आचार्य बालकृष्‍ण 

चीड़ का बहुत ऊँचा वृक्ष होता है | इसकी छाल में किसी औज़ार से क्षत करने पर एक प्रकार का चिकना गोंद निकलता है जिसे श्रीवास या गंधविरोजा कहते हैं | इसके वृक्ष से तारपीन का तेल भी निकाला जाता है | प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं व निघण्टुओं में सरल नाम से चीड़ का वर्णन प्राप्त होता है | इसके फल देवदारु के फल जैसे किन्तु आकार में कुछ बड़े ,पिरामिड आकार के नुकीले होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल मार्च से नवम्बर तक होता है |

चीड़ के औषधीय प्रयोग –

१- चीड़ के गोंद (गंधविरोजा) का क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से मुँह के छाले ठीक होते हैं |

२- चीड़ के तेल की छाती पर मालिश करने से सांस की नली की सूजन,श्वास तथा खांसी में लाभ होता है |

३- गंधविरोजा (चीड़ का गोंद ) को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है तथा घावों में पस भी नहीं होती है |

४- गर्मी के कारण यदि शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आई हों तो चीड़ के तेल को लगाकर पांच मिनट बाद धो देने से लाभ होता है |

५- बच्चों की पसली चलने पर चीड़ तेल में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिलाकर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ होता है |

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