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चमचे चुगलखोर-भाग-तीन

सूरज चढ़ता देख किसी का, मन ही मन तू जलता है।
हृदय हंसता है तब तेरा जब किसी का सूरज ढलता है।

अतुलित शक्ति तुझ में इतनी, दे शासन तक का पलट तख्ता।
तेरी कारगर चोटों से, मीनारें गिरीं बेहद पुख्ता।

मतलब इतने प्रशंसक तू, निकले मतलब आलोचक तू।
उल्लू सीधा करने के लिए, कोई कथा सुनाये रोचक तू।

दिन को रात और रात को दिन, संध्या तक को तू कहे भोर।
जय हो चमचे चुगलखोर।

अध्यापक, विद्यालय कहां, तू जिनसे शिक्षा पाता है?
बिना गुरू विद्यालय कैसे, कला निष्णात हो जाता है?

करता काली करतूतें तू, क्या इनके लिए पछताता है? हमको तो अचंभा होता है। जब तू भी जमीर बताता है।

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