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गाय बची तो ही हिन्दू और मुसलमान बचेगा-भाग दो

cowहरपाल सिंह

जबकि प्रकृति के गर्भ में द्रव्य सीमित मात्रा में होने के कारण युरेनियम 85 साल में, कोयला 70 साल, तेल 58 सालों में, गैस 52 सालों में, दो तिहाई खत्म हो जायेगें। ऊर्जा उत्पादन स्रोतों के खर्च का ब्यौरा देखने पर पता चलता है कि 1 मेगावाट विद्युत उत्पादन में कोयले से 14 करोड़, नाभिकीय से 21करोड़, कचरे से 10-11 करोड़ ;साथ ही 200 टन खाद मुफ्त में ध्द बायोमास से ढाई से 3 करोड़ ; साथ ही 20 लाख रुपये की खाद मुफ्रत मेंध्द की लागत आती है। देश कि घरेलू ईधन की आपूर्ति तो अब बायों गैस से ही सम्भव है। आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा 1 किलो सी .एन.जी. से 25 से 40 किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाडिय़ां चलाई जा रही है। और घरेलू गैस सिलेन्डर भरना प्रारम्भ कर दिया गया है। घरेलू गैस के व्यापार पर आर्थिक नजर डाले तो लगभग 70 हजार करोड़ है। जबकि देश के 40 करोड़ वाहन मिलाकर 10 लाख टन प्रतिवर्ष कच्चा तेल खा जाते है। साथ ही 50 करोड़ टन कार्बनडाई आक्साईड उत्सर्जित करते है। मात्र 10 करोड़ टन गोबर से 8 से 10 करोड़ परिवार के ईधन की पूर्ति हो सकती है। जिस देश में 30 प्रतिशत गोबर जलाया जाता है। ब्रिटेन में प्रतिवर्ष 16 लाख टन बिजली का उत्पादन एक गोबर गैस प्लान्ट से हो रहा है। बैतूल में गोबर गैस से कम्पयूटर चलाया जा रहा है। बायोगैस से हेलीकाप्टर उड़ाने की सपफलता के करीब हम हैं। चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू गैस की आपूर्ति गोबर गैस प्लान्ट से चलाई जा रही है। गोवंश के गोबर गैस प्लान्ट से ही 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती और 3 करोड़ 40 लाख पौधो बच सकते है। जिससे 3 करोड़ 40 टन कार्बनडाई आक्साईड का खात्मा भी होता रहेगा। साथ ही 3.5 करोड़ टन कोयला की बचत होगी। जापान के वैज्ञानिको ने दो महत्वपूर्ण बैक्टीरिया की प्रजातियों का पता लगाने का दावा किया है। जो एक बायो रिएक्टर में हाइड्रोजन का निर्माण कर सकेंगे। इस खोज को गुप्त रखा गया है। हाइड्रोजन से पेट्रोल की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा ऊर्जा प्राप्त होती है। देश में बैल, ऊंट, घोड़े, भैसों की बढ़ी संख्या है। जिसमें तीन करोड़ 21लाख बैल बचे है। एक बैल के रेहट से साढ़े तीन घंटे लगातार घूमाने पर 24 बोल्ट बैटरी चार्ज हो जाती है। साथ ही जनरेटर के माघ्यम से चारा काटने वाली मशीन, पंखे, छोटी राइस मील, छोटा थ्रेशर, पम्पिंग सेट, तीन हार्स पावर की मोटर आसानी से सपफलता पूर्वक चलाई जा रही है। एक किसान परिवार की सभी विद्युत जरूरतों की पूर्ति लायक क्षमता विकसित होती जा रही है। जुताई, ढुलाई निराई, पेराई, कोटाई मे बैल की उर्जा का उपयोग तो हो ही रहा है। उर्जा मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष 60000 मेगावाट बिजली जरूरतों को घ्यान में भी रखे तो गाय से हमें 30000 मेगावाट प्रति वर्ष उर्जा प्राप्त हो सकती है वही बैलों की ऊर्जा शक्ति पर शोध् हो तो लगभग 1 लाख 50 हजार मेगावाट बिजली का प्रतिवर्ष उत्पादन किया जा सकता है। जिसमे बैलों द्वारा पवन चक्की चलाने का शोध भी शामिल है। इस प्रकिया कि खास बात यह है कि बायोगैस प्लान्ट में गोबर के उपयोग के बाद भी हमें गोबर की खाद की मात्रा अच्छी और अधिक रूप मे प्राप्त होगी। जो करोड़ो रुपए में होगी। एक गाय रात दिन में 12 सौ वाट ऊर्जा शरीर से उत्सर्जित करती है। जब की बैल आधे से तिहाई हार्स पावर अश्वशक्ति प्रदान करते है। जनसंख्या की बढ़ती मांग को धयान में रखकर हमें प्रकृति को खत्म करने वाले तरीकों को छोडऩा होगा और स्वच्छ ऊर्जा की श्रृखंला की ओर बढऩा होगा। जिससे समृद्वि और प्रकृति पोषक ऊर्जा विकास की सुन्दर रचना हो सकें और हम विनाश से बच सके।

