वाणी रूपी गाय को, संयम रूपी खूँटे से बाँध कर रखिए

बिखरे मोती

संयम खूंटे से बाँधले,
वाणी रूपी गाय,
खुली छोड़ने पर तेरी,
यस – खेती चर जाय।।1661।।

भावार्थ :- जिनकी वाणी में प्राण और प्राण में प्राण होता है, संसार में ऐसे लोग बिरले ही होते हैं। वाणी माननीय व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ गहना है। सब गहने एक दिन अपनी चमक खो देते हैं किन्तु वाणी व्यक्ति का साथ जीवनपर्यन्त निभाती है और व्यक्तित्व में चार चांद लगाती है, सम्मान दिलाती है व्यक्ति की पूजा कराती है। इसके उद्वेगों पर सर्वदा कड़ी दृष्टि रखिए। इसे सहज, सरल, सरस, हितकारिणी, प्रभावी प्रशस्या और गण्या बनायें। वाणी व्यवहार का आधार होती है। यह ऐसा प्रभु- प्रदत्त गहना है जिसका कोई सानी नहीं है।इसे ने तो कोई चुरा सकता है और न ही कोई छीन सकता है। वाणी में विवेक और विनम्रता यश की सुगन्ध भरते हैं। वाकपटुता और व्यवहार कुशलता है ह्रदय पर राज करते हैं। यह ऐसा आमोघ अस्त्र है, जिससे शत्रु भी मित्र बनते हैं, ह्रदय परिवर्तन होते हैं। यहां तक वाणी की शीतलता और मृदुल्ता से घृणा-द्वेष और क्रोध के ज्वालामुखी तक शान्त होते हैं। शान्ति, प्रेम और आनन्द की अमृत वर्षा होती है। वाणी इन्सान को शैतान से फरिश्ता बना देती है। जरा वाणी का तप करके तो देखिए,यह आपके व्यक्तित्व को ऐसा अलंकृत करती है, जैसे सूर्य की स्वर्णिम रश्मिया सूर्य के आभामण्डल को सुसज्जित करती है। इसलिए वाणी का गहना सब गहनों में श्रेष्ठ माना गया है। वाणी का महत्व अतुलनीय है,महनीय है,शोभनीय है,अभिनन्दनीय और वन्दनीय है। इसलिए वाणी रूपी गाय को वाकसंयम और विवेक के खुँटे से सर्वदा बांध कर रखें।यदि वाणी रूपी गाय को खुला छोड़ दिया जाए तो यह आप के मधुर सन्बन्धों के ताने-बाने और प्रतिष्ठा की फसल को चर जाएगी अर्थात उजाड देगी, तहस-नहस कर देगी। यहा चंद्रगुप्त मौर्य का उदाहरण देना समीचीन रहेगा। चन्द्रगुप्त मौर्य जब सम्राट बना और उसे रत्नजडित मुकुट पहनाया गया तो उसके गुरू तथा प्रधानमंत्री चाणक्य ने कहा था- “चन्द्रगुप्त तुम्हारा यह रत्नजड़ित मुकुट तुम्हारे शीश पर नहीं अपितु तुम्हारी जुबान पर टिका है।” इसलिए वाकचातुर्य के साथ-साथ वाकसंयम नितान्त आवश्यक है।
बृहददारण्यक उपनिषद का ऋषि इस संदर्भ में मनुष्य को सचेत करते हुए कहता है – ” वाकचातुर्य और वाकसंयम में सर्वदा समन्वय बनाकर रखें अन्यथा इनका अन्तर आप की नैया को कभी डुबा सकता है।”
क्रमशः

Comment: