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रिसर्च फाउंडेशन इंस्टिट्यूट आर्य विद्यापीठ द्वारा किया गया रामराज्य पर संगोष्ठी का आयोजन

नई दिल्ली। (अजय कुमार आर्य ) यहां स्थित रिसर्च फाउंडेशन इंस्टिट्यूट आर्य विद्यापीठ रोहिणी द्वारा रामराज्य पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जाने माने लेखक और वैदिक संस्कृति के प्रकांड विद्वान डॉ श्याम सिंह शशि द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय संविधान संस्कृति एवं रामराज्य’ का लोकार्पण भी किया गया।
  इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती ऋतु गोयल चेयरपर्सन रोहिणी जोन म्युनिसिपल काउंसिलर दिल्ली द्वारा अपने संबोधन में कहा गया कि राम एक संस्कृति हैं। जब हमारा मन, वचन और कर्म राममय बन जाएगा तो हम रामराज्य स्थापित करने में सफल होंगे। उन्होंने कहा कि राम के आदर्श जीवन से आज हमें बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने जिस प्रकार के नैतिक, राजनीतिक, धार्मिक मूल्यों को लेकर अपने समय में शासन किया उन्हीं मूल्यों को लेकर आज भी देश, समाज, राष्ट्र और आदर्श विश्व व्यवस्था के निर्माण करने की आवश्यकता है। श्रीमती गोयल ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी इस दिशा में ठोस और सकारात्मक कार्य कर रहे हैं। जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।
श्रीमती गोयल ने कहा कि डॉ श्याम सिंह शशि देश के गौरव हैं। जिन्होंने सैकड़ों पुस्तकें लिखकर भारतीय संस्कृति की अप्रतिम सेवा की है। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के महासचिव डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि रामराज्य की कल्पना करने वाले लोगों ने ही धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना कर राम के आदर्शों को शासन से बाहर कर दिया, जो कि हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय है । आज हमें तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए श्रीराम के आदर्शो को अपनाकर चलने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में श्रीमती ऋचासिंह, संस्कृति सिंह, श्रीमती संगीता सिंह, डॉक्टर ए के सिंह आदि ने अपने विचार रखे और रामराज्य के आदर्शों पर चलकर राष्ट्र निर्माण करने की भावना पर बल दिया। वैदिक मूल्यों शिक्षा के प्रति समर्पित राकेश यादव ने कहा कि रामचंद्र जी के प्रति आस्था का अभिप्राय है कि प्रत्येक क्षेत्र में उनके जीवन का अनुकरण किया जाए।
इस अवसर पर डॉ श्याम सिंह शशि ने सभी आगंतुकों का आभार और धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपनी पुस्तक के विषय पर प्रकाश डाला और बताया कि राम हों या कृष्ण हों ये स्वयं में ही एक संस्कृति हैं ।इन पर जितना अधिक शोध किया जाएगा या लिखा जाएगा उतना ही अधिक हमको इनके बारे में नया सोचने , नया समझने और नया कुछ करने का आभास होता जाएगा। इसलिए रामचंद्र जी जैसे महापुरुषों पर और भी अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

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