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बदले हालात में तालिबान के लिए शासन करना आसान नहीं, गृहयुद्ध की ओर बढ़ सकता है अफगानिस्तान

अशोक मधुप 

तालिबान को काबुल की सत्ता चाहिए थी, वह उसे मिल गई। अब उसे किसी से कोई वास्ता नहीं। वैसे भी पूरी दुनिया से मदद लेनी है तो उसे ये साबित करना पड़ेगा कि न उसका कोई आका है। न सरपस्त। वह अपने निर्णय खुद ले रहे हैं।

बीस साल में तालिबान के चेहरे बदले हैं प्रकृति नहीं। एक माह के काबुल पर कब्जे के दौरान उसने सिद्ध करना शुरू कर दिया कि भस्मासुर का पहला निशाना वरदान देने वाला ही होता है। दूसरा बाद में। पाकिस्तान अब तक उसे संरक्षण, प्रशिक्षण और मदद देता रहा। सत्ता हाथ में आते के साथ ही उसने रंग दिखाना शुरू कर दिया। एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें दिखाया गया है कि अफगानिस्तान में सहायता लेकर जा रहे पाकिस्तान के ट्रक को तालिबानी रोकते हैं। वे ट्रक पर लगे पाकिस्तान के झंडे को उतार कर फाड़ देते हैं। वहां काफी संख्या में शस्त्रधारी मौजूद हैं। वे झंडा उतारने और फाड़ने वाले का विरोध नहीं करते। अफगानिस्तान के हालात से तालिबान का सरपरस्त पाकिस्तान भी खुश नहीं हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान ने बीबीसी से एक भेंट में तालिबान से एक समावेशी सरकार बनाने का अनुरोध किया। इमरान खान ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं को शिक्षा लेने से रोकना गैर इस्लामिक होगा। इमरान खान ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘यदि वे सभी गुटों को शामिल नहीं करेंगे तो देर−सबेर उन्हें गृह युद्ध झेलना होगा।’’ 