जितनी सब्सिडी सरकार पवन उर्जा, सौर उर्जा, जल विघुत उर्जा पर दे रही और कई गुना पैसा परमाणु उर्जा पर खर्च कर रही उसका 25 प्रतिशत पशुधन उर्जा पर लगा दे तो जल्द ही तस्वीर कुछ और ही होगी और हम स्वच्छ प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों से निरंतर ऊर्जा प्राप्त करते रहेंगे।

पूरे विश्व के 33 प्रतिशत उद्योग पर हमारा आध्पित्य था। पिछले दो सालों में यह 5 प्रतिशत रहा और आज 3.5 प्रतिशत पर हम आ गए हैं। प्राचीन स्वावलंबी भारत की कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, उर्जा, साहित्य, संगीत, अघ्यात्म, लघु उघोग, संस्कृति के उत्कृष्ठ नीति नियामक मापदंड का तो कोई जबाव नहीं था। जिसके कण-कण में प्रकृति परख विकास की ही परिकल्पना से हम उत्कृष्ट शिखर पर थे। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर धयान दें तो सेक्स उघोग पहले स्थान पर है। अफीम, चरस, हथियार उद्योग दूसरे स्थान पर, दवा उद्योग तीसरे स्थान पर है, विज्ञान प्रौद्योगिकी चौथे स्थान तथा कृषि पाचवें स्थान पर है। जबकि आज भी अगर हम स्वदेशी उद्योग पद्धति को समाहित करे तो परिणाम कापफी आश्चर्यजनक प्राप्त किये जा सकते है। हमारे देश में पशुधन खाद्य की वस्तु ही नहीं उघोग की वस्तु पैदा करने की पफैक्ट्री बनते जा रहे है। सामाजिक परिवर्तन में लगे लोगों के द्वारा गोवंश जैविक कृषि उत्पादन, ऊर्जा पैदा करने और बचाने के उपकरण, पर्यावरण रक्षा, प्राकृतिक कृषि, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के विकास में अतूलनीय योगदान निभा जा रहे है। देश के नंदियों से ही 3 घंटे चक्कर काटने से 12 से 24 बोल्ट की बैटरी चार्ज होने से घरेलू उर्जा की बचत और आपूर्ति में 4 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से अधिाक का पफायदा हो सकता है। बिजली की किल्लत से हमेशा की छुट्टी हो सकती है। नंदीचालित उपकरणों में, धानी चक्की, आटा चक्की, दुलाई ड्राली, जुताई हल, दवा छिड़काव मशीने, सिंचाई पम्ंपिग सेट के विकास से ही इसके बाजार पर कब्जा करने में ही 50000 हजार करोड़ प्रतिवर्ष लाभ हमारे देश को प्राप्त हो सकता है। जो बाहरी कम्पंनिया उठा रही है। यही नही इसके पफैलाव से अनकूट धन की वर्षा हो सकती है। अकेले कृषि ट्रैक्टरों के बाजार और कृषि तेल की खपत पर घ्यान दे तो 84 लाख ट्रैक्टरों की 1445 खरब रुपये कीमत का फायदा साथ ही साथ प्रतिदिन लगभग 12000 हजार करोड़ के डीजल की बचत होगी।

