सब जगह मुँह न मारें मौलिक दक्षता निखारें

जीवन में सफलता पाने का सीधा सा अर्थ यही है कि उन विधाओं में उच्चतम स्तर की दक्षता प्राप्त करें जिनमें हमारी मौलिक अभिरुचि और दिलचस्पी हो।

हर इंसान में दो-चार मौलिक प्रवृत्तियाँ ऎसी होती ही हैं कि जिन्हें आत्मीयता से अंगीकार कर उस दिशा में आगे बढ़ा जाए तो जीवन का लक्ष्य पाने में आसानी रहती है और सफलता के शिखरों का स्पर्श पाने में इंसान सफल होता ही है।

आमतौर पर मनुष्य में कई सारी प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं। इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि जीवात्मा अपने पूर्व जन्मों में इन विषयों और इन दिशाओं में काम कर अनुभव प्राप्त कर चुका होता है अथवा उनका अधिक ज्ञान होता है।

ऎसे में व्यक्ति मौलिक प्रतिभाओं, रुचियों और दिलचस्पी के विषयों को अपनाता है तो उसमें उसे जल्दी और आशातीत सफलताएं प्राप्त होती हैं तथा उन दिशाओं में उसकी तरक्की निर्बाध तो होती ही है, चरम स्तर का यश और कीर्ति प्राप्त हो सकती है।

इसीलिए कहा गया है कि बच्चों को उसी प्रकार के ज्ञान या हुनर की ओर मोड़ना चाहिए जिसके प्रति उनकी दिली रुचि होती है। ऎसा करने पर बच्चा अपने जीवन में पूर्ण सफलता और आनंद पा सकता है।

इसके विपरीत माता-पिता, अभिभावक और आस-पास के लोग बच्चों में अपनी कल्पनाओं को साकार होते देखना चाहते हैं, और ऎसे में बच्चों को मौलिक प्रतिभाओं की बजाय उन विषयों या हुनरों की ओर मोड़ दिया जाता है जिनका न उन्हें ज्ञान होता है, न उनके प्रति कोई भावना।

यही कारण है कि अधिकांश बच्चे अपने जीवन में असफलता प्राप्त करते हैं और फिर मृत्यु तक अपनी कल्पनाओं के पूरा न होने का मलाल बना रहता है। बच्चों की ही बात क्यों करें, अधिकतर समझदार और बड़े लोगों में भी यही आदत होती है।

हममें से तकरीबन सारे लोग अपने जीवन में कुछ बनकर दिखाना चाहते हैं, सुरक्षित आजीविका, सुख-समृद्धि से भरपूर जीवन और अखूट यश चाहते हैं और इसके लिए जाने कितने जतन करते रहते हैं। हम सभी में सर्वशक्तिमान परमात्मा ने कुछ न कुछ ऎसा दे ही रखा है जो कि जन्म के समय से ही भरपूर है, जरूरत बस उस दिशा में आगे बढ़कर चाभी से खजाना खोलने भर की होती है, मगर हम वो भी नहीं कर पाते।

हम यदि आत्मचिन्तन से अपने मार्ग चुनें तो आत्मा उन्हीं कामों की ओर हमें बढ़ाएगी जिन कामों के प्रति हमारी मौलिक प्रतिभाएँ हैं और जन्मजात भी। दुनिया में कोई सा काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर रुचि, हुनर और ज्ञान सार्वजनीन उपयोग और संसार भर के लिए जरूरी होता है।

लेकिन हम जमाने की चकाचौंध, संगी-साथियों के भरमावे में आकर तथा सम सामयिक काम-धंधों की लोकप्रियता के फेर में पड़कर अपनी मौलिक प्रतिभाओं को नज़रअंदाज कर दिया करते हैं और उन मार्गों को पकड़ लिया करते हैं जो हमारे लिए एकदम नए-नए हैं और मौलिक प्रतिभाओं के इतर या विलोमानुपाती।

अधिकांश लोगों की असफलता का यही एकमात्र कारण है कि हम दूसरों की देखादेखी चलते हैं, अपने मन तथा आत्मा की आवाज की अवमानना करते हैं। वरना यदि हम सभी अपनी मौलिक प्रतिभाओं की दिशा में आगे कदम बढ़ाते रहें तो हमें आगे बढ़ने तथा परम सुख एवं चरम श्रेय पाने से कोई रोक नहीं सकता।

इसलिए जो हमारी मौलिक प्रतिभाएं हैं, जिन विषयों में हमारी रुचि है, उन्हीं विषयों और हुनरों को आत्मसात कर उन्हीं मेंं चरम स्तर की दक्षता पाने की कोशिश करनी चाहिए। हमारा संकट यह है कि हम अपनी मौलिकताओं की अवहेलना कर तात्कालिक आकर्षणों के मोहपाश में जकड़ जाते हैं और फिर बाद-बार हमें अपने कार्यक्षेत्र और विषय बदलने पड़ते हैं।

ऎसे में हम न घर के रह पाते हैं न घाट के। और जीवन के अंतिम पड़ाव तक भी हम यह नहीं समझ पाते कि आखिर हमारी असफलता का राज क्या है। आजकल इंसान अपने विषयों और हुनरों तक सीमित नहीं रहना चाहता। पीढ़ियों से कोई लोकप्रियता और पब्लिसिटी का भूखा है, कोई पैसों का भूखा है, किसी को जमीन-जायदाद बटोरने और अपने नाम करने की भूख है,  कोई अपने आपको बड़ा और ऊँचा दिखाने, दूसरों से श्रेष्ठ और महान मनवाने की भूख के मारे परेशान है और कोई किसी अन्य प्रकार की भूख से।

यह भूख ही है जो सुरसा के मुँह की तरह हर कर्मक्षेत्र में सामने आ ही जाती है और आदमी अपनी भूख को मिटाने के लिए जात-जात के काम-धंधों, नालायकियों, हथकण्डों, जायज-नाजायज षड़यंत्रों में रम जाता है और सब तरह से अपनी भूख मिटाना चाहता है। और इस सारे झमेलों के बीच आदमी सब तरह मुँह मारने लगता है, हर तरफ समीकरण और संयोग बिठाता है, जरूरी और गैर जरूरी तथा नापाक समझौते करने लगता है।

खूब सारे विषयों और मोहपाशों में घिरा इंसान समझता है कि वह हर क्षेत्र और कार्यक्षेत्र में महान और लोकप्रिय है, सब तरफ से आवक के रास्तों का उपयोग कर रहा है, मगर ऎसा मोहपाश ज्यादा दिनों तक चलता नहीं।

इसलिए उन्हीं विषयों और क्षेत्रों पर एकाग्रता से पूरा ध्यान केन्दि्रत करें जिनके प्रति हमारी मौलिक प्रतिभा और रुचि हो तथा जिनमें तरक्की की अपार संभावनाएं हों।  अवसर मिलें या न मिलें, जब हुनर और ज्ञान उच्चतम स्तर की प्रतिष्ठा पा लेता है तब व्यक्तित्व अपने आप सारे बाँध और बंधन तोड़कर निकल जाता है और कोई न कोई शिखर जरूर पा लेता है।

आज समाज और संसार को ऎसे लोगों की जरूरत नहीं है जो हर विषय और मामले में दखल रखते हों, आज विशिष्ट क्षेत्रों में प्रभावी दखल रखने वालों की जरूरत है। अपनी मौलिक प्रतिभाओं को पहचानें तथा उन्हीं दिशाओं में आगे बढ़ें, तभी सफलता के शिखरों का स्पर्श कर सकते हैं।

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