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अन्य कविता

यह कैसी पूजा है?

बतला जीवन के आधार इसे, हैं मिट्टी, पानी और बयार।
यदि रहा यह दूषण जारी, कैसे बचेगा यह संसार?

क्या कभी उन्नत मानव ने, यह सोचकर देखा। निकट है काल की रेखा

गुरूग्रंथ, बाइबिल, वेदों ने, तुझे प्रेरित किया अहिंसा को।
वसुधा को कुटुम्ब बताया था, फिर अपनाया क्यों हिंसा को?

जीवन के उच्चादर्शों की, निर्दयता से हत्या करता है।
फिर भी अनुयायी होने का, बतला कैसे दम भरता है?

मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में, किस मुंह से पूजा करता है?
सने हाथ खून में जब तेरे, तू कैसी अर्चना करता है?

यदि ईष्ट देव की पूजा यह, तो बता फिर पाखण्ड क्या?
पूजा के नाम पर भी झगड़ा, ईश्वर के करेगा खण्ड क्या?

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