तालिबान को भले पाकिस्तान ने पाला और पोसा हो, किंतु वह अब सरकार चला रहे हैं। ऐसे में उन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की ये सलाह बहुत नागवार गुजरी है। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने साफ कहा- पाकिस्तान या कोई दूसरा देश हमें यह नहीं बता सकता कि हम किसी तरह की सरकार बनाएं। तालिबान प्रवक्ता और डिप्टी इन्फॉर्मेशन मिनिस्टर जबीउल्लाह मुजाहिद से इमरान के बयान पर पूछने पर उन्होंने तल्ख लहजे में कहा- पाकिस्तान हो या कोई दूसरा देश। उसके पास यह हक बिल्कुल नहीं है कि वो हमें अपनी सरकार के गठन के बारे में आदेश दे। इस्लामिक अमीरात की सरकार समावेशी होगी या कैसी  होगी, ये हम तय करेंगे। मुजाहिद के बयान के पहले तालिबान के एक और नेता मोहम्मद मुबीन ने भी कहा कि बाहर से कोई भी अफगानिस्तान और तालिबान की हुकूमत को नहीं चला सकता। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो मुल्क हमारा पड़ोसी है या कोई और। मुजाहिद का लहजा और बयान काफी नाराजगी भरा था। समावेशी सरकार के सवालों पर वह उखड़ गए। उन्होंने कहा- क्या समावेशी सरकार के जरिए हमारे पड़ोसी ये चाहते हैं कि हम उनके पसंद के लोगों को सरकार में शामिल कर लें और वो यहां आकर जासूसी करने लगें।
तालिबान को काबुल की सत्ता चाहिए थी, वह उसे मिल गई। अब उसे किसी से कोई वास्ता नहीं। वैसे भी पूरी दुनिया से मदद लेनी है तो उसे ये साबित करना पड़ेगा कि न उसका कोई आका है। न सरपस्त। वह अपने निर्णय खुद ले रहे हैं। काबुल पर कब्जे के एक माह बाद ही काबिज तालिबान के गुटों में सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने के लिए संघर्ष होने लगे हैं। लगता है कि अफगानिस्तान गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है। वर्चस्व की लड़ाई को लेकर तालिबान और हक्कानी गुट में संघर्ष हुआ है। खबर है कि तालिबान का सुप्रीम लीडर अखुंदजादा मारा गया है। उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर को बंधक बना लिया गया है। हक्कानी गुट ही सरकार चला रहा है। सत्ता पर काबिज गुट अपने वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं तो तालिबान विरोधी उन पर हमले भी करने में लगे हैं।
जलालाबाद में तालिबान पर फिदायीन हमले हुए हैं। आईएसआईएस खुरासान ग्रुप ने दावा किया है कि शनिवार को दो और रविवार को जलालाबाद में हुए फिदायीन हमले उसने ही कराए थे। इस ग्रुप के मुताबिक, इन हमलों में कुल मिलाकर 35 तालिबानियों की मौत हुई है। पिछले महीने के आखिर में काबुल के हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर फिदायीन हमला भी इसी ग्रुप ने कराया था। संगठन ने धमकी दी है कि वो तालिबान को आगे भी निशाना बनाता रहेगा। अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार का गठन हो चुका है। वहां की जनता फिर भी आतंकित है। उसे नई तालिबान सरकार के निर्देश नहीं मिल रहे। मिल रहे हैं तो उन पर वहां की जनता यकीन करने को तैयार नहीं। इसी का कारण है कि सत्ता पर कब्जे के एक माह बाद भी अभी तक एक भी सरकारी दफ्तर नहीं खुला। जनता डरी और सहमी है। कर्मचारी नहीं समझ पा रहे कि कार्यालय जाएं या नहीं। हालात तो ज्यादा ही खराब है। अफगानिस्तान के एक दर्जन से ज्यादा देशों के दूतावास अपनी सरकार के निर्देश नहीं मान रहे। इन लगभग एक दर्जन राजदूतों ने विश्व के नेताओं से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देने की अपील की है। सत्ता परिवर्तन के एक माह बाद सरकार के कार्य शुरू न होने के बारे में काबुल के एक प्रोफेसर रफीक ओमारी ने बताया कि तालिबान केवल इस्लामी कानून के अनुसार पुलिस व्यवस्था और न्याय को सुनिश्चित करना जानते हैं। उन्हें तकनीकी विभागों की कोई जानकारी नहीं है। आईटी, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों को छोड़ दें तो वे एक हवाई अड्डे का भी संचालन नहीं कर सकते हैं।

तालिबान ने महिलाओं पर पहले ही पाबंदी लगा रखी है। उनका कहना है कि वे घर में रहें। शिक्षा भी लड़कों से अलग पाएं। अब यह भी सूचना आ गई कि अफगानिस्तान में आईपीएल 2021 के मैचों के प्रसारण पर भी रोक लगा दी गयी है। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (एसीबी) के पूर्व मीडिया मैनेजर और पत्रकार इब्राहिम मोमंद ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी है। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में आईपीएल के प्रसारण पर रोक लगा दी गई है। उन्होंने आगे लिखा कि, तालिबान इसे इस्लाम के खिलाफ मानता है। इब्राहिम ने लिखा, ‘अफगानिस्तान के नेशनल टीवी और रेडियो पर आईपीएल के मैचों का प्रसारण नहीं होगा। इसके कंटेंट को इस्लाम के खिलाफ माना गया है। इसमें लड़कियां डांस करती है और महिलाएं बिना सिर ढकी हुई होती हैं।’ हालाकि अफगानिस्तान के खिलाड़ी भी आईपीएल खेल रहे हैं। अभी तो शुरुआत है। हालात कुछ बेहतर नहीं लग रहे। लगता है कि बीस साल में दुनिया कितनी ही आगे चली गई हो, तालिबान अभी बीस साल पुराने जमाने में ही जी रहा है। उसकी सोच में कोई तबदीली नहीं आई।

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