श्वान वृत्ति के होते हैं अधीर और उतावले

जिधर देखो उधर अनावश्यक उतावलापन हावी है। आदमी हर काम जल्दी से जल्दी कराना और होते देखना चाहता है। धैर्य और गांभीर्य मनुष्य का गुण है जबकि उतावलापन और अधीरता वह नकारात्मक पक्ष है जो अधिकांश लोगों में देखने को मिलता है।

अपने या किसी भी प्रकार के अच्छे कामों को शीघ्रता से पूर्ण कर लेने की मानसिकता अच्छी बात है। इसके लिए पहल करना अच्छा स्वभाव है लेकिन किसी भी काम की जल्दी के लिए हायतौबा मचाना और अपना काम पहले निकलवाने की मानसिकता का प्रदर्शन अपने आपमें बेहूदगी ही है। पर आजकल इस किस्म के लोग खूब दिखाई देने लगे हैं।

कई सारे काम अपने नियत समय पर ही पूर्ण हो पाते हैं, इसके लिए अपनी ओर से जल्दबाजी और अधीरता दर्शाना अनुचित है, बावजूद इसके कई सारे लोग ऎसे होते हैं जो अपने कामों को जल्दी से जल्दी शुरू या पूरा कराने के लिए अतिरिक्त उतावलापन  दर्शाते हैं।

ऎसे लोगों को अपने स्वार्थ से ही मतलब होता है, समय या परिस्थितियां ये कभी नहीं देखते। न ये सामने वालों की विवशता या व्यस्तता पर गौर करते हैं, न काम करने वालों की संवेदनाओं पर।  इन लोगों को एकमेव लक्ष्य यही होता है कि चाहे कितनी भीड़ हो, ढेरों मजबूरियां हों या और कोई से अपरिहार्य कारण, उनका काम जितना जल्द हो सके निकल जाना चाहिए।

बिना किसी ठोस कारण वाली यह अधीरता और उतावलापन इंसान की कमजोरियों मेें गिना जाता है और ऎसे लोगों को कोई पसंद नहीं करता। कई सारे लोग ऎसे होते हैं जो अपने कामों को पूरा कराने के लिए जल्दबाजी का रोना रोते हैं लेकिन दूसरों का कोई सा काम अपने पास आने पर ये कभी जल्दबाजी का परिचय नहीं देते बल्कि अपनी परंपरागत मंथर गति से ही काम करते हैं।

इस मामले में आदमी का यह दोहरा व्यवहार दोगले चरित्र और क्षुद्र स्वार्थों का संकेत देता है। ये लोग सिर्फ अपने ही कामों के प्रति संवेदनशील रहते हैं, दूसरों के कामों या दूसरे लोगों के प्रति न इनमें संवेदनशीलता होती है, न जवाबदेही का तनिक खयाल।

आजकल ऎसे अधीरों की संख्या निरन्तर बढ़ने लगी है। इन अधीरों की कर्कश वाणी, रूखा व्यवहार और अपने कामों को निकलवाने का उतावलापन हमें श्वानों की याद दिला देता है। ऎसे में हर कोई यह गंभीर चिंतन करने पर विवश हो ही जाता है कि या तो ये लोग पूर्व जन्म मेंं श्वान रहे होंगे अथवा भगवान ने इस जन्म में श्वान की बजाय जाने किस भाग्य के मनुष्य शरीर नवाज दिया है।

जिस लपक और तेजी के साथ ये अपने स्वार्थों में भिड़े रहते हैं उससे तो यही संकेत प्राप्त होते हैं। इन लोगों के दैनंदिन व्यवहार का भी अध्ययन किया जाए तो इनमें और श्वानों में काफी कुछ समानताएं देखने को मिलती हैं।

आजकल हर तरफ भीड़ और लम्बी-लम्बी लाईनों का जमाना है। सब तरफ आपाधापी मची है पहले आओ-पहले पाओ वाली। इस स्थिति में यह उतावलापन ज्यादा हावी हो चला है।  कई मर्तबा इतना कुछ होता है कि सभी को आसानी से प्राप्त हो जाता है। बावजूद इसके हम आगे ही आगे इस प्रकार लपकने को तैयार रहते हैं जैसे कि हमें अभी नहीं मिल पाया तो फिर शायद ही मिल पाए।

इंसान में संतोष और शांति के भाव जिस अनुपात में खत्म होते जा रहे हैं उसी अनुपात में अशांति, असंतोष, उद्विग्नता, अधीरता और अकुलाहट बढ़ती जा रही है। जरूरत के अनुरूप जल्दबाजी स्वाभाविक है लेकिन हम खूब सारे ऎसे लोगों को देखते हैं जो बिना किसी जरूरत के कुत्तों की तरह लपकते रहते हैं और दिन-रात अधीर होकर भटकते रहते हैं। ऎसे लोगों में कुत्तों की तमाम देशी-विदेशी नस्लों के दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं।

इनकी वाणी से लेकर चाल और चलन सभी में तेज गति का आभास होता है और लगता है कि मनुष्य के रूप में श्वानों की यह कोई नई प्रजाति अपने लक्ष्यों को पाने के लिए कड़ी मशक्कत ही कर रही हो। आदमी जितना शांत चित्त होगा उतने उसके काम आसानी से होंगे तथा इनमें परिपूर्णता का समावेश होगा।

 धैर्य और गांभीर्य के साथ काम किया जाए तो हमारे जीवन के कई सारे काम सहज और स्वाभाविक रूप से सम्पन्न हो सकते हैं। कर्म जरूर करें लेकिन श्वानों की तरह नहीं, इंसानों की तरह। कई बार हमें अपने कामों की इतनी जल्दी होती है कि हम अनुशासन की सारी सीमाएं तोड़ देते हैं।

कभी हम खुद का पॉवर दिखाने की कोशिश करते हैं, कभी दूसरों के दम पर नाचते-कूदते और उछलते हैं। पर इससे बहुधा काम बिगड़ भी सकते हैं। औरों की निगाह में भी हम इतने गिर जाते हैं कि लोग भी हमारी तुलना कुत्तों से करने लगते हैं।

इसलिए अच्छा है कि जीवन में मर्यादाओं के साथ धैर्यवान व शालीन रहें और बेवजह उद्विग्नताओं को न पालें। पूर्ण संतोष और शांति के साथ अपने कर्म करें तथा इंसान के रूप में पूर्णता पाने की कोशिश करें। लोगों को यह मौका न दें कि वे किसी जानवर से हमारी तुलना कर प्रसन्न होते रहें।

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