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कविता

बलिदान जिसने हैं दिए ….

 
जिन आर्यों के धर्म पर हम भारतीयों को नाज है ,
जिनकी मर्यादा विश्व में कल बेजोड़ थी और आज है ।
उनको विदेशी मानना इस राष्ट्र का भी अपमान है ,
जो लोग ऐसा कह रहे समझो वह कोढ़ में खाज हैं।।’

संस्कृति रक्षार्थ बलिदान जिसने हैं दिए ,
भारत भूमि के लिए प्राण जिसने हैं दिए।
इतिहास के वे लाल अमूल्य मोती भी खरे,
प्रणाम उसको ही करें, लाल अपने खो दिये।।

चोटी जनेऊ हितार्थ शीश अपने कटवा दिए,
अकबर ने जिनके मुंड से मीनार थे चिनवा दिए ।
वे पूर्वज हमारे महान थे , महान उनकी सोच थी,
उनके किए पर गर्व है आजाद हमें करवा गए ।।

बंदी बनाए लाल पहले फिर काट डाले शीश थे,
अकबर के ऐसे कारनामे बताओ कैसे उच्च थे?
क्षत्रिय योद्धा  हमारे  हर  प्रकार से  आदर्श  थे ,
वह आदर्श के आदर्श हैं आदर्श हमारे उत्कर्ष के।।

जिनके हरम में हजारों हिंदू ललनाएं थीं सड़ी,
सम्मान की रक्षार्थ जिनसे वीरांगनायें थी लड़ीं।
उन मुगलों के शासन को कैसे कहें आदर्श हम ?
देश धर्म की रक्षार्थ जिनसे हमारी सेनाएं थी भिड़ीं।।

बलिदान के बलिदान को इतिहास से ओझल किया,
बना दिए वे  पूज्यवर जिन्होंने देश से था छल किया।
आज हम विचार कर लें  है इतिहास की यह साक्षी,
भारत हमारा महान था जिसे पूर्वजों ने बल दिया।।

जो छल कपट करते रहे  और देश  को   ठगते   रहे,
जो  देख शत्रु  का  सैन्य दल,  छुपते रहे – भगते रहे।
वे आदर्श  हमारे  देश  के , कैसे  हो  सकते हैं भला ?
‘ राकेश’  जिनकी गद्दारियों  से इतिहास हमारा है भरा।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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