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इतिहास के पन्नों से

औरंगजेब ने भी लगाया था पटाखों पर प्रतिबंध

कांग्रेसी और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नजरों में औरंगजेब एक बहुत ही उदार शासक था। उसकी मानवतावादी सोच और उदारवादी दृष्टिकोण के कसीदे काटते हुए यह भारत विरोधी इतिहासकार यह भूल जाते हैं कि उसके समय में हिंदुओं पर कितने भारी अत्याचार किए गए थे ? ऐसे अनेकों सही हो पूना में अर्थात शासनादेश उपलब्ध हैं जिनसे औरंगजेब की हिंदू विरोधी मानसिकता का पता चलता है उसने न केवल अनेकों हिंदुओं का वध करवाया अपितु उनके त्योहारों तक पर प्रतिबंध लगाने का अमानवीय कार्य किया। कितने ही मंदिरों को उसने तुड़वाया और हिंदुओं की पूजा पाठ की रीति को भी बंद करने का हर संभव प्रयास किया।
   औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा के लाल किले में बंद करके सत्ता पर कब्जा किया था। यह वह काल था जब राजकुमार होना अपने आप में एक अभिशाप बन गया था। क्योंकि किसी भी मुगल बादशाह या बादशाह के शहजादे अपने परिजनों और भाई बंधुओं का सफाया करके ही गद्दी पर बैठते थे। युद्ध में जो जीत जाता था वह अपने भाई बंधुओं का या तो निर्ममता से कत्ल करवा देता था या किसी को जीवित छोड़ता था तो उसकी आंखें निकलवा देता था या और किसी भी प्रकार की ऐसी यातना देकर उसे जीवित छोड़ता था जिससे वह शासन करने का विचार तक भी ना कर पाए।
    रक्तपात की ऐसी घृणास्पद कहानी को भी कुछ लोगों ने ‘राजनीति का अनिवार्य अंग’ कहकर क्षमा करने का प्रयास किया है, जबकि इससे पहले हिंदू इतिहास में पूर्ण सुव्यवस्थित ढंग से राज्यसत्ता का परिवर्तन होता था। राजा अपने दरबारी जनों और प्रजा लजनों की आज्ञा लेकर अपने उत्तराधिकारी युवराज की घोषणा करता था और उसके पश्चात भव्य समारोह के माध्यम से राजसत्ता का परिवर्तन होता था । कहीं किसी रक्तपात की संभावना तक नहीं होती थी। ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ की मूर्खता पूर्ण धारणा के आधार पर चाहे इस प्रकार के रख  को राजनीति का अनिवार्य अंग कह दिया जाए परंतु हिंदू राजनीति में ऐसे रक्तपात को अक्षम्य हीं माना जाता रहा है।
    औरंगजेब 1658 में बादशाह बना और 1707 ई0 तक निर्ममतापूर्वक हिंदुस्तान पर शासन करता रहा। उसने अपने शासनकाल में हिंदुओं के प्रमुख पर्व दीपावली पर पटाखों तक पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसा उसने हिंदुओं के प्रति अपनी सांप्रदायिक घृणा का प्रदर्शन करते हुए किया था । इस संबंध में उसके द्वारा जारी किए गए शासनादेश की प्रति आज भी उपलब्ध है । बीकानेर के स्टेट आर्काइव में 8 अप्रैल 1667 में जारी औरंगजेब का यह सही हुकुमनामा हमें आज भी सुरक्षित रखा मिलता है। औरंगजेब के पक्ष में कसीदे काढने वाले इतिहासकारों की दृष्टि में उसका यह शासनादेश या शाही हुकमनामा निसंदेह प्रदूषण को रोकने के लिए जारी किया गया बताया जा सकता है परंतु यदि औरंगजेब इतना ही उदार और पर्यावरण के प्रति सजग शासक था तो उसने गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का कोई शाही हुकुमनामा जारी क्यों नहीं किया ? और साथ ही मुस्लिम त्योहारों पर होने वाले खून खराबे को रोकने की दिशा में भी कोई शासनादेश जारी क्यों नहीं किया?
इस प्रश्न पर ऐसे इतिहासकारों की बोलती बंद हो जाती है।
   औरंगजेब के द्वारा जारी किए गए उपरोक्त आदेश में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है –  बादशाह के सूबों के अफसरों को लिख दीजिए कि वे आतिशबाजी पर रोक लगा दें। शहर में भी घोषणा कर दें कि कोई आतिशबाजी न करें।’
   यद्यपि इस आदेश में किसी त्यौहार विशेष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है परंतु यह भी सच है कि आतिशबाजी या पटाखे छोड़ने की परंपरा केवल हिंदुओं के दीपावली पर्व पर ही रही है। इसलिए हिंदुओं का उत्पीड़न करने के दृष्टिकोण से ही ऐसा ही हुकुमनामा जारी किया गया था जो कि बादशाह के शासनकाल में देर तक बना रहा।
       राजस्थान स्टेट आर्काइव के निदेशक महेंद्र सिंह खड़गावत  का इस संबंध में कहना है- औरंगजेब के समय आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया गया था। अप्रैल 1667 का औरंगजेब के समय का लेटर आर्काइव में हमारे पास सुरक्षित है। उस लेटर में दिवाली का जिक्र नहीं है, लेकिन वह पत्र सही है।
इधर, रिटायर्ड IAS और राजस्थान क्रिकेट एसोसिए​​​​​​​शन (RCA) के पूर्व अध्यक्ष संजय दीक्षित ने बीकानेर आर्काइव में रखे औरगंजेब के समय पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध संबंधी पत्र का हवाला देकर तंज कसा है। दीक्षित ने ट्वीट किया- औरंगजेब की वापसी।औरंगजेब ने सबसे पहले दिवाली पर पटाखों पर पाबंदी लगाई। अब हमारे पास न्यायाधीशों और राजनेताओं के रूप में नए औरंगजेब हैं।

कोर्ट के ओदश पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किसी भी तरह के पटाखों पर बैन हैं। इस प्रतिबंध के दायरे में राजस्थान का अलवर और भरतपुर जिले का बड़ा क्षेत्र आएगा। संजय दीक्षित ने इसी आदेश की तुलना औरंगजेब के समय से की है।
आजादी से पहले 1908 में तत्कालीन बीकानेर स्टेट में बारूद, आतिशबाजी के उपयोग को लेकर भक से उड़ जाने वाले पदार्थों का एक्ट बनाया था। बारूद को ही भक से उड़ जाने वाला पदार्थ कहते हैं। इस एक्ट में किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए बारूद से धमाका करने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया था।
( यह लेख हमने भास्कर में छपी खबर के आधार पर तैयार किया है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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