Categories
पर्व – त्यौहार

ऐसे मनाई जाती है जनजातीय समाज में शारदीय नवरात्रि

जनजातीय समाज में शारदीय नवरात्रि


हेमेन्द्र क्षीरसागर

हिन्‍दू धर्म से वनवासी समाज को अलग परिभाषित करने के सभी विभाजनकारी षड्यंत्र तब धवस्‍त हो जाते हैं, जब इनकी मान्‍यताएँ, पर्व, रहन-शैली, विचार मेल खाते हैं। बाघ देवी, ज्वाला देवी, गांव देवी और वन देवी की पूजा-अर्चना तथा अंचलों में मंदिर, पट, मढिया इसके ज्वलंत उदाहरण है। शारदीय नवरात्रि ऐसा पर्व है, जो वनवासी क्षेत्रों में भी धूमधाम से मनाया जाता है, यह सिद्ध करता है कि हम हिन्‍दू हैं, भले ही हमारे निवास स्‍थान, रहन-सहन अलग-अलग हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में शारदीय नवरात्रि दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। नौ दिनों तक मनाई जाने वाली इस पूजा में माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा होती है। वनवासी क्षेत्रों की नवरात्रि पूजा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से तनिक भिन्‍न है। इनके नामों व पूजा पद्धति में विविधता है। वनवासी देवी माँ से अच्‍छी फसल, वर्षा व प्रकृति संरक्षण की याचना करते हैं। भील समाज में नवणी पूजा, गोंड समाज में खेरो माता, देवी माई की पूजा, कोरकू समाज में देव-दशहरा के रुप में देवी माँ की पूजा होती है। भील समाज में नवणी पर्व नवणी में भील अपनी कुलदेवी व दुर्गा-भवानी का पूजन करते हैं। यह त्यौहार अश्विन (कुआर) माह में शुक्ल पक्ष की पड़वा से प्रारम्भ होता है। पूरे वर्षभर में हुई गलतियों के लिये सभी देवी-देवताओं से क्षमा याचना करते हैं।

नवणी से पहले स्‍वच्‍छता की दृष्टि से घरों की गोबर व मिट्टी से लिपाई होती है। व्रती सागौन की पाटली (पटिया) सुतवार (बढ़ई) से बनवाकर उस पर चाँद व सूर्य उकेरवाता है। घर या आंगन में चौका पुराया जाता है। पाटली में शुद्ध धागा नौ बार लपेटा जाता है, उसी चौके पर पाटली की स्‍थापना कर पूजा की जाती है। जिस सागौन से पाटली काटी गयी होती है, उसे भी कच्‍चा सूत व नारियल भेंट किया जाता है। बाँस की छोटी-छोटी पाँच या सात टोकरियों में मिट्टी डालकर गेहूँ बोया जाता है, इसे बाड़ी, जवारा या माता कहते हैं। यह जवारा नवमी तिथि को संध्या की बेला में नदी में विसर्जित होता है। श्रद्धालु खप्पर, गीत गाते नदी तट पर जवारा लेकर जाते हैं। जिसे श्रद्धा स्वरूप एक दूसरे को देते हैं।

गोंड ही नहीं, कोरकू जनजाति में भी कई दशहरे मनाये जाते हैं, जिसमें से एक दशहरा कुआर की नवरात्रि है। गोंड समाज के लोग गाड़वा (वृत्‍ताकार में भूमि में धंसाये गई लकड़ी) के सामने ककड़ी को बकरे का प्रतीक मानकर काटते हैं। अपने ईष्‍ट से याचना करते हैं कि वर्षभर हमें कुल्‍हाड़ी, हंसिया चलाना पड़ता है, उसमें कोई हानि न हो। गोंड समाज में खेरो माता की पूजा होती है। गोंड समाज में खेरो माता को गाँव की मुख्य देवी का दर्जा प्राप्त है। कोरकू समाज में कुआर माह में देव-दशहरा मनाया जाता है। इस पूरे पर्व में मुठवा देव, हनुमान, पनघट देव, बाघ देव, नागदेव, खेड़ा देव आदि की पूजा होती है। कोरकू लोग अपने देवी-देवताओं के चबूतरे पर गाते-बजाते हैं, जिसे ‘धाम’ कहते हैं। कोरकू समाज में भी इस पर्व पर बलि देने की मान्‍यता है। इस पर्व से संबंधित कुछ निषेध भी हैं – दशहरे के पहले खलिहान नहीं लीपा जा सकता, अशुभ माना जाता है। दशहरा पर अस्त्र-शस्त्र पूजन के साथ प्रकृति के वाहक इस समुदाय में नीलकंठ दर्शन और सोने अर्थात शमी के पत्ते का अर्पण शुभकारी है।

त्‍यौहार सम्‍पन्‍न होने तक सागौन के पत्‍तों की पोटिया भी नहीं बनाए जा सकते बाँस काटना भी वर्जित है। सागौन के पत्‍तों की तह करके बंडल बनाने को पोटिया कहते हैं, ये पोटिया घर की छपरी आदि बनाने के लिए वाटर प्रूफ का काम करते हैं। मुठवा देव की पूजा से पहले हनुमान की पूजा करते हैं। हनुमान को लंगोट और नारियल चढ़ाया जाता है। हनुमान की पूजा सबसे पहले करने की मान्‍यता के पीछे इनका तर्क है कि हनुमान ‘रगटवा सामान’ अर्थात खून आदि स्‍वीकार नहीं करते। जबकि मुठवा देव को शराब व चूजा भेंट किया जाता है। मुठवा देव की पूजा के बाद पनघट देव, बाघ देव, नागदेव, खेड़ा देव की पूजा होती है। पूजा के बाद सागौन या खाखरा के पत्तों में भोजन कराया जाता है। भोजन से निवृत्त होने के बाद सभी सागौन के छह-छह पत्ते तोड़ते हैं। इन छह पत्तों से पोटिया बनाते हैं। इस नियम को पूरा करने के बाद लोग सागौन के पत्ते तोड़ सकते हैं। ये परम्पाराएं आज भी पुरातन भाव से चलायमान है।

सनातन-हिन्दू धर्म का जनजातीय समाज एक अभिन्न अंग अपने विकासकाल से ही रहा है, यह अलग बात है कि सभ्यताओं के विकास एवं लगातार आक्रमणों के कारण जनजातीय समाज के स्थान परिवर्तन एवं परम्पराओं, संस्कृति, विवाह, रीतिरिवाज, पूजा पध्दति, बोली एवं कार्यशैली में भले ही आंशिक अन्तर दिखता हो। किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष में सनातन हिन्दू समाज की जनजातीय एवं गैर जनजातीय इकाइयों का मूल तत्व एवं केन्द्र हिन्दुत्व की धुरी ही है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version