आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान और वेदों के प्रकांड पंडित आचार्य विद्या देव जी महाराज रहे। चार दिन तक निरंतर अमृत वर्षा होती रही। हृदय में वेद की वाणी अपना असर दिखाते हुए आनंदित करती रही।
वेदों में दूसरा स्थान यजुर्वेद का है। इसके पहले अध्याय में दर्शपौर्णमास , दूसरे अध्याय में पिंडपितृयज्ञ ,तीसरे अध्याय में अग्निहोत्र, चातुर्मास ,चौथै अध्याय से आठवें अध्याय तक अग्निष्टोम और सोमयाग विधान नौवें अध्याय में वाजपेय , राजसूय विधान, दसवें अध्याय में सौत्रामणी ,ग्याहरवें अध्याय से अठारह वें अध्याय तक – अग्निचयन , उखाभरण , चित, रुद्र , शतरुद्र, वसोर्धारा, राष्ट्रभृच्च आदि , उन्नीसवें अध्याय में परिशिष्ट का आरंभ होता है।बीसवें और इक्कीसवें अध्याय में सोमसम्पादन विधिः ,
तेइसवें , चौबीस और पच्चीस वें अध्याय में अश्वमेध , 26 वें अध्याय से शेष सभी अध्यायों में पुरुष मेध , सर्वमेध , पितृमेध आदि विवरण मिलता है , अंतिम चालीसवें अध्याय में ईशावास्योपनिषद है ।


इस प्रकार यजुर्वेद का प्रतिपाद्य विषय बहुत ही उपयोगी है। यह न केवल हमारे जीवन निर्माण में बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी काम आता है। जीवन और जगत की अनेकों गंभीर समस्याओं और उलझनों को खोलने में सहायक होता है। जीवन को सद्गति और प्रगति देकर उन्नति के रास्ते पर पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वेद का राष्ट्रगान भी इसी वेद में आता है। जिससे उत्कृष्ट और पवित्र राष्ट्र की कोई अवधारणा नहीं हो सकती । आज के सभी राजनीतिक मनीषियों के लिए वेद का राष्ट्रगान संबंधी मंत्र बहुत ही अधिक मार्गदर्शक हो सकता है। यह मंत्र इस प्रकार है :

ओ३म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ — यजुर्वेद २२, मन्त्र २२अर्थ-
ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी।क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी ॥होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही ॥बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें।इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें ॥
फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी।
हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी ॥

हमारा मानना है कि यदि यजुर्वेद में अन्य सभी मंत्र नहीं होते और केवल यह मंत्र ही होता तो भी यह आज के सभी राजनीतिक मनीषियों के लिए सर्वोत्तम प्रेरणा का स्रोत होता। तब यजुर्वेद विश्व के सभी राजनीतिक मनीषियों के लिए अद्भुत और सकारात्मक संदेश के साथ-साथ उर्जावंत उपदेश भी दे रहा होता। अपने प्रतिपाद्य विषयों के दृष्टिगत यजुर्वेद ने राष्ट्र पर जितनी सुंदर उपदेशात्मक शैली में हम सबको संबोधित किया है उससे इस बात का भी पता चल जाता है कि भारत में सृष्टि के पहले दिन से ही वैदिक राष्ट्र की अवधारणा स्थापित हो गई थी। इस विषय में यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य विद्या देव जी महाराज के द्वारा राष्ट्र, संस्कृति, देश और राज्य पर विशेष मार्गदर्शन प्रस्तुत किया गया। इन शब्दों की हृदयग्राही व्याख्या प्रस्तुत कर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारत ही विश्व का मार्गदर्शक रहा है और भविष्य में भारत ही विश्व का मार्गदर्शक हो सकता है।
इस अवसर पर डॉ वागीश आचार्य जी जैसे आर्य जगत के मूर्धन्य विद्वान उत्कृष्ट मार्गदर्शन मिला। जिन जिन विद्वानों ने इस अवसर पर अमृत वर्षा कर उगता भारत परिवार को लाभान्वित किया उन सबके प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। इन विद्वानों में राष्ट्र निर्माण पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और आर्य जगत के भामाशाह के नाम से प्रसिद्ध ठाकुर विक्रम सिंह, राष्ट्र निर्माण पार्टी के अध्यक्ष डॉ आनंद कुमार ( पूर्व आईपीएस) अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित नंदकिशोर मिश्र, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री हरीश चंद्र भाटी, आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के ओजस्वी अध्यक्ष महेंद्र सिंह आर्य, मोहन देव शास्त्री कुलदीप विद्यार्थी डॉ कपिल कुमार, प्राचार्या आदेश आर्या का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य जगत के सुप्रसिद्ध वावप्रस्थि देव मुनि जी द्वारा की गई। उनके अतिरिक्त गिरीश मुनि जी व ओम मुनि जैसे वानप्रस्थी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री आर्य सागर द्वारा किया गया।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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