पंडित देवप्रकाश जी मौलवी अलीम फ़ाज़िल का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था। आपके विचारों से परिवर्तन स्वामी दर्शनानंद जी के उर्दू ट्रैक्ट्स के माध्यम से प्रारम्भ हुआ था एवं स्वामी दयानंद द्वारा रचित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश ने आपके जीवन कि काया ही पलट दी और आप उसे पढ़ कर आर्य प्रचारक बन गये। आप ने अपना सम्पूर्ण जीवन वैदिक धर्म प्रचार के लिए समर्पित कर दिया। कहते हैं “होनहार बिरवान के होत चीकने पात” । ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन में छोटी से घटना भी उनके जीवन को बदल कर रख देती हैं। चाहे वह हिरणी के पेट से निकले अजन्मे बच्चे को मरते देखकर बैरागी के बनने कि घटना हो, चाहे वह मूषक कि शिवलिंग पर उछल-कूद को देखकर मूलशंकर द्वारा ईश्वर को खोजने कि घटना हो। ऐसी ही एक घटना हमारे चरित्र नायक के जीवन में घटी थी जब एक बालक के रूप में पंडित देवप्रकाश जी का मन बाज़ार में एक मछली बेचने वाली औरत द्वारा तड़पती मछली कि गर्दन पर चलाई जा रही छुरी को देखकर घृणा से भर द्रवित हो उठा था। उन्होंने जीवन भर माँस न खाने का संकल्प लिया और यह भी संकल्प किया कि मैं जीवन भर माँस का ग्रहण करने से औरों को रोकूंगा। आप मुस्लिम परिवार से थे एवं आपके समाज में माँस खाना धर्मिक कर्त्तव्य कि पूर्ति माना जाता था। ऐसे समाज में माँस न खाने और न खाने का प्रचार करने से आपकी बिरादरी के लोग आपसे रुष्ट हो गये एवं उन्होंने आपका बहिष्कार कर दिया था। पर आप दृढ़ निश्चियी रहे एवं अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हुए।

महापुरुषों का जीवन, उनके विचार, उनके कर्त्तव्य इसलिए प्रभाव शाली होते हैं क्यूंकि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता। आईये अपने जीवन को भी वैदिक विचारों के अनुकूल बनाकर उसका उद्धार करे।

#डॉविवेकआर्य

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