बिखरे मोती : बड़ा दुर्लभ है,संसार में सात विभूतियों का संयोग (भाग-1)

स्मृति मेधा क्षमा,
धृति श्री यश वाक।
जग में सात विभूतियाँ,
बाकी तो सब ख़ाक॥1645॥

व्याख्या :- संसार में सात विभूतियाँ (विलक्षणता) ऐसी हैं, जो किसी एक व्यक्ति के पास एक साथ बड़ी दुर्लभ मिलती है। ऐसा व्यक्ति कोई पुण्यसील आत्मा होता है, जिसका प्रारब्ध महान् होता है। प्रभु का प्रिय कृपा-पात्र होता है।
1 स्मृति:- किसी पुरानी सुनी समझी बात की फिर याद आने को स्मृति कहते हैं।संसार में ऐसे व्यक्ति कम ही मिलते हैं, जो अपने विषय के पारंगत होने के साथ-साथ उनकी स्मृति इतनी तेज होती है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म बात भी उन्हें याद होती है। प्राचीन काल में वेद लिपिबद्ध नहीं थे। इस ईश्वरीय ज्ञान को एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को सुनाकर ही कण्ठस्थ कराती थी।इसलिए वेदों को ‘श्रुति’ भी कहा जाता है। आज भी ऐसे विद्वान है, जो घटना, परिस्थिति अथवा व्यक्ति से सम्बन्धित बात को कम्प्यूटर की तरह फीड कर लेते हैं। ऐसे प्रभु- प्रदत ‘स्मृति’ नामक विभूति के कारण ही सम्भव है।ऐसे लोग भी दुर्लभ मिलते हैं।
2 मेधा:- बुद्धि का वह उत्कृष्टतम रूप जो स्थाई रूप से ज्ञान को धारण करता है,तथा घटना परिस्थिति को समझ कर त्वरित रूप से सही और सटीक निर्णय करता है। इस शक्ति को मेधा कहते हैं। जो व्यक्ति इस विभूति से अलंकृत होता है, उसे मेधावान अथवा बुद्धिमान कहते हैं। सम्राट चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री चाणक्य बड़ा मेधावान था। प्रतिभाशाली था। उसने ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ जैसे ग्रन्थ संसार को दिए जो आज भी संसार का मार्गदर्शन कर रहे हैं। मेधा (बुद्धि) परमपिता परमात्मा का अमूल्य उपहार है। इसलिए गायत्री-मन्त्र के अन्ति सोपान में महानता की ओर ले जाने वाली बुद्धि की प्रार्थना की गई है।
3 क्षमा:- अपने सामर्थ्य होते हुए भी अपराध करने वाले को कभी किसी प्रकार से किंचितमात्र भी दण्ड न मिले ऐसा भाव रखना तथा उससे बदला लेने अथवा किसी दूसरे के द्वारा दण्ड दिलवाने का भाव न रखना ही ‘क्षमा’ है। क्षमा हर कोई नहीं कर सकता। क्षुद्र बुद्धि अथवा संकीर्ण ह्रदय और जो प्रतिरोध की भावना से ग्रस्त है वे क्या किसी को क्षमा करेंगे ? क्षमा तो बिरले लोग क्या करते हैं। क्षमा वीरों अथवा सत्पुरूषों के व्यक्तित्व का भूषण है, कायरों का नहीं।इसके उदाहरण देखिए – महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जिन्होंने अपने हत्यारे जगन्नाथ को प्राणदान दिया तथा नेपाल भागने के लिए किराया भी दिया। दूसरा उदाहरण ईशामसीह का देखिए जिन्होंने सूली पर चढ़ते वक्त कहा था – ”हे प्रभु! इन्हें क्षमा कर देना,ये बेचारे जानते ही नहीं कि हम क्या कर रहे हैं ?” इससे सिद्ध होता है कि ‘क्षमा’ प्रभु-प्रदत्त विभूति है।

क्रमश:

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