जिसके पर्यावरण असंतुलन फैलाने के योगदान का आकलन और आयात लाभ का आकंलन तो किया ही नही जा रहा है। जिसकी अपार सम्भावनायें है। द्वितीय विश्व युद्ध के बचे बारुद की रासायनिक खाद बनाकर कृषि उपज की हरित क्रान्ति के नाम जो जहर बोया गया है। उस की खपत और बाजार पर घ्यान दे तो 2007 में ही 39773.78 मिट्रिक टन कीटानाशकों का प्रयोग किया गया जिसकी कीमत भारतीय बाजार में 7 हजार करोड़ आकी गयी है। जिसमें 75 प्रतिशत विदेशी कंम्पनियो की हिस्सेदारी है। जबकि 35 हजार गाय बैलो से ही 160000 टन वर्मीकम्पोस्ट 70000 लीटर बायो पोस्टिसाइड का निर्माण किया जा सकता है यही नही देश के गाय बैलो के गोबर और मूत्र से ही विश्व के रासायनिक खाद बाजार पर और रासायनिक पेस्टिसाइड बाजार पर कब्जा कर लाखों मिलियन कमा सकते हैं। भारत सरकार रासायनिक खादों पर दे रही सब्सिडी से मुक्त हो सकती है। प्राकृतिक तरीको से की गयी खेती के उत्पाद भी खासे महंगे मूल्य पर बिकने से लाभ ज्यादा कमा सकते है। देश के गोवंश से प्राप्त गोबर के आर्थिक लाभ की नीति बनाये तो धन लक्ष्मी की इतनी वर्षा होगी की कल्पना नही कर सकते है। 10 करोड़ टन गोबर को उद्योग दृष्टि से इस्तेमाल करे तो 8से 70 करोड़ परिवारो के घरेलू रसोई गैस की पूर्ति हो सकती है। सिपर्फ रियलांइस के इस क्षेत्र के लाभ का आर्थिक आकंलन ही कागजों पर 40 हजार करोड़ है। जबकि इससे उसको कहीं ज्यादा पफायदा प्राप्त हो रहा हैं। 10 करोड़ टन गोबर प्राकृतिक खाद बनाये तो 60 करोड़ हेक्टेयर के लिए 300 करोड़ टन खाद और 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार राष्ट्रीय आय 45 हजार करोड़ होगी। 10 करोड़ टन गोबर अगर हम बायो सी. एन. जी. बनाने में उपयोग मे लेते है। तो पूरे विश्व में तेल की बचत के साथ-साथ प्रत्येक गाड़ी की औसत एवरेज 25 से 40 किलोमीटर 1 किलो सी.एन.जी. से हो जायेगी। वर्तमान समय मे बायोगैस से चलने वाली कारों में तेजी से विकास हुआ है। जिसका नजारा दिल्ली के कार मेले देखने को प्राप्त हुआ। हम सोचते है और विदेशी भविष्य के बाजार को धयान में रखकर उपकरण उतार देते है। अब आप जरा सोचिए कि अगर ये उपकरण हम बनाएगे तो बचत कितनी होगी। विदेशी वैज्ञानिक गोबर से पेट्रोल बनाने में तेजी से प्रयासरत हैं। गोबर गैस प्लान्ट से देश में बायो जनरेटर सपफलतापूर्वक चलाये जा रहे है। जिसका उपयोग विघुत उपकरणों को चलाने मे हो रहा है। इस विधि से लाखों मेगावाट बिजली बनायी जा सकती है। जिसका आर्थिक लाभ खरबों मे होगा। मराठा चेम्बर आफ कामर्स इण्ड्रस्टीज पुणे द्वारा )तुराज प्लास्टर सीधो-सीधो जो गर्मी ठंडी रोधक सीमेन्ट के नाम से महशूर हो चला है। इसके कई पफायदे भी है। 15 करोड़ टन गोबर से 15 करोड़ वार्षिक उत्पादन से 3 करोड़ लोगों रोजगार और राष्ट्रीय आय 90 हजार करोड़ की होगी। साथ-साथ रेडिएशन के दुष्प्रभाव गर्मी सर्दी के प्रकोप से मूक्ति भी मिल जायेगी।

