Categories
विविधा

इमाम बुखारी का बुखार

जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी को इतना बुखार क्यों चढ़ आया? वे अपनी निजी कार्यक्रम में किसे बुलाते हैं और किसे नहीं, इसकी पूर्ण स्वतंत्रता उनको है लेकिन उनका यह कहना कि प्रधानमंत्री मोदी भारत के मुसलमानों को भारत का नागरिक नहीं समझते, यह दिमागी बुखार नहीं तो क्या है? नरेंद्र मोदी तो क्या, ऐसी हिमाकत तो जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी और अटलबिहारी वाजपेयी भी नहीं कर सकते थे। क्या भारत का कोई प्रधानमंत्री इतनी मूर्खतापूर्ण बात कह सकता है कि वह भारत के 15−20 करोड़ नागरिकों को भारतीय नागरिक नहीं मानता। ऐसी बेसिर−पैर की बात इमाम बुखारी कहें और अपने आप को भारत के मुसलमानों का प्रवक्ता कहें, यह बहुत ही दुखद है। उन्होंने मोदी को हिटलर बनाने की कोशिश कर डाली।

हमारे टेलिविजन चैनलों को आजकल बात का बंतगड़ बनाने की लत पड़ गई है। वरना बताइए कि अहमद बुखारी की हैसियत क्या है? वे अपने आप को ‘शाही’ इमाम कहते हैं। कौन है, शाह? कहां है, शाह? शाहों को नदारद हुए डेढ़−दो सौ साल हो गए। आप फिजूल ही उनकी लंगोट पहने घूम रहे हैं। कोई भी मस्जिद किसी की बपौती नहीं होती। वह तो अल्लाह का घर है। उसका इमाम तो इबादत करनेवालों की मर्जी से बनाया जाना चाहिए। बाप बेटे को थोप दे, यह कौनसी अल्लाहपरस्ती या इस्लामपरस्ती है। अपने बेटे को मामूली राजनीतिक नौकरी दिलवाने के लिए नेताओं के चक्कर काटनेवाला आदमी अपने आप को देश के मुसलमानों का प्रवक्ता कहे, यह भी अजीब−सी बात है।

गुजरात के 2002 के दंगों के लिए मोदी की जितनी मरम्मत हो सकती थी, सबने कर ली लेकिन फिर भी देश ने पूर्ण बहुमत से उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है। उस बहुमत का अपमान करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। आप दुनिया के जिन लोगों को ‘दस्तारबंदी’ में बुला रहे हैं, वे आपके रिश्तेदार नहीं हैं। वे बड़े−बड़े पदों पर बैठे हुए लोग हैं। उन लोगों के साथ−साथ भारत के सबसे बड़े पद को भी आपका निमंत्रण चला जाता तो आपकी नाक नहीं कट जाती। मोदी के निमंत्रण को हमारे टीवी चैनलों ने मुद्दा बना दिया। वरना बुखारी जैसे हजारों लोग निमंत्रण भेजते हैं, जिन्हें मोदी क्या, छोटे−मोटे लोग ही कूड़े की टोकरी के हवाले करते हैं।

हमारे टीवी चैनलों ने ऐसी हायतौबा मचा दी कि यदि मोदी को निमंत्रण नहीं गया तो आसमान टूट पड़ेगा। कोई यह तो पूछे कि मोदी को ऐसे निमंत्रणों की कोई परवाह भी है या नहीं? जिस आदमी को पांच माह में इतना समय भी नहीं मिला कि वह उसे चुनाव जितानेवाले मेहरबान लोगों को फोन कर सके, वह किसी इमाम के लिए अपने दो-तीन घंटे क्यों खराब करेगा? खास तौर से ऐसे इमाम के लिए जो मोदी को अब भी मुसलमानों का दुश्मन घोषित करते रहने पर आमादा है। मुझे पता नहीं, मोदी क्या करेंगे लेकिन उनकी जगह इंदिरा गांधी होती तो नए इमाम की पगड़ी बंधाई को वह पगड़ी खुलाई में बदल देतीं। जितने विदेशियों को निमंत्रण भेजने के नाम पर इमाम फूलकर कुप्पा हो रहे हैं, क्या वे मोदी की अनुमति के बिना भारत में घुस सकते हैं? उन्हें वीज़ा मिलेगा, तभी तो वे आएंगे।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version