मेरे पूज्य पिता की दिव्य आत्मा …..

कविता  —- 44

मेरे पूज्य पिता की दिव्य आत्मा …..

मेरे बापू ! तुम कहां गए अपने जाने का  दुःख  देकर,
खोजती हैं नजरें मेरी, नित्य नाम तुम्हारा ले – लेकर।
ना ऐसा दिन कोई आता जब याद तुम्हारी ना आती हो,
मेरे उत्सव के संसार में आ, जब वो ना सेंध लगाती हो।।

आपके साथ बहारें लुट गयीं, चमन लुटा और मन टूटा,
रोने के मौसम ने आकर  खुशियों के बाजार  को लूटा।
जहां-जहां भी मैंने खोजा बापू ! कहीं नहीं मिले मुझको,
वे शांत गुलाबी आंखें तेरी,  आती याद सदा हैं  मुझको।।

पिता कहीं नहीं ? मेरे जीवन में ऐसा मैं नहीं कह  सकता,
हर श्वास में है वास तुम्हारा मैं तुमसे दूर  नहीं हो सकता।
तुम  विश्वास बने बैठे जीवन में आश मेरी तुमसे  जीवित,
हर सपने को साकार करो तुम जो भी करता मैं निश्चित।।

परिवार की पतवार तुम आज भी हो ना कहीं तुम दूर गए,
ना परिवार तुम्हें भुला सकता ना  तुम भी हमको भूल गए।
यादों का मिलन सपनों का मिलन हर दिन होता  रहता है,
आशीर्वाद के झरने का मीठा मीठा आभास बना रहता है।।

स्मृतियों के झुरमुट के पीछे, बापू ! तुम बैठे दिखाई देते हो,
आशीर्वाद की अमृत – वर्षा करते हमें नित्य दिखाई देते हो।
स्वाभिमानी व्यक्तित्व आपका संबल हर कठिनाई में  देता ,
जब भी कोई विपदा आती ,हमें वही स्वरूप दिखाई  देता।।

ये नहीं मानता मेरा जिद्दी मन , कैसे तुमको मृतक कह दूं,
कैसे अपने ही अमृतमय साये को अलग स्वयं से मैं कर दूँ?
आंखों से जब आंसू गिरते हैं वह भावपूर्ण अभिव्यक्ति होती,
मेरी श्रद्धा उमड़ ह्रदय में आती बिखर जाते मानस के मोती।।

पिता वरदान विधाता का जो विष्णु के रूप में पालन करता,
वह संरक्षक और पोषक बन कर हम  सबके कष्टों को हरता ।
मेरे पूज्य पिता की दिव्य आत्मा जहां भी  रहे , आनंदित हो,
‘राकेश’ श्रद्धावान पुत्र बन, पिता के चरणों में नतमस्तक हो।।

( यह कविता पूज्य पिताजी स्वर्गीय महाशय राजेंद्र सिंह आर्य जी की 110 वीं जयंती के अवसर पर 5 अक्टूबर 2021 को लिखी गई।)

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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