आज पूरा देश बिमार है। ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जहां एक या दो लोग बिमारी हालत में ना हो अगर कहीं नही भी है तो कब होगे भरोसा नहीं है।

भोजन हवा में जहर इस कदर घुल गया है। कि आदमी का जीवित रहना अब मुश्किल है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारा प्रकृति विरोधी जीवन शैली ही है। केन्सर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबधिात रोग होना अब आम बात हो गयी है। इनकी संख्या करोड़ो में है। डब्लू एच. ओ. के अनुसार। एक लाख 70 हजार महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था के समय आयरन की कमी से एक लाख 17 हजार बच्चों की अकाल मृत्यु कैल्सियम की कमी से हो जाती है। शरीर के आवश्यक तत्वो की कमी से मरने वालो की तादात भी कम नहीं है।

लेरिया, टी. बी., केन्सर, हैजा में दवाये अब प्रभाव शून्य हो रही है। शरीर में और ज्यादा एन्टी बायोटिक्स को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रही । विश्व व्यापार संगठन की जो ट्रेडमार्क नीति है वैसे में किसी दवा को भी नकली घोषित किया जा सकता है। जेनेरिक दवाओं को तो खत्म करने का इरादा है। एसे में सस्ती दवा का ख्वाब कैसे पूरा हो सकता है। मेडिकल जर्नल मिक्स के अनूसार भारत में लगभग 93 हजार करोड़ का कारोबार अकेले अग्रेजी दवा कम्पनियां चला रही है। एक अनुमान के अनुसार 2 लाख पच्चास हजार करोड़ का सिपर्फ अग्रेजी दवा उद्योग है। जिसमें 8 हजार करोड़ नकली दवा की खपत तो दिल्ली में और 5000 करोड़ नकली दवा की खपत राजस्थान में है। अभी 28 बढ़े राज्यों में इसकी क्या स्थिति होगी तो आपको अन्दाजा लगेगा कि लगभग एक लाख करोड़ रुपये का नकली दवाओं का उद्योग हो गया है। ऐसे में जान माल की रक्षा कैसे सम्भव है। भारत सरकार ने अगर प्राकृतिक वैदिक वैद्य परम्परा पर शोध किया होता तो स्वस्थ भारत के साथ स्वस्थ विश्व की कल्पना कोई बड़ी बात नहीं है। और पूरे दवा उद्योग पर आपका अधिापत्य होता जो आज नहीं है। ऐसा कोई रोग नहीं जिस रोग में पंचगव्य से चिकित्सा नहीं की जा सकती और वो भी जो पदार्थ सर्वसुलभ उपस्थिति हो उसका क्यों नहीं प्रयोग हो। हालाकि पूरे देश में अब पुन: प्राकृतिक परम्परागत चिकित्सा पद्धति बढ़ रही है। यह एक सुखद संकेत है। बस आवश्यकता है देश में बड़े-बड़े शोध संस्थानों के स्थापना की। गोवंश को स्वास्थ्य पर्यावरण, उद्योग, कृषि, उर्जा इत्यादि क्षेत्रो में व्यापक उपयोग कर हम पुन: विश्व समृद्धि की सर्वोच्च शिखर पर पहुच सकते है। क्योंकि इन तरीको में अपार बचत की सम्भावनाये होती है। आज पुन: आवश्यकता है कि पथ विमुख हुए विश्व को सही राह दिखा कर हम भारत के प्राचीन प्रभुत्व को स्थापित करें। यह तभी संभव है जब हमारी सोच प्रकृति विरोध न होकर प्रकृति पोषक होगी और जल, जंगल, जमीन, जन, जानवर के प्रति हमारी श्रद्धा होगी।

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