इस बार पाकिस्तान सरकार के बदलने में रहा है सुप्रीम कोर्ट का अहम रोल

 डॉ. वेदप्रताप वैदिक

शहबाज शरीफ ने संसद में और उसके बाहर भी बहुत ही संतुलित और मर्यादित विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने प्रतिशोध, अतिवाद, शक्ति के दुरुपयोग आदि से मुक्त रहने का वादा किया है। मुख्यमंत्री के तौर पर और उसके पहले व बाद में शाहबाज से मेरी कई बार भेंट हुई है।

हमेशा की तरह पाकिस्तान की इमरान सरकार पांच साल के पहले ही उलट गई। इस बार उसे पाकिस्तान की फौज ने नहीं, अदालत ने उलटाया है। यदि फौज उसे उलटा देती तो भी अदालत उसे सही ठहरा देती, जैसे कि उसने पिछले तख्ता-पलट के वक्त ‘परिस्थिति की अनिवार्यता’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। लेकिन इमरान खान ने इस बार अपनी नासमझी के चलते अदालत को खुद ही मौका दे दिया कि उसके फैसले पर कोई उंगली नहीं उठा सके। खुद इमरान ने भी अदालत के इस फैसले को गलत नहीं कहा है कि भंग संसद को वापिस लाया जाए और अविश्वास प्रस्ताव को दुबारा पेश किया जाए। यही हुआ। लेकिन हम ध्यान दें कि अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 174 वोट ही पड़े याने कुल दो वोटों के बहुमत से अब यह नई सरकार चलेगी।

असली सवाल यह है कि शेष सभी सांसद कहां थे? दल-बदलू सांसद भी गैर-हाजिर क्यों रहे? वे तो सदन में आ सकते थे। वे यदि विरोध में वोट नहीं देना चाहते तो वे तटस्थ रह सकते थे। लेकिन इमरान के अनुयायियों की तरह उनके दल-बदलू भी विरोधियों के साथ खुलकर नहीं चले, यह तथ्य नई शाहबाज शरीफ सरकार के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। यदि इमरान का जन-आंदोलन तूल पकड़ गया तो ये दल-बदलू ही नहीं, नई सरकार के कुछ सांसद भी टूटकर इमरान की पीटीआई से मिलने की कोशिश कर सकते हैं। इमरान के इस आरोप के ठोस प्रमाण अभी तक सामने नहीं आए हैं कि उनकी सरकार अमेरिका के इशारे पर गिराई गई है। लेकिन इमरान के व्यक्तित्व और भाषण-कला की टक्कर में इस समय कोई अन्य नेता दिखाई नहीं पड़ता। वे ‘अमेरिकी हस्तक्षेप से बनी इस सरकार’ के खिलाफ यदि कोई जन-आंदोलन खड़ा कर सके तो इस नई सरकार को अगला डेढ़ साल काटना मुश्किल हो जाएगा।
भावी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संसद में और उसके बाहर भी बहुत ही संतुलित और मर्यादित विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने प्रतिशोध, अतिवाद, शक्ति के दुरुपयोग आदि से मुक्त रहने का वादा किया है। मुख्यमंत्री के तौर पर और उसके पहले व बाद में शाहबाज से मेरी कई बार भेंट हुई है। वे अहंकारी और निरंकुश स्वभाव के व्यक्ति नहीं हैं लेकिन पीपीपी के बिलावल भुट्टो और मौलाना फजलुर्रहमान से वे कैसे पार आएंगे? ये नेता एक-दूसरे को चोर, डकैत, उठाईगीरा, अपराधी, रिश्वतखोर, दुराचारी और पता नहीं क्या-क्या कहते रहे हैं। उनकी पार्टी के लोग एक-दूसरे पर खुले-आम हमले बोलते रहे हैं। और फिर चुनाव हुए तो सीटों के बंटवारे को लेकर ये आपस में भिड़ सकते हैं।

यदि मियां नवाज़ शरीफ लंदन से लौट आए तो फौज के साथ उनका रिश्ता कैसा रहेगा? इसके अलावा अभी शाहबाज़ के मुक़दमे का फ़ैसला भी आना है। बड़ा सवाल यह है कि इमरान शासन के अधूरे कामों और नई समस्याओं को यह गठबंधन सरकार कैसे हल कर पाएगी। क्या श्रेय लूटने की कामना इनमें दंगल नहीं करवा देगी? यह भी हो सकता है कि इमरान और उनके साथियों को यह नई सरकार जेल भिजवाने की कोशिश कर डाले। ऐसे में शाहबाज से मैं कहूंगा कि वे हमारे चौधरी चरण सिंह से सबक ले लें, जिन्होंने इंदिरा गांधी को जेल भिजवाया था तो जनता ने उनको घर बिठा दिया था